Natural Laws and Rights by Hobbes
Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, पश्चिमी राजनीति विचार के अंतर्गत हॉब्स के प्राकृतिक अधिकार तथा कानून संबंधी विचारों के बारे में । (Natural laws and rights by Hobbes in hindi) जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हॉब्स एक समझौता वादी विचारक हैं । यह राज्य को व्यक्तियों द्वारा किए गए समझौते का एक परिणाम मानते हैं ।
हॉब्स ने अपने समझौता संबंधी सिद्धांत की पुष्टि करने के लिए मानव स्वभाव, व्यक्ति स्वभाव, प्राकृतिक अधिकार तथा प्राकृतिक कानून संबंधी विचार दिए हैं । हॉब्स का कहना है कि प्राकृतिक अवस्था जो थी, वह अराजकता की अवस्था थी और इस अवस्था के अंतर्गत तथा इससे छुटकारा पाने के लिए जो व्यक्ति विवेक के आधार पर नियम बनाते हैं और इन नियमों का पालन करके शांतिपूर्ण जीवन को व्यतीत करते हैं और जीवन के अधिकारों को सुरक्षित रख सकते हैं ।
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हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में किसी के लिए कुछ भी निश्चित नहीं होता । न तो न्याय-अन्याय न ही उचित तथा अनुचित । हर एक व्यक्ति का हर एक वस्तु पर अधिकार होता है । लेकिन किसी की इन पर सामाजिक या कानूनी मान्यता नहीं होती । कानूनी मान्यता ना होने पर यह अधिकार निरर्थक हो जाते हैं और ऐसे में जिसकी लाठी उसकी भैंस का नियम हावी हो जाता है और ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति मृत्यु के डर से ग्रसित रहता है।
हॉब्स का मानना है कि मनुष्य के प्राकृतिक अधिकार समान होते हैं । इस कारण सब को एक दूसरे की हत्या तथा लूटमार का अधिकार मिल जाता है । जिससे जीवन असुरक्षित हो जाता है । साथ ही साथ सभी व्यक्तियों के जीवन को सुरक्षित बनाए रखना चाहते हैं । इसलिए वह प्राकृतिक अवस्था में भी अपनी सुरक्षा के लिए कुछ नियम बना लेते हैं और इन नियमों का पालन करके मनुष्य अराजकता प्राकृतिक अवस्था में भी शांति पूर्वक रह सकते हैं ।
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इस प्रकार प्राकृतिक नियम में मनुष्य को ऐसे कार्य करने से रोका जाता है, जो उसकी सबसे प्रबल इच्छा या जीवन रक्षा के लिए घातक हो । इस तरह से जीवन रक्षा की कामना एक प्राकृतिक अधिकार के रूप में सामने आती है और मनुष्य की तर्क बुद्धि उसे आत्मरक्षा का रास्ता दिखाती है और इन्हीं तर्क बुद्धि के कारण हॉब्स ने प्राकृतिक कानून की संज्ञा दी है ।
Hobbes प्राकृतिक अधिकार और प्राकृतिक नियम का अंतर स्पष्ट करते हुए बताते है कि प्राकृतिक अधिकार प्राकृतिक अवस्था को संघर्ष की स्थिति बना देते हैं, जबकि प्राकृतिक नियम पर आचरण करके मनुष्य प्राकृतिक अवस्था की अराजकता से बच सकते हैं । इस तरह से हॉब्स ने 19 प्राकृतिक नियमों की कल्पना की है, जिसमें से 3 सबसे अधिक महत्वपूर्ण इस तरह से हैं ।
- प्रत्येक मनुष्य को शांति स्थापित करने के लिए पूरी तरह से कोशिश करते रहना चाहिए और शांति प्राप्ति की कोशिश तब तक करनी चाहिए, जब तक की युद्ध सभी जगह अनिवार्य ना हो जाए ।
- प्रत्येक व्यक्ति को शांति तथा आत्म रक्षा के लिए अपने प्राकृतिक अधिकारों को उस सीमा तक त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए । इसलिए प्रत्येक मनुष्य अपने लिए केवल उतनी ही स्वतंत्रता से संतोष करें, जितनी वह अपने विरुद्ध दूसरों को दे सकता है ।
- व्यक्तियों द्वारा उन समझौतों का पालन करना चाहिए जो खुद उसने अपने लिए किए हैं ।
यह निर्देश मनुष्य के लिए केवल परामर्श का दर्जा रखते हैं, कानून का नहीं, क्योंकि यह उसे बाहर से बाध्य नहीं करते । इस तरह से हॉब्स प्राकृतिक कानून को पूर्णता अलौकिक मानते हैं तथा प्राकृतिक कानून को उन नियमों का समुच्चय भी बताते हैं, जिन्हें मनुष्य की बुद्धि इसे आत्मरक्षा के लिए जरूरी मानती है ।
इस तरह से प्राकृतिक नियमों के सिद्धांत के आधार पर व्यक्ति अपने समाज का निर्माण करता । हॉब्स की मान्यता है कि प्राकृतिक नियम शांति की धाराएं हैं । जिनके पालन से व्यक्ति प्राकृतिक अवस्था में सुखी और शांत जीवन बिता सकते हैं । परंतु इन नियमों का आधार केवल स्वार्थ है । कानूनों के पीछे शक्ति होती है, परंतु प्राकृतिक नियम केवल विवेक आदेश है । जो आत्मरक्षा में सहायक हो सकते हैं और इनका पालन ना करने पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है ।
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निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो हॉब्स प्राकृतिक अधिकार तथा प्राकृतिक कानून संबंधी विचार बताते हैं कि यह विचार स्पष्ट नहीं है, बल्कि भ्रम पूर्ण हैं और उनके द्वारा दिए गया प्राकृतिक शब्द भी भ्रामक है । लेकिन इसकी महत्ता इन अर्थों में समझी जा सकती है कि वह इसके द्वारा एक निश्चित राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं, जिसके लिए उनका नाम उल्लेखनिय माना जाता रहा है ।
तो दोस्तों यह था पश्चिमी राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत हॉब्स के प्राकृतिक अधिकार तथा कानून संबंधी विचार । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!
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