तनावशैथिल्य (Tanavshethilya)
Detente in Hindi B.A. Programme 3rd yr.
Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, दितान्त (Detente) यानी तनावशैथिल्य के बारे में । विश्व की राजनीति में 1945 से लेकर 1990 तक के काल को शीतयुद्ध और तनाव से संबंधित माना जाता है । लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इस दौरान दोनों गुटों के बीच तनाव लगातार बढ़ता ही रहा । आपसी तनाव में कमी भी आयी । जैसे 1953 से 56 के बीच अमेरिका और सोवियत संघ के संबंधों में सुधार आया । हालांकि 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की वजह से शीत युद्ध अपने चरम बिंदु पर पहुंच गया और ऐसा लगने लगा कि अब शीतयुद्ध तीसरे विश्वयुद्ध के अंदर बदल जाएगा । लेकिन क्यूबा मिसाइल संकट के लगभग 12 साल बाद, ऐसा भी वक्त आया जब तनाव में भारी कमी महसूस की गई ।
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क्यूबा मिसाइल संकट इतना खतरनाक था कि इसकी वजह से तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा पैदा हो गया था । दोनों महाशक्तियों को मालूम था कि अगर परमाणु युद्ध होता है तो इसके परिणाम बहुत ही भयंकर होंगे । तो इसमें दोनों महाशक्तियों ने समझदारी से काम लिया और क्यूबा मिसाइल संकट का समाधान करने के लिए बातचीत का रास्ता अपनाया ।
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क्यूबा मिसाइल संकट ने एक बात साफ कर दी थी कि भविष्य में दोनों देशों को इस तरीके की घटनाओं से बचना है तो आपस में एक दूसरे के साथ लगातार संपर्क में रहना होगा । इसलिए मास्को से लेकर वाशिंगटन तक एक दूरभाष संपर्क (Hotline) यानी एक टेलीफोन लाइन बिछाई गई ताकि किसी भी संकट के समय दोनों देशों के नेता तुरंत बातचीत कर सकें । इससे आपसी बातचीत को बढ़ावा मिला और तनाव में तेजी से कमी आयी ।
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तनावशैथिल्य या दितांत का अर्थ (Meaning of Detente)
अब हम जानते हैं कि तनावशैथिल्य यानी दितान्त का मतलब क्या होता है ? Detente (दितान्त) फ्रेंच भाषा का शब्द है । जिसका मतलब है, तनाव में शीतलता या कमी आना । इस तरीके से दितान्त का मतलब है, अंतरराष्ट्रीय तनाव में कमी । दितान्त कोई सामान्य स्थिति नहीं है बल्कि दितान्त का इस्तेमाल अमेरिका और सोवियत संघ के तनाव में कमी के लिए किया जाता है ।
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दितान्त के दौरान शीतयुद्ध खत्म नहीं हुआ बल्कि दोनों महा शक्तियों के बीच समझौता होने लगा और ऐसा लगने लगा था कि शीतयुद्ध जल्दी ही खत्म हो जाएगा । दितान्त के कई कारण माने जा सकते हैं । जिसकी वजह से इसका का उदय हुआ ।
दितान्त के कारण (Reason of Detente)
1 राष्ट्रीय हितों की पूर्ति
दोनों ही महाशक्तियों के नेताओं ने यह सोचा कि युद्ध और हथियारों पर खर्च करने की जगह अगर अपने देश के आम नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए पैसा खर्च करना ज्यादा फायदेमंद होगा । इससे जनता के अंदर जो असंतोष बढ़ रहा है । वह खत्म हो जाएगा । इस तरीके से हथियारों पर होने वाले खर्च कम हो गया । आपसी सहयोग को बढ़ावा मिल गया ।
2 सोवियत संघ के आर्थिक विकास की आवश्यकता
सोवियत संघ को अपने आर्थिक विकास के लिए तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता थी और वह तकनीक अमेरिका के पास थी । तकनीकी ज्ञान की कमी के कारण सोवियत संघ कृषि में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया । साइबेरिया के अंदर विशाल गैस के भंडार थे । लेकिन इसका इस्तेमाल सिर्फ उच्च तकनीक के जरिए ही किया जा सकता था और उच्च तकनीक अमेरिका के पास थी । इसलिए पहले शीत युद्ध को खत्म करना जरूरी था । इससे तनाव में कमी आई और दितान्त को बढ़ावा मिला ।
