Human Rights Watch
Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका स्वागत है, और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में मानव अधिकार की संकल्पना (Human Rights Watch) के बारे में । साधारण शब्दों में कहें तो हर व्यक्ति को अपना विकास करने और आगे बढ़ने के लिए कुछ अधिकारों की आवश्यकता होती है । अधिकारों को व्यक्ति के ऐसे दावे कहा जाता है, जो समाज द्वारा स्वीकृत हो तथा जिनको राज्य द्वारा लागू किया गया हो । यही दावे और अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जिनके बिना व्यक्तियों का विकास असंभव है ।
मानव अधिकार का अर्थ
आइए सबसे पहले हम बात करते हैं, मानव अधिकारों के बारे में कि मानव अधिकार का क्या मतलब होता है । मानव अधिकार ऐसे अधिकार होते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को केवल मनुष्य होने के नाते ही प्राप्त होते हैं । अधिकार मनुष्य की प्रकृति में विद्यमान होते हैं । जो उस व्यक्ति को जीवन जीने के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं । यह व्यक्तियों की योग्यताओं के पूर्ण विकास के साथ सामान्य योग्यताओं में वृद्धि तथा चेतना के प्रयोग द्वारा अपने हितों और आवश्यकताओं को पूरा करने की जरूरी शर्तें होती हैं ।
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यही विचार मानव अधिकारों की अवधारणा का मूल स्रोत है । मानव की नैतिक और सामाजिक चेतना जितनी विकसित होती जाएगी, मानव अधिकारों का क्षेत्र भी उतना ही विस्तृत और व्यापक होता जाएगा । इस तरह से मानव अधिकारों का अस्तित्व किसी विशेष समाज की विशेष परिस्थितियों तथा स्वीकृति पर निर्भर ना होकर, मनुष्य की प्रकृति में ही निहित होते हैं । यह संसार के लोगों द्वारा सुखी तथा समृद्ध जीवन जीने के लिए प्राकृतिक और आवश्यक परिस्थितियां मानी जाती हैं । इससे यह स्पष्ट होता है कि मानव अधिकारों का विचार क्षेत्र बहुत ज्यादा बड़ा है ।
व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकार
यदि बात की जाए मानव अधिकार शब्दावली की तो इसका सबसे पहले इस्तेमाल 20वी शताब्दी के शुरू में हुआ । यह अधिकार मूल प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत पर आधारित होते हैं । प्राकृतिक अधिकार इस तर्क पर आधारित है कि यह अधिकार व्यक्ति को व्यक्ति होने के नाते प्राप्त होते हैं । अतः यह मनुष्य की प्रकृति में ही निहित होते हैं तथा कानून, राज्य या किसी अन्य संस्था की देन नहीं है ।
व्यक्तियों के अधिकारों का इतिहास
सन 1776 में अमेरिका की स्वाधीनता की घोषणा थी । तभी से इस तथ्य की स्पष्ट रूप से पुष्टि की गई थी कि
“सभी व्यक्ति जन्म से समान हैं तथा ईश्वर ने उन्हें जीवन, स्वतंत्रता तथा सुख का अधिकार प्रदान किया है ।”
इसी दिशा में सन 1789 को ‘मानव तथा नागरिक अधिकारों’ की घोषणा की गई । इस घोषणा के द्वारा ऐसे अधिकारों की सूची बनाई गई जो प्राकृतिक और अपरिहार्य हैं अर्थात यह बताया गया है कि अधिकार प्रकृति की देन है । कोई इनका हनन नहीं कर सकता और यह किसी दूसरे व्यक्ति को भी हस्तांतरित नहीं किए जा सकते । इसके बाद उदारवादी लोकतंत्र में राज्यों के उदय होने के बाद सामाजिक आर्थिक अधिकारों की मांग से कल्याणकारी राज्य का उदय हुआ । इस तरह मानव अधिकारों की चेतना एक माननीय विश्व व्यवस्था की मांग करती है जिससे मानव के अधिकारों के रूप को एक दिशा मिल सके ।
