Realistic Theory of Morgenthau
Hello दोस्तो ज्ञानउदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं अंतरराष्ट्रीय राजनीति विज्ञान में मार्गेनथाऊ के यथार्थवादी सिद्धांत की या यथार्थवाद के छ: सिद्धांत (Realistic Theory of Morgenthau in hindi)। साथ ही साथ हम जानेंगे इसकी आलोचना और मूल्यांकन के बारे में । यह Topic अंतरराष्ट्रीय संबंध से Related है, जोकि राजनीति विज्ञान के 3rd Year और ऑनर्स के 2nd Year के विद्यार्थियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ।
यथार्थवाद का अर्थ
सबसे पहले हम बात करते हैं, यथार्थवाद की । जब भी हम अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बारे में पढ़ते हैं, तो हमें यथार्थवाद को भी समझना जरूरी हो जाता है । अगर इसके शब्द से अर्थ निकाला जाए तो यथार्थ का मतलब हुआ Real यानी वास्तविक । जो कुछ वास्तिवकता में हो रहा है, यानी जो चीज जैसी है, उसे उसको उस रूप में ही दिखाया जाता है । या जो चीज वजूद में है, वह उसके बारे में वैसे ही बताता है । यानी जो घटनाएं इतिहास में हुई, उनका वैसे है वर्णन करना । यथार्तवाद हमें यह बताता है कि दो राज्यों के बीच संबंध कैसे हैं ? यथार्थवाद के संबंध में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की व्याख्या की जाती है ।
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मॉर्गेनथायू का यथार्तवाद
मार्गेनथाऊ एक राजनीतिक विचारक थे, उनका जन्म 1904 जर्मनी में हुआ था । मार्गेनथाऊ पहले विचारक थे, जिन्होंने यथार्थवाद को वैज्ञानिक रूप दिया । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंधों में यथार्थवादी मॉडल के निर्माण का श्रेय मार्गेनथाऊ को दिया जाता है । मॉर्गेनथायू ने कहा है कि हर एक राष्ट्र को केवल अपनी Power बढ़ानी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शक्ति के लिए संघर्ष करना चाहिए । अपनी पुस्तक Politics Among Nations में मार्गेनथाऊ ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यथार्थवाद को एक निश्चित तथा व्यवस्थित सिद्धांत के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है ।
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मार्गेनथाऊ के अनुसार
“अंतरराष्ट्रीय राजनीति अन्य सभी राजनीतियों की तरह शक्ति के लिए संघर्ष है । अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अंतिम उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, इसका तत्कालिक उद्देश्य शक्ति प्राप्त करना होता है ।”
प्रत्येक राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को शक्ति के द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करता है ।
मार्गेनथाऊ के यथार्थवादी 6 सिद्धांत
मार्गेनथाऊ ने यथार्थवाद के 6 सिद्धांतों का वर्णन किया है । इन सभी सिद्धान्तों को मिलाकर संपूर्ण रूप से यथार्थवाद अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत बनता है ।
1 मनुष्य: राजनीति उन वस्तुनिष्ठ नियमों द्वारा संचालित होती है, जिनकी जड़ें व्यक्ति के स्वभाव में है ।
सामान्य समाज की तरह राजनीति भी उन यथार्थवादी अथवा वस्तुनिष्ठ नियमों से संचालित होती है, जो मानव प्रकृति में निहित है । मनुष्य जिन नियमों के तहत क्रियाकलाप करता है, वह सार्वभौमिक हैं और राजनीति के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए इन वस्तुनिष्ठ नियमों का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है । तभी अनुभव व तथ्यों के आधार पर एक तर्कसंगत राजनीतिक सिद्धांत की रचना की जा सकती है ।
2 राष्ट्र हित : राष्ट्रीय हितों को शक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।
यह सिद्धांत मार्गेनथाऊ के यथार्थवादी सिद्धांत का केंद्र बिंदु है । अंतरराष्ट्रीय राजनीति को शक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । मार्गेनथाऊ के अनुसार शक्ति के रूप में परिभाषित हित वह प्रमुख मार्गदर्शक है, जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में यथार्थवाद का पथ प्रदर्शित करता है ।
विदेश नीतियों के निर्धारक सदैव शक्ति को राजनीति का केंद्रीय तत्व मानते हैं तथा इसी आधार पर नीति निर्माण करते हैं । राष्ट्रीय हित हमेशा राष्ट्रीय शक्ति द्वारा सुरक्षित किया जाता है ।