3 अमेरिका के उद्योगों के लिए कच्चे माल की आवश्यकता
अमेरिका को अपने उद्योगों के लिए कच्चे माल की आवश्यकता थी । अमेरिका के पास तकनीकी ज्ञान तो बहुत था । लेकिन कच्चा माल नहीं था । अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन का यह मानना था कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था एक दूसरे की प्रतियोगी न होकर एक दूसरे की पूरक है । सोवियत संघ के पास कच्चा माल बहुत सारा था । जिसे आसानी से व्यापारिक शर्तों पर अमेरिका के लिए हासिल किया जा सकता था । तो इस तरीके से दोनों देश एक दूसरे की आवश्यकताओं और जरूरतों को पूरा कर सकते थे । जैसे कि सोवियत संघ को तकनीकी आवश्यकता थी । वहीं अमेरिका को कच्चे माल की आवश्यकता थी । अगर दोनों देश एक दूसरे से हाथ मिलाए और एक दूसरे की आवश्यकताओं को पूरा करें तो इससे दोनों देशों का फायदा होता होगा । दोनों को लाभ होगा । इससे भी दितान्त को बढ़ावा मिला ।
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उदाहरण के लिए एक व्यक्ति है । जिसके पास बहुत सारी मिट्टी है और दूसरा व्यक्ति जिसके पास एक कुम्हार का चाक है । तो जिसके पास मिट्टी है, उसके पास बर्तन बनाने की तकनीक नहीं है, यानी उसको बर्तन बनाना नहीं आता और जिसके पास चाक है यानी मशीन है, वह बर्तन तो बना सकता है लेकिन उसके पास मिट्टी नहीं है । अगर वह एक दूसरे से हाथ मिला लें, तो इससे दोनों का फायदा हो सकता है ।
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इस तरीके से अमेरिका को कच्चे माल की आवश्यकता थी और सोवियत संघ को तकनीक की । लेकिन दोनों के शीतयुद्ध के कारण खराब थे । शीतयुद्ध को खत्म करना बहुत जरूरी था । तो संबंधों में सुधार आने लगा और दितान्त को तेजी से बढ़ावा मिला ।
4 परमाणु बमों में संतुलन का आना
दितान्त का एक कारण परमाणु बम में संतुलन में भी माना जा सकता है, क्योंकि जब अमेरिका ने सबसे पहले परमाणु बम का आविष्कार किया तो दुनिया में अमेरिका सबसे ज्यादा ताकतवर हो गया । लेकिन जब सोवियत संघ ने भी परमाणु बम का आविष्कार कर लिया तो दोनों देशों में शक्ति संतुलन आ गया । दोनों देशों की शक्ति बराबर हो गई । इससे भी दितान्त को बढ़ावा मिला और पांचवा कारण है ।
5 तीसरे विश्वयुद्ध का डर
शीत युद्ध एक मनोवैज्ञानिक युद्ध था । इसे गर्म युद्ध से भी खतरनाक युद्ध माना जाता है । दोनों देशों को यह पता था कि अगर युद्ध हुआ तो यह युद्ध तीसरे विश्वयुद्ध में बदल सकता है । दोनों ही महाशक्तियां तीसरे विश्वयुद्ध से बचना चाहती थी । इससे भी दितान्त को तेजी से बढ़ावा मिला ।
6 यूएन में तीसरी दुनिया के देशों की बढ़ती संख्या
संयुक्त राष्ट्र संघ शीतयुद्ध का अखाड़ा बन चुका था । लेकिन जब यूएन के अंदर तीसरी दुनिया के देशों की संख्या बढ़ने लगी तो । तीसरी दुनिया के देशों ने विश्व शांति और सहयोग को बढ़ावा दिया और अपनी आवाज यूएन के अंदर बुलंद करनी शुरू कर दी । जिससे शीतयुद्ध की गूंज धीमी पड़ने लगी । इससे भी दितान्त को बढ़ावा मिला । तो दोस्तों यह थे दितान्त के कारण । अब बात करते हैं, इसके प्रभाव की ।
दितान्त का अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव
अब हम जानते हैं कि दितान्त का अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा ।