इस प्रकार मनुष्य को मानव अधिकार बीसवीं शताब्दी में सामने आए लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मानव अधिकारों को एक सुखी और समृद्ध जीवन जीने के लिए एक नई पहचान मिली । बीसवीं सदी में अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस विचार को अपनाने के लिए आगे आया कि मानव अधिकार और स्वतंत्रता, सभी के ध्यान का साझा विषय हैं तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय का उत्तरदायित्व है कि वह ऐसे कदम उठाए जिससे सबके सभी मानव अधिकारों के प्रति चेतना विकसित हो तथा इनकी सुरक्षा और विकास संपूर्ण मानवता का साझा उद्देश्य बन जाए । दुनिया के सभी व्यक्तियों के मानव अधिकारों के प्रति सुरक्षा तथा सम्मान के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा एक महत्वपूर्ण कदम 10 दिसंबर 1948 को को उठाया । जिसके द्वारा Universal Declaration of Human Rights यानी मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की गई । जिसके द्वारा एक घोषणापत्र सामने आया ।
मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा
आइए आप जानते हैं मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के बारे में । 10 दिसंबर 1948 को मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए यह एक स्वर्णिम दिन बन गया, क्योंकि इसी दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को जारी किया । इस संगठन में अपने सदस्य देशों को संबोधित किया कि उनकी राजनीतिक स्थिति कैसी भी क्यों ना हो, वह अपने यहां इन घोषणाओं का व्यापक प्रचार और प्रसार करें । वास्तव में यह घोषणा एक स्वतंत्र लोकतांत्रिय और कल्याणकारी राज्य के लिए उपयुक्त है और मानव अधिकारों की एक व्यापक योजना प्रस्तुत करती है ।
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अधिकारों के इस घोषणा पत्र में एक प्रस्तावना तथा 30 अनुच्छेद है । जिसमें नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का वर्णन किया गया है । जो कि निम्न प्रकार है ।
मानव अधिकारों की घोषणापत्र की प्रस्तावना
सबसे पहले अगर प्रस्तावना की बात की जाए तो इसमें बताया गया है कि सभी व्यक्तियों को समानता, गरिमा और अप्रकाम्य अधिकारों को मान्यता देकर ही विश्व में स्वतंत्रता की स्थापना की जा सकती है । मानव अधिकारों की अवहेलना और अवमानना ऐसे बर्बरता पूर्ण रूप में हमारे समक्ष आया है कि इसमें संपूर्ण मानवता की अंतरात्मा को झकझोर दिया है । मानव की सबसे बड़ी अभिलाषा ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें हर व्यक्तियों को स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने जीवन को सुखी बनाने के अवसर मिले ।
घोषणा पत्र के अनुच्छेद
आइए अब जानते हैं, घोषणापत्र के अनुच्छेदों के बारे में । जानेंगे उन अधिकारों के बारे में जो दुनिया में हर व्यक्ति को प्राप्त है ।
अनुच्छेद 1 और 2 के द्वारा हर व्यक्ति को विवेकशील प्राणी मानते हुए उनकी गरिमा, स्वतंत्रता, समानता पर बल दिया गया है तथा जाति धर्म भाषा लिंक वर्ण के आधार पर भेदभाव की मनाही की गई है ।
अनुच्छेद 3 से लेकर 5 तक में हर एक व्यक्ति को जीवन स्वतंत्रता तथा सुरक्षा के अधिकार के साथ साथ ही यह व्यवस्था है कि कोई किसी का दास नहीं होगा तथा कोई किसी के साथ अमानवीय और दुर्व्यवहार भी नहीं करेगा ।
अनुच्छेद 6 से 11 तक कानून के समक्ष समानता । सभी को समान काम करने, अनुशासन, कानूनी उपचार, बंदीकरण का तथा निर्वासन से स्वतंत्रता की व्यवस्था करते हुए, यह आग्रह किया गया है कि अभियोग चलाए जाने पर उचित कानूनी प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा ।
अनुच्छेद 12 के अंतर्गत गोपनीयता की सुरक्षा हेतु किसी व्यक्ति के घर परिवार या पत्राचार में अकारण हस्तक्षेप का विरोध किया गया है ।
अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धान्त क्या है ? जानने के लिए यहाँ Click करें ।
अनुच्छेद 13 और 14 के अंतर्गत व्यक्तियों को कहीं भी घूमने फिरने, आने-जाने, रहने या बसने की स्वतंत्रता है तथा उत्पीड़न से बचने के लिए विदेशों में शरण लेने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है ।
अनुच्छेद 15 के अंतर्गत राष्ट्रीयता का अधिकार दिया गया है ।
अनुच्छेद 16 में विवाह तथा परिवार बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है ।
अनुच्छेद 17 में संपत्ति का अधिकार की व्यवस्था की गई है ।
अनुच्छेद 18 से20 तक हर व्यक्ति को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता तथा शांतिपूर्ण सभा व संघ बनाने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है ।
अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को अपने देश के शासन में भाग लेने सार्वजनिक पद प्राप्त करने तथा मताधिकार पाने का अधिकार है ।
निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो अनुच्छेद 1 से लेकर 21 तक विश्व के सभी नागरिकों को नागरिक, राजनीतिक, कानूनी अधिकार प्रदान करने का संकल्प व्यक्त किया गया है । जो कि व्यक्ति की सुरक्षा और स्वतंत्रता की आधारशिला है ।
अनुच्छेद 22 से 26 तक व्यक्ति के सामाजिक आर्थिक अधिकारों की व्यवस्था है । इनमें मुख्यत सामाजिक सुरक्षा, रोजगार का अधिकार, समान कार्य, समान वेतन, उपयुक्त परीक्षण कार्य, समिति पारिश्रमिक, आराम, अवकाश, रहन सहन के उपयुक्त अवसर, माताओं द्वारा शिशुओं की विशेष देखभाल, शिक्षा के अधिकार आदि पर बल दिया गया है ।
अनुच्छेद 27 के अंतर्गत सभी को सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने, साहित्य कला व विज्ञान की साधना करने की स्वतंत्रता दी गई है तथा इससे लाभ उठाने का अधिकार भी इसी अनुच्छेद में दिया गया है ।
अनुच्छेद 28 के अंतर्गत उपयुक्त अधिकारों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध कराने की बात भी बताई गई है ।
अनुच्छेद 29 और 30 के अंतर्गत समुदाय के प्रति व्यक्ति के कर्तव्यों पर बल दिया गया है । क्योंकि वही उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास संभव है । यहां यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान कराने के लिए व्यक्ति के स्वतंत्रता और अधिकारों को उचित प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं ।
इस तरह से यह घोषणा आधुनिक लोकतंत्र और कल्याणकारी और सामाजिक न्याय व्यवस्था के लिए एक आदर्श रूपरेखा प्रस्तुत करती है ।
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मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा ने सभी राष्ट्र को प्रभावित किया है । परंतु मौलिक स्वरूप में इस घोषणा का आधार नैतिक ही है, कानूनी नहीं । यह भविष्य के अच्छे व्यवहार के प्रति मानवता की साख की इच्छा और सहयोग का प्रतिनिधित्व करता है ।
भारत में मानव अधिकार
आइये अब भारत में मानव अधिकारों के बारे में जान देते हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ के एक सक्रिय और उत्साही सदस्य होने के कारण भारत के संविधान के अंतर्गत ना केवल मूल अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के रूप में इन अधिकारियों का विधिवत समावेश किया गया है, बल्कि यहां उन्हें अत्यंत प्रभावशाली ढंग से भी व्यक्त किया गया है ।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अनेक निर्णय में संविधान की उपयुक्त व्यवस्थाओं के अलावा समय-समय पर मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को बताते हुए इन निर्णय में लोकतंत्र की भावना के साथ-साथ सामाजिक न्याय को भी बढ़ावा दिया है ।
