प्लेटो का न्याय सिद्धान्त

Justice Theory of Plato in Hindi

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका स्वागत है और आज हम बात करेंगे पश्चिमी राजनीति जगत में (Western Politics) प्लेटो के न्याय के सिद्धांत के बारे में (Justice System of Plato in hindi) । प्लेटो यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक और गणितज्ञ थे । पश्चिमी जगत की दार्शनिक पृष्ठभूमि बनाने में प्लेटो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।

प्लेटो का जन्म एथेंस के एक कुलीन परिवार में हुआ था और उनको अफलातून के नाम से भी जाना जाता था । प्लेटो को दर्शन शास्त्र और राजनीतिक चिंतन के प्रथम जनक के रूप में भी जाना जाता है । क्योंकि प्लेटो से पहले किसी ने भी राजनीतिक दर्शन को इस क्रमबद्ध तरीके से और व्यवस्थित रूप में नहीं जाना था । प्लेटो एक महान दार्शनिक थे और उसके संपूर्ण चिंतन पर उसके गुरु सुकरात का प्रभाव पड़ता है । इसी कारण अनेक विद्वानों ने प्लेटो के बारे में बहुत सारे विचार दिए हैं ।

मैक्सी के अनुसार-

“प्लेटो में सुकरात पुनर्जीवित हो गए हैं ।”

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प्लेटो को पश्चिमी जगत का महान समन्वयक (Coordinator) माना जाता है, क्योंकि Plato ने दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं ‘हेराक्लाइटस और परमेनीडीज़’ को आपस में संबंधित करने का प्रयास किया है ।

प्लेटो के अनुसार-

“वास्तविकता विखंडित है ।”

प्लेटो ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ रिपब्लिक (Republic) यानी गणतंत्र में अपना न्याय का सिद्धांत दिया है । न्याय गणतंत्र का केंद्रीय विषय है । इस वजह से प्लेटो ने अपने ग्रंथ रिपब्लिक को न्याय से संबंधित यानी कंसर्निंग जस्टिस का नाम भी दिया है ।

प्लेटो एक आदर्शवादी विचारक थे और अपने आदर्श राज्य की स्थापना में प्लेटो ने न्याय को सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व माना है ।

बार्कर के अनुसार-

“चाहे वह सोफिस्ट वर्ग की धारणाओं का विरोध कर रहा हो या समाज की विद्यमान व्यवस्था में सुधार के लिए प्रयत्नशील हो । न्याय प्लेटो के विचार का मूल आधार रहा है ।”

प्रचलित न्याय सम्बन्धी धारणाओं की आलोचना

प्लेटो ने प्रचलित न्याय सम्बन्धी धारणाओं की आलोचना की है, जो की प्लेटो से पहले के विद्वानों ने दी थी । अपने न्याय संबंधी विचारों का प्रतिपादन करने से पहले प्लेटो ने तत्कालीन समय में प्रचलित न्याय संबंधी धारणाओं का खंडन किया है । प्लेटो ने इन सिद्धांतों को निम्नलिखित भागों में बांटा है ।

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1) परंपरागत सिद्धांत

इस सिद्धांत में सिफालस और पॉलीमार्कस के अनुसार-

“सत्य बोलना और दूसरों के ऋण को चुका देना ही न्याय है ।”

“मित्र के साथ श्रेष्ठ और शत्रु के साथ घृणित व्यवहार करना न्याय है ।”

प्लेटो के अनुसार यह दोनों ही सिद्धांत दोषपूर्ण और अनुचित हैं । प्लेटो ने इन न्याय की धारणाओं का खंडन किया है । प्लेटो के अनुसार सत्य बोल कर अपने देश की गुप्त जानकारी देना अन्याय है और रेट स्वस्थ मित्र से अस्त्र ले और बाद में वह मित्र स्वास्थ्य मनोवृति का ना रह जाए तो वापस लौट आना ठीक नहीं ।

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मित्र और शत्रु क्या पता मित्र नाम का मित्र वह वास्तव में शत्रु हो व्यवहार में कई बार ऐसा होता है

2) क्रांतिकारी सिद्धान्त

थ्रेसीमेक्स के अनुसार

“शक्ति ही सत्य है और शक्तिशाली का हित साधन ही न्याय है ।”

प्लेटो द्वारा शक्तिशाली व्यक्ति या शासक वर्ग अपने हितों के लिए कार्य करता है और अन्याय न्याय से बेहतर है ।

प्लेटो के अनुसार शासन एक कला है और शासक का कर्तव्य जनता के कष्टों को दूर कर उनके हित में कार्य करना होता है और अन्याय किसी भी दृष्टि से न्याय से श्रेष्ठ नहीं माना जा सकता, क्योंकि सुख, दुख से सदैव श्रेष्ठ होता है ।

