Aristotle views on revaluation in hindi
Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, पश्चिमी राजनीति सिद्धांत में अरस्तु के क्रांति संबंधी विचारों (Aristotle views on revaluation) के बारे में । इस Post में हम जानेंगे अरस्तु द्वारा बताए गए क्रांतियों के कारण और उनके निवारण के उपाय । तो चलिए शुरू करते हैं आसान भाषा में ।
अरस्तु के समय यूनान का राजनीतिक जीवन अस्थिर और परिवर्तनशील था । अरस्तु ने इस राजनीतिक अस्थिरता के परिणाम देखे थे । इस तरह अस्थिरता को दूर करने के उपाय खोजना बहुत आवश्यक था । यूनानी नगर, राज्य की एक अन्य प्रमुख विशेषता थी । राज्यों के स्वरूप और उनके संविधान में परिवर्तन होता आ रहा था । राज्य और संविधान में परिवर्तन को अरस्तू ने क्रांति के रूप में माना है ।
अरस्तु की क्रांति का मतलब उस अर्थ में नहीं माना जाता, जिस अर्थ में हम इंग्लैंड, फ्रांस या रूसी क्रांति को मानते हैं । अरस्तु के अनुसार क्रांति का मतलब है, राज्य, संविधान या शासन सत्ता में होने वाले प्रत्येक छोटे या बड़े परिवर्तन । जिनको अरस्तू ने क्रांति के रूप में माना है ।
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सामान्य रूप से क्रांति का अर्थ है, एक व्यवस्था को बदलकर उसके स्थान पर किसी नई व्यवस्था को स्थापित करना तथा सुधार भी इस व्यवस्था का रूप है । जिसके अंतर्गत उसकी कमियों को दूर करके और समस्याओं का निवारण किया जाता है ।
क्रांति के कारण
अरस्तु के अनुसार क्रांति के तीन सर्वप्रमुख कारण हैं, जिनमें पहला सामान्य, दूसरे नंबर पर विशेष, तथा तीसरे नंबर पर विशेष शासन की व्यवस्था । के रूप में जाने जाते हैं । आइए अब इन कारणों को विस्तार से जान लेते हैं ।
1) क्रांति का प्रथम सामान्य कारण
अरस्तु के अनुसार क्रांति का सर्वप्रथम सामान्य कारण असंतुष्टता है और इसके अंतर्गत दो कारण आते है, i) असमानता तथा ii) अन्याय । असमानता और अन्याय ही वह मुख्य परिस्थितियां हैं, जो क्रांति की संभावना को उत्पन्न और बढ़ावा देती हैं ।
अरस्तु के अनुसार समानता के दो रूप हैं, i) पहला पूर्ण समानता अथवा ii) अनुपातिक समानता ।
पूर्ण समानता से तात्पर्य है, सभी व्यक्ति समान है । इस कारण उनके साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए ।
अनुपातिक समानता से आशय है, सामान लोगों के साथ समान व्यवहार तथा असमानों के साथ असमान व्यवहार । तभी समानता स्थापित की जा सकती है ।
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इस प्रकार पूर्ण समानता और अनुपातिक समानता का विरोध ही क्रांति को जन्म देता है ।
अन्याय के रूप में, असंतोष से व्यक्ति के अंदर यह भाव उत्पन्न होता है कि वह जितना पाने के योग्य है, उसे उससे कम मिल रहा है तथा दूसरे वर्ग को जितना मिलना चाहिए था, उसे उससे अधिक मिल रहा है । क्रांति का मूल, अन्याय का भाव है ।
2) क्रांति का दूसरा कारण है विशेष रूप
अरस्तु के अनुसार विशेष कारणों में जो प्रमुख कारण है, वह निम्नलिखित है ।
जब कोई शासक, जनता के हित में कार्य न करके अपने निजी हित के लिए कार्य करता है ।
जब समाज के कुछ लोग अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगते हैं ।
जब शासक वर्ग किसी को विशेष सम्मान देता है या किसी को अपमानित करता है ।
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इसी तरह किसी से घृणा भी क्रांति को जन्म देती है । जब सत्ताधारी वर्ग शासितों से या सामान्य जनता से घृणा करने लगते हैं ।