भारत सरकार ने मानव अधिकारों की रक्षा तथा इन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सन 1993 में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना की है यह आयोग भारत में भारत के सभी मानव अधिकारों के संरक्षण में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है ।
साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र के अनुरूप 10 जनवरी 1994 को मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम पारित किया गया । जिसका उद्देश्य मानव अधिकार का संरक्षण है । उनके लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, राज्य मानव अधिकार आयोग तथा मानव अधिकार न्यायालयों के गठन हेतु अलग अलग प्रकार के प्रावधान करना है । इस अधिनियम के द्वारा निम्न व्यवस्था की गई हैं, जैसे किसी व्यक्ति के मानव अधिकार हनन की जांच करना । संविधान में मानव अधिकार के संरक्षण के लिए वैधानिक उपायों की समीक्षा तथा क्रियान्वयन मानव अधिकार के मार्ग में आने वाली बाधाओं का निराकरण करना । इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन करके उनका प्रभावित किया मन करने हेतु सुझाव तथा देश में मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु जागरूकता उत्पन्न करता है ।
केवल मानव अधिकार आयोग ही नहीं बल्कि सामाजिक और वैधानिक संस्थाएं और पुलिस, जेल प्रशासन और न्यायिक संस्थाएं भी मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए उत्तरदाई मानी जाती है । इसमें संचार साधनों और मीडिया का भी महत्वपूर्ण भूमिका और स्थान रखा गया है ।
वैश्वीकरण के इस युग में आज भी तुच्छ धारणाएं, अस्पर्शयता, जाती व्यवस्थाएं, बच्चों और महिलाओं का शोषण, बाल श्रम, बंधुआ मजदूरी, गरीबी तथा स्वास्थ्य सेवाएं पर तथा पेयजल तथा नियंत्रण आवश्यकताओं के अभाव में घोर विषमता फैली हुई है । साथ ही आतंकवाद का विश्वव्यापी जाल । मानव अधिकारों के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा माना जाता है । साथ ही साथ पुलिस प्रशासन धन, पद तथा प्रभाव के समक्ष लाचार दिखते हैं । इसी कारण जनता का पुलिस से विश्वास उठ गया है ।जेलों में बंद कैदी तरह-तरह की यातनाएं झेल रहे हैं ।
आज मानव अधिकारों के संरक्षण के पहल कुछ तेज हुए हैं । जिसमें न्यायपालिका एक सशक्त भूमिका निभा रही है । भारत में मानव अधिकारों के हनन होने का सबसे प्रमुख कारण जमीनी तथा निचले स्तर पर लोकतांत्रिक ढांचे तथा उसके सफलता पूर्वक चलाने का अभाव भी माना जाता है । वस्तुत मानव अधिकार, प्रजातंत्र और विकास तीनों एक दूसरे से संबंध रखते हैं । जब तक मानव अधिकारों का सम्मान नहीं होगा, तब तक शांति व्यवस्था और सामाजिक-आर्थिक विकास नहीं हो सकता । सभी दल तथा सरकारी जनता के सुख तथा कल्याण का दावा तो करती हैं । परंतु वास्तविकता कुछ और ही होती है । आज भी देश के करोड़ों लोगों के लिए मूलभूत सुविधाएं नहीं उपलब्ध हो पा रही हैं तथा महिलाओं और बच्चों का विभिन्न स्तरों को शोषण हो रहा है ।
भारत में मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु प्रयासरत है तथा इसमें जन शिक्षा तथा जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । इसके अलावा अनेक प्रकार के एनजीओ हैं । जो व्यक्तियों को उनके अधिकारों को दिलाने के लिए प्रयासरत हैं ।
तो दोस्तों यह था मानव अधिकार के बारे में । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!