Process of Amendment in Constitution
Hello दोस्तो ज्ञानउदय में आपका स्वागत है, आज हम बात करेंगे भारतीय संविधान में संशोधन की प्रकिया (Process of Amendment in Indian Constitution) के बारे में । साथ ही साथ जानेंगे इसका संविधान में इसकी व्यवस्था और इसके प्रयोग के बारे में । तो जानते हैं, आसान भाषा में ।
किसी विधेयक में समय या परिस्थितियों के अनुसार में बदलाव या सुधार किया जाना ही संशोधन (Amendment) कहलाता है । भारत में संविधान संशोधन के लिए संसद के अलावा किसी अन्य सांवैधानिक संस्था या जनमत संग्रह की व्यवस्था नहीं है । संसद द्वारा ही भारत में संविधान में संशोधन किया जाता है । संविधान में संशोधन-प्रक्रिया इसलिए दी गयी है ताकि संविधान ‘समय के अनुसार बदलती परिस्थितियों’ को ध्यान में रख सके ।
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भारतीय संविधान में संशोधन प्रकिया की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 368 में दी हुई है । इसी अनुछेद में नियम और प्रकिया के अनुसार संशोधन किया जा सकता है ।
संसद के किसी भी सदन में संविधान में संशोधन के लिए विधेयक को प्रस्तुत किया जा सकता है ।
संविधान में किसी संशोधन का प्रस्ताव या विधेयक को दोबारा स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं है ।
संविधान में किसी संशोधन का विधेयक संसद के एक सदन में पारित होने के बाद वही विधेयक उसी रूप में दूसरे सदन में पारित होना चाहिए। साथ ही साथ कोई भी संविधान संशोधन विधेयक दोनों ही सदनों में अलग अलग विशेष बहुमत से एक ही रूप में पारित होना चाहिए ।
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अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान केवल सामान्य विधेयकों के माना जाता है, संविधान संशोधन विधेयकों के लिए नहीं । क्योंकि ऐसे में अनुच्छेद 368(2) के तहत संशोधन विधेयकों के लिए विशेष बहुमत का प्रावधान निरर्थक हो जाएगा । दोनों सदनों में मतभेद और गतिरोध होने पर संविधान संशोधन विधेयक के लिए संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है ।
संसद के दोनों सदनों में पारित संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति को मंजूरी देना ही होता है । संविधान संशोधन विधेयक के मामलों में राष्ट्रपति को किसी भी प्रकार की वीटो शक्ति नहीं है । क्योंकि संविधान (24वां) संशोधन अधिनियम, 1971 के द्वारा अनुच्छेद 368 के खंड (2) में “अनुमति देगा“ शब्द रखे गए हैं । इसलिए संविधान संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए भी नहीं लौटा सकता ।
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राज्य विधानमंडल संविधान में किसी भी प्रकार के संशोधन के लिए, किसी भी प्रकार की पहल नहीं कर सकते । हालाँकि संविधान के कुछ उपबंधों में संशोधन के लिए राज्य के विधानमंडलों का अनुमोदन ज़रूरी है, लेकिन संविधान संशोधन संसद का कार्य है ।
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संशोधन की प्रकिया में बाधा
हालाँकि संविधान संशोधन की प्रक्रिया को कठोर कहा जा सकता है क्योंकि इसमें दोनों सदनों द्वारा अलग अलग विशेष बहुमत के साथ-साथ कुछ मामलों में आधे से अधिक राज्यों के विधानमंडलों के अनुसमर्थन की भी आवश्यकता होती है । लेकिन फिर भी भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया उतनी भी कठिन नहीं है, क्योंकि अमेरिका जैसे अनेक परिसंघ संविधानों में तीन चौथाई राज्य विधानमंडलों के अनुमोदन (Approval) की आवश्यकता पड़ती है ।
संशोधनों की संख्या
अगर बात की जाए अब तक के संशोधनों की तो भारतीय संविधान में सौ से अधिक संशोधन हो चुके हैं । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि हमारा संविधान बहुत आसान संविधान है । लेकिन इसकी विशेषता यह है कि संविधान के बुनियादी ढांचे और मूलभूत विशेषताओं को बदला नहीं जा सकता । इस तरह भारतीय संविधान न तो कठोर है और न ही नरम बल्कि भारत का संविधान लचीला है ।
संविधान संशोधन की प्रक्रिया
आइये अब बात करते हैं, संविधान संशोधन की प्रक्रिया के बारे में । संशोधन के लिए विशेष प्रकार का बहुमत, साधारण बहुत और विशेष बहुमत के साथ विधानमंडल के अनुसमर्थन के द्वारा किया जाता है, जो कि निम्न प्रकार है ।
1) साधारण बहुमत से संशोधन
संविधान के कुछ उपबंधों का परिवर्तन संविधान का संशोधन नहीं माना जाता । अतः ऐसे प्रावधानों को संसद कानून निर्माण की सामान्य प्रक्रिया से ही बदल सकती है, अर्थात् संसद में साधारण बहुमत से विधेयक पारित करके । नये राज्यों का निर्माण, राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन आदि ऐसे ही विषय है, जिनमें साधारण बहुमत से परिवर्तन किया जा सकता है ।
2) विशेष बहुमत से संशोधन
संविधान के बहुत से उपबंध ऐसे हैं, जिनमें संसद में विशेष बहुमत से विधेयक पारित करके परिवर्तन किया जा सकता है । अर्थात् उस सदन के कुल सदस्य संख्या के आधे से अधिक तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित विधेयक ।
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3) विशेष बहुमत के साथ-साथ आधे से अधिक राज्यों के विधानमंडलों के अनुसमर्थन से संशोधन
परिसंघीय संरचना को प्रभावित करने वाले किसी भी संविधान संशोधन विधेयकों को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत करने से पहले संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग विशेष बहुमत से पारित होने के साथ-साथ आधे से अधिक राज्यों के विधानमंडलों के लिखित संकल्प से समर्थित होना चाहिए ।
कुछ विशेष संशोधन
राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया (अनुच्छेद 54,55), संघ और राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार (अनुच्छेद 73, 162), उच्चतम और उच्च न्यायालय, विधायी शक्तियों का वितरण, सातवीं अनुसूची, संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व एवं स्वयं अनुच्छेद 368 आदि उपबंध इसी रीति से संशोधित किए जा सकते हैं ।
तो दोस्तो ये था संविधान में संशोधन की प्रकिया के बारे में । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!