इस प्रकार भय भी क्रांति का जनक माना जाता है । अपराधी ढंग से या उसके डर से बचने के लिए तथा सामान्य जन अपने साथ होने वाले अन्याय से बचने के लिए इस उपाय को अपनाते हैं ।
जातियों की विभिन्नता भी क्रांति के लिए उत्तरदाई मानी जाती है । असमान जातियां या जातीय विभिन्नता से राष्ट्र में एकता की भावना नहीं आ पाती ।
इसी प्रकार से परस्पर विरोधी वर्गों का संतुलित होना भी क्रांति का कारण समझा जाता है ।
3) विभिन्न शासन प्रणालियों में क्रांति के कारण
अरस्तु के अनुसार एक तंत्र में पारिवारिक क्लेश, परस्पर घृणा, द्वेष तथा शासक द्वारा जनता पर अत्याचार से जनता शासक अथवा राजा के प्रति विद्रोह कर देती है ।
इसी तरह कुलीन तंत्र में शासन में भाग लेने वाले व्यक्तियों की संख्या सीमित होती है । विभिन्न वर्गों में उचित सामंजस्य ना होने के कारण भी जनता क्रांति कर देती है ।
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इसी तरह प्रजातंत्र में नेताओं या नेतृत्व की अधिकता के कारण क्रांति होती है । यह नेता निर्धनों या सामान्य जनता को अपने पक्ष में लेकर धन वालों के विरुद्ध क्रांति कर देते हैं ।
क्रांतियों के निवारण के उपाय
अरस्तु ने विभिन्न प्रकार की क्रांतियों के बारे में बताया है । आइए अब जानते हैं, क्रांतियों के निवारण के क्या-क्या उपाय हैं, जो अरस्तू ने हमें बताएं हैं । अरस्तु क्रांति के कारणों की खोज के साथ-साथ उनके निवारण के उपाय भी हमें बताता है । इसके लिए अरस्तु समस्या की तह तक जाता है कि क्रांति उत्पन्न ही ना हो ।
राज्य में किसी भी वर्ग में शक्ति का केंद्रीकरण नहीं होना चाहिए । इसके कारण विद्रोह होने की प्रबल संभावना होती है ।
शासक और शासितों में सद्भावना पूर्ण विश्वास और संबंध होना चाहिए, शासकों के प्रति विश्वास का भाव होना आवश्यक है ।
जनता में संविधान और न्याय के प्रति आस्था बनाए रखना भी क्रांति से बचने का एक उपाय माना जाता है । यह कार्य उचित शिक्षा द्वारा संभवत माना जाता है ।
जब जनता मन और स्वभाव से कानूनों का पालन करें तथा लोगों के मन में कानून के प्रति निष्ठा हो तथा किसी भी व्यक्ति को कानून तोड़ने की आजादी ना हो ।
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राज्य की ओर से लोगों में आर्थिक असमानता को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए ।
शासन में भ्रष्टाचार अनिवार्य रूप से क्रांतियों को जन्म देता है तथा शासकों का व्यवहार, उनका आचरण और संदेह से वंचित रहे ।
मध्यम वर्ग को बढ़ावा देकर क्रांतियों को टाला जा सकता है । इस प्रकार हर वर्ग में संतुलन की आवश्यकता बहुत जरूरी है ।
नागरिकों में बाहरी आक्रमण का डर भी होना चाहिए जिससे, उनमें आंतरिक विरोध का स्वर ना उठने पाए ।
इसी प्रकार से अलग-अलग वर्गों में सत्ता का वितरण भी धनी और निर्धन दोनों प्रकार से करना चाहिए ।
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निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो अरस्तू द्वारा क्रांति के उपायों की व्याख्या करने का उद्देश्य राज्य को क्रांति से सुरक्षित रखना है । अरस्तु द्वारा बताए गए कारणों में से किसी न किसी कारण से क्रांति हुई है । उनके द्वारा बताए गए उपाय आज भी प्रासंगिक माने जाते हैं । जोकि बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं ।
तो दोस्तों यह था अरस्तु के क्रांति संबंधी विचार इस Post में हमने जाना क्रांतियों के कारण और उनके निवारण के उपाय । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!
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