3 राष्ट्रीय हित सदैव परिवर्तनीय हैं ।
किसी भी राष्ट्र की नीतियां तथा कार्य सदैव राष्ट्रीय हितों द्वारा संचालित होते हैं । यह सिद्धांत राष्ट्रीय हित का कोई निश्चित अर्थ मानकर नहीं चलता इसमें यह तत्व नहीं था कि बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार राष्ट्र अपनी नीतियों का निर्माण करें ।
4 शुद्ध नैतिक नियम राजनीति पर लागू नहीं किए जा सकते ।
राजनीतिक यथार्थवाद नैतिक नियमों के महत्व को मानता है । परंतु उनका यह दृढ़ विश्वास है कि अमुक तथा सर्वमान्य स्वरूप के रूप में उन्हें राज्य के कार्यों पर लागू नहीं किया जा सकता । मार्गेनथाऊ का मानना है कि विवेक राजनीति का उच्चतम मूल्य है और नैतिक नियमों का पालन विवेक और उसके परिणाम पर करना चाहिए । राज्य का सबसे प्रमुख गुण अपने अस्तित्व की रक्षा करना है । इससे कोई भी राष्ट्र समझौता नहीं कर सकता ।
5 एक राष्ट्र के नैतिक आकांक्षाओं तथा सार्वभौमिक नैतिक मूल्य में अंतर होता है ।
राजनीतिक यथार्थवाद किसी राष्ट्र के नैतिक मूल्यों को सार्वभौमिक नैतिक मूल्यों से अलग मानता है । राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करने में संलग्न होते हैं ना की सार्वभौमिक नैतिक नियमों के अनुपालन में नैतिक नियम जो सारी दुनिया पर लागू होते हैं । जो कि राष्ट्र पर लागू नहीं किए जा सकते ।
6 अंतरराष्ट्रीय राजनीति की स्वायत्तता ।
राजनीतिक यथार्थवाद राजनीति के क्षेत्र को स्वायत्तता में विश्वास करता है । राजनीति का क्षेत्र उतना ही स्वायत है जितना कि आर्थिक अथवा कानून का क्षेत्र है । एक राजनीतिक यथार्थवादी हमेशा शक्ति के रूप में परिभाषित हितों के बारे में सोचता है ।
मार्गेनथाऊ के सिद्धांत का मूल्यांकन
आइये अब बात करते हैं, यथार्थवादी सिद्धान्त के मूल्यांकन की । इस सिद्धांत की अनेक विचारों ने आलोचना की है, जिसमें रोबर्ट टकर, स्टेनले, हॉफमैन आदि प्रमुख हैं । आलोचना निम्नलिखित आधार पर की गई है ।
यथार्थवाद का यह सिद्धांत ना तो पूरी तरह अनुभव सिद्ध है और ना ही तर्कसंगत ।
मार्गेनथाऊ का सिद्धांत एकपक्षीय तथा एकांगी माना जा सकता है । जो कि हित संघर्ष को सहयोग करता है ।
इस सिद्धांत की जड़े मानव स्वभाव में है, जबकि मानव स्वभाव की वैज्ञानिक व्याख्या नहीं की जा सकती ।
यह सिद्धांत शक्ति के रूप में परिभाषित हित पर बल देता है, जबकि राष्ट्रीय हित को अन्य कारक प्रभावित करते हैं ।
केवल शक्ति के लिए संघर्ष ही नहीं बल्कि शासन का स्वरूप विचार विश्वास राज्य को प्रभावित करते हैं ।
केवल विवेक या बुद्धिमता ही नीतियों का निर्धारण नहीं । यह सिद्धांत मूल रूप से यथार्थवादी नहीं होने चाहिए ।
इस सिद्धांत में स्वायत्तता की धारणा स्पष्ट मानी जाती है ।
मार्गेनथाऊ का सिद्धांत शक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी पक्ष की व्याख्या नहीं करता । यह सामान्य सिद्धांत नहीं है ।
निष्कर्ष
अंततः बहुत सारी आलोचनाओं के बावजूद यह सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय राजनीति के सिद्धांत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । यथार्थवाद को स्वरूप दिशा पूर्ण सिद्धांत नहीं फिर भी यह सिद्धांत विश्व को आदर्शवाद से निकालकर यथार्थवाद की ओर ले जाता है ।
तो यहां तक आप समझ गए हैं कि अंतरराष्ट्रीय संबंध शक्ति के लिए संघर्ष है । अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अंतिम उद्देश्य चाहे कोई भी हो, इसका तात्कालिक उद्देश्य सदैव शक्ति ही होता है । इसके साथ ही साथ आप यह भी ध्यान रखें कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में शक्ति की बात कर रहे हैं । तो हमारा मतलब राजनीतिक शक्ति यानी Political Strength से होता है ।
राजनीति शक्ति का अर्थ है, दूसरों के कार्य गतिविधियों तथा दिमाग पर नियंत्रण । यथार्थवाद के समर्थकों के अनुसार यथार्थवाद सबसे बड़ा सच इतिहास से सबक हैं । अर्थात वास्तविक घटनाएं हैं, ना कि विचारों पर बल ।
तो यह यथार्थवाद के मुख्य बिंदू हैं, जिन्हें आप चाहे याद कर सकते हैं या चाहे तो समझने के लिए अपने दिमाग में रख सकते हैं ।
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तो दोस्तों ये था मॉर्गेनथायू का यथार्तवाद, अगर ये Post आपको अच्छी लगी तो, अपने दोस्तों के साथ Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!