3) कार्यकरण सिद्धान्त

इस सिद्धांत के अनुसार ग्लाउकन ने कहा है कि-

“न्याय एक कृतिम वस्तु है और इसका आधार, कोई सार्वभौमिक नियम ना होकर निरंतर बदलती हुई परंपराएं हैं ।”

इस तरह न्याय का डर एक बच्चा है ।

इसके अंतर्गत प्लेटो का मानना है कि न्याय समझौते पर आधारित कोई बाहरी वस्तु नहीं है । परंतु मानव आत्मा का आंतरिक कोण है । न्याय को डर तथा शक्ति से नहीं बल्कि स्वाभाविक रूप से प्राप्त किया जाता है ।

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इन तीनों पारस्परिक धारणाओं के उचित तर्कों के आलोचना के उपरांत प्लेटो ने अपनी न्याय संबंधी धारणा का प्रतिपादन किया है, जोकि निम्नलिखित है ।

प्लेटो का न्याय सिद्धान्त

आइये अब बात करते हैं, प्लेटो द्वारा प्रतिपादित न्याय के सिद्धान्त के बारे में । सिफालस, पोलिमर्क्स, थ्रेसीमेक्स तथा ग्लाउकन द्वारा न्याय की जिन धारणाओं का प्रतिपादन किया है, उन तीनों की एक समान विशेषता है कि यह न्याय को बाहरी वस्तु मानते हैं । जबकि प्लेटो उसे आंतरिक व स्वाभाविक मानता है ।

प्लेटो के अनुसार न्याय का आधार ना तो परंपरा है और ना ही व्यक्ति की स्वार्थ पड़ता या भय की भावना है, बल्कि प्लेटो के अनुसार-

“न्याय मानव के अंत करण की वस्तु है । न्याय मानव की आत्मा की उचित व्यवस्था तथा मानव स्वभाव की प्राकृतिक मांग है ।”

इसी आधार पर प्लेटो न्याय के पूर्व प्रतिपादित धारणाओं का खंडन करके उसे अस्वीकार कर देते है ।

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प्लेटो द्वारा न्याय के दो रूपों का वर्णन किया जाता है

1 व्यक्तिगत

2 सामाजिक या राज्य से सम्बंधित

सबसे पहले न्याय के प्रथम रूप यानी व्यक्तिगत की बात करते हैं । प्लेटो के अनुसार मानवीय आत्मा में तीन तत्व या नैसर्गिक प्रवृतियां पाई जाती हैं ।

विवेक (Wisdom)

साहस (Spirit) और

तृष्णा (Appetite)

यह तीनों गुण जब मानव मस्तिष्क में उचित अनुपात में विद्यमान रहते हैं, तभी व्यक्ति न्याय का पालन कर सकता है । तृष्णा, शौर्य और बुद्धि के उचित संबंध से ही व्यक्ति के जीवन में न्याय की सृष्टि होती है ।

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इसके बाद प्लेटो सामाजिक या राज्य के संबंध में न्याय का प्रतिपादन करते है । प्लेटो के अनुसार-

“राज्य मानव मस्तिष्क का व्यापक रूप है ।”

राज्य बलूत के पेड़ों अथवा चट्टानों से नहीं निकलते, बल्कि उन लोगों के मस्तिष्क और चरित्र का परिणाम है, जो उसमें निवास करते हैं । जिस प्रकार व्यक्ति के अंदर तीन तत्व या गुण विद्यमान हैं । उसी प्रकार इन तीनों गुणों के प्रतिनिधि के आधार पर राज्य के तीनों वर्ग होते हैं ।

शासक वर्ग

सैनिक वर्ग और

उत्पादक वर्ग

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आइये इनको विस्तार से जानते हैं । व्यक्ति के वर्ग का निर्धारण उसमें उस तत्व की प्रधानता के आधार पर होता है ।

शासक वर्ग को प्लेटो ने जहां विवेक की प्रधानता या शासन संचालक माना है । वहीं

सैनिक वर्ग को साहस या शौर्य की प्रधानता या रक्षा का दायित्व दिया है । वहीं

उत्पादक वर्ग को प्लेटो ने तृष्णा/ वासना प्रधान/ आर्थिक व भौतिक आवश्यकता की पूर्ति का प्रतीक माना है ।

प्लेटो के अनुसार राज्य में न्याय की उपलब्धि तभी हो सकती है, जबकि उसका प्रत्येक तत्व अपने स्वाभाविक गुणों के अनुसार आचरण करें और अपने धर्म का पालन करें । अर्थात जब शासक निस्वार्थ भाव से जनता के हितों की रक्षा करते हुए शासन करें, सैनिक वर्ग देश की सीमाओं की रक्षा करें तथा उत्पादन वर्ग उपभोग की पर्याप्त सामग्री पैदा करें तभी राज्य में न्याय स्थिर रह सकता है । यह कर्तव्य पालन है । जो हर वर्ग को दिए गए दायित्वों के अनुसार हो ।

न्याय क्या है और कहाँ बसता है ?