1 महाशक्तियों के बीच सहयोग
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया दो विचार धारी विरोधियों वाली बन चुकी थी । लेकिन दितान्त की वजह से महा शक्तियों के बीच सहयोग पैदा हुआ । जिससे आपसी व्यापार को बढ़ावा मिला और संबंधों में सुधार आने लगा । संबंधों में इतना ज्यादा सुधार आने लगा कि दोनों देशों के नेता एक दूसरों के देशों की यात्रा करने लगे । जैसे कि कभी निक्सन मास्को जाते कभी बिरजने वाशिंगटन की यात्रा करते । तब ऐसा नहीं लगता था कि अमेरिका और सोवियत संघ अलग-अलग देश हैं । और दूसरा प्रभाव है ।
2 यूरोप की एकजुटता में वृद्धि
1945 के बाद यूरोप महाद्वीप दो हिस्सों में बांट चुका था ।।पूर्वी यूरोप और पश्चिमी यूरोप । पूर्वी और पश्चिमी यूरोप में ना तो आपस में व्यापार होता था, ना ही नागरिकों का आदान-प्रदान होता था । लेकिन दितान्त की वजह से पूर्वी और पश्चिमी यूरोप में आपसी व्यापार को बढ़ावा मिला । सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला । अब ऐसा नहीं लगता था कि यूरोप का कभी बंटवारा हुआ था । इस तरीके से दितान्त की वजह से यूरोप की एकजुटता बढ़ने लगी ।
3 तीसरे विश्व युद्ध के डर से छुटकारा
तीसरे विश्वयुद्ध के डर से छुटकारा । 1960 के दशक में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हथियारों की होड़ बढ़ने लगी और यह हथियार इतने ज्यादा बन गए कि ऐसा लगने लगा कि अब दुनिया के ऊपर तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा मंडराने लगा है । लेकिन दितान्त की वजह से तीसरे विश्वयुद्ध के खतरे से मुक्ति मिल गई । जैसे कि क्यूबा मिसाइल संकट के बाद दोनों महा शक्तियों ने आपसी समस्याओं का समाधान करने के लिए हॉट लाइन (telephone line) स्थापित की ताकि किसी भी संकट के समय दोनों देश के नेता आपस में बातचीत कर सके और संकट को तुरंत निपटाया जा सके ।
4 परमाणु हथियारों पर नियंत्रण के लिए प्रयास
जब शीतयुद्ध चल रहा था तो दोनों महाशक्तियों ने परमाणु हथियार बनाए क्योंकि परमाणु हथियार शक्ति का प्रतीक माने जाते थे । परमाणु हथियार की वजह से दुनिया में बहुत खतरनाक युद्ध भी हो सकता था । दोनों ही महाशक्तियों को पता था कि अगर परमाणु युद्ध होता है, तो इसका बहुत खतरनाक परिणाम निकलेगा । इसलिए दोनों महाशक्तियों ने परमाणु हथियारों को नियंत्रण करने के लिए प्रयास किए । इससे भी दितान्त को बढ़ावा मिला ।
5 गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह
ऐसा माना जाता है कि गुटनिरपेक्षता की शुरुआत दितान्त की वजह से हुई थी । अब दितान्त की वजह से ही शीतयुद्ध में ढील आने लगी जिसके कारण गुटनिरपेक्षता को खत्म कर दिया । गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है । वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का यह मानना था कि गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता अब भी बनी हुई है । क्योंकि गुटनिरपेक्षता की वजह से ही तीसरी दुनिया के देश किसी महाशक्ति के शिकार नहीं बनना चाहते । जिससे तनाव में कभी भी वृद्धि नहीं हो सकती है । इस तरीके से गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता बनी हुई है ।
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तो दोस्तों यह था दितान्त यानी तनावशेथिल्य और उसके कारण और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर उसके प्रभाव । अगर आपको यह Topic अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें |
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