प्लेटो के अनुसार न्याय क्या है और इसका निवास स्थान क्या है ? प्लेटो के द्वारा-

न्याय

“अपने निश्चित स्थान में अपने कर्तव्यों का पालन करना तथा दूसरों के कर्तव्यों में हस्तक्षेप ना करना ही न्याय है ।”

और न्याय का निवास

“न्याय का निवास अपना निश्चित कर्तव्य पूरा करने वाले प्रत्येक नागरिक के मन में है ।”

प्लेटो के न्याय की यह धारणा कार्य विशेष के सिद्धांत पर आधारित है कि व्यक्ति को ऐसा कार्य कुशलतापूर्वक करना चाहिए, जो उसके स्वभाव के अनुकूल हो । इससे एक व्यक्ति एक ही कार्य अच्छाई से और अधिक मात्रा में कर सकेगा । ऐसा करने से सभी व्यक्तियों की आवश्यकताएं पूरी होंगी और राज्य भी आत्मनिर्भर बन सकेगा ।

प्लेटो के न्याय सिद्धांत की विशेषताएं

1) प्लेटो का न्याय बाहरी जगत की वस्तु न होकर आंतरिक स्थिति है । स्वाभाविक होने के कारण इसे थोपा नहीं जा सकता । यह व्यक्ति की आत्मा के गुण हैं ।

2) प्लेटो का न्याय कार्य की विशिष्टता का सिद्धांत है, अर्थात व्यक्ति को अपने स्वाभाविक गुणों के आधार पर वही कार्य करें जिसमें वह दक्ष हो तथा पारंगत हो ।

3) साथ ही यह किसी व्यक्ति के कार्यों में अहस्तक्षेप की बात करता है, ताकि व्यक्ति स्वतंत्रता पूर्वक अपने कार्य करें ।

डॉ रूज़ के अनुसार-

“अपने कार्य को करना और दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप ना करना ही न्याय है ।”

4) प्लेटो का न्याय वास्तव में यह मानता है कि व्यक्ति तथा समाज में कोई संघर्ष नहीं है, बल्कि व्यक्ति समाज का अंग है और समाज के विकास में ही राज्य का व्यक्ति का विकास निहीत है ।

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5) प्लेटो का न्याय समाज में एकता का सूत्र है । प्लेटो का न्याय सिद्धांत सीधा व सरल है । परंतु तत्कालीन समय और परिस्थितियों में इसका महत्व बहुत अधिक है ।

प्लेटो के न्याय सिद्धांत की आलोचना

अनेक विशेषता होने के कारण प्लेटो के न्याय सिद्धांत में आलोचना की भी कमी नहीं है । कई विचारकों में प्लेटो के न्याय सिद्धान्त का खंडन किया है । आलोचनाएं निम्नलिखित हैं ।

1 प्लेटो का न्याय कानूनी धारणा नहीं बल्कि एक नैतिक धारणा है । यह मनुष्य को केवल अपने कर्तव्यों तक सीमित करने वाली भावना मात्र है ।

2 कार्य विशेषकरण से व्यक्ति की प्रतिभा का हनन होता है तथा उसका सर्वागीण विकास संभव नहीं हो पाता ।

3 प्लेटो ने केवल व्यक्ति के कर्तव्यों पर बल दिया है, उसके अधिकारों पर कोई ध्यान नहीं दिया । क्योंकि समाज मे हर व्यक्ति के अपने अधिकार और कर्त्तव्य हैं ।

4 इस सिद्धांत में मनुष्य के तीन गुणों के आधार पर समाज को 3 वर्गों में विभक्त कर दिया गया है । लेकिन गुणों के निर्धारण का आधार क्या होगा,  इसके संबंध में नहीं बताया गया है ।

5 प्लेटो के न्याय सिद्धांत को वर्तमान समय में बड़े तथा अधिक जनसंख्या वाले राज्य पर लागू नहीं किया जा सकता है ।

6 इससे समाज में एकता नहीं बल्कि वर्गीय आधार पर  बिखराब होने की संभावना ज्यादा बनी रहती है तथा वर्गीय आधार पर विशेष अधिकारों को उचित नहीं ठहराया जा सकता ।

7 इस सिद्धांत का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह राज्य में केवल एक वर्ग को शासन सत्ता देकर, अन्य वर्गों को शासन से वंचित कर देता है । जिससे शासक की निरंकुशता की संभावना बढ़ जाती है ।

स्पष्ट तौर पर अगर कहा जाए तो प्लेटो का न्याय सिद्धांत एक कानूनी व वैधानिक धारणा न होकर एक नैतिक सिद्धांत है । जो तत्कालीन एथेंस में एकता सामंजस्य तथा व्यवस्था की दृष्टि से उचित था । जो उस समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाये गए थे ।

तो यह था दोस्तों प्लेटो का न्याय सिद्धांत, उसकी विशेषताएं, आलोचनाओं के बारे में । अगर आपको Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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