नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों में अंतर
नीति निर्देशक तत्व
Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं नीति निर्देशक तत्वों के बारे में । यानी कि Directive Principles in hindi के बारे में । भारतीय संविधान के अंदर सरकार के मार्गदर्शन के लिए नीति निर्देशक तत्वों की सूची दी गई है । नीति निर्देशक तत्व सरकार का धर्म है । सरकार के आदर्श हैं । जो सरकार को सही रास्ता दिखाते हैं । सरकार को इन नीतियों का पालन करना चाहिए । नीति निर्देशक तत्व सरकार की जिंदगी में, सरकार के सामने, धर्म की तरह भूमिका निभाते हैं । जैसे धर्म इंसान को सही रास्ता दिखाता है । उसी तरीके से नीति निर्देशक तत्व सरकार को सही रास्ता दिखाता है । यानी सरकार का मार्गदर्शन करता हैं ।
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मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व में अंतर
नीति निर्देशक तत्व में और मौलिक अधिकारों में बहुत अंतर पाया जाता है । जो कि निम्नलिखित हैं ।
1 नीति निर्देशक तत्व सरकार के लिए जबकि मौलिक अधिकार नागरिकों के लिए ।
2 नीति निर्देशक तत्व पर कोई सीमा नहीं है जबकि मौलिक अधिकारों पर कई सारी सीमाएं लगाइ गई हैं ।
3 नीति निर्देशक तत्वों को न्यायालय द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता जबकि मौलिक अधिकारों को न्यायालय द्वारा लागू किया जा सकता है ।
4 नीति निर्देशक तत्व समाज के हित के लिए आवश्यक हैं जबकि मौलिक अधिकार व्यक्तियों के हित के लिए आवश्यक है ।
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इस तरह से नीति निर्देशक तत्व और मौलिक अधिकारों में बहुत अंतर पाया जाता है । और कभी-कभी इन दोनों के अंदर विरोधाभास भी पैदा होता है । सरकार नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए मौलिक अधिकारों को भी सीमित कर सकती है । जैसे संविधान के 44वें संशोधन 1978 में । संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया गया । पहले ये अधिकार यानि मौलिक अधिकार के 7 थे । लेकिन अब हमारे मौलिक अधिकार 6 गए हैं । एक मौलिक अधिकार निकाल दिया गया है । संपत्ति का मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 31 ।
संपत्ति के अधिकार को निकालने का कारण
संपत्ति के मौलिक अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से क्यों निकाला गया ? दरअसल एक बार देश के अंदर सूखा पड़ा । लाला, बनियों ने अनाज इकट्ठा करके जमा कर लिया और उस अनाज को वह ऊंचे ऊंचे दामों पर बेच रहे थे और लोग भूखे मर रहे थे । सरकार उनकी संपत्ति छीन नहीं सकती थी क्योंकि संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार था । इसलिए सरकार ने 1978 में 44वें संशोधन के जरिए । संविधान में संशोधन करके मौलिक अधिकारों की सूची से संपत्ति के अधिकार को यानी अनुच्छेद 31 को निकाल दिया । और उसे कानूनी अधिकार का दर्जा दे दे गया । अनुच्छेद 300 के जरिए ।
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इस तरह अगर सरकार चाहे नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए मौलिक अधिकारों को भी सीमित कर सकती है क्योंकि संविधान के अंदर बताया गया है कि समाज का हित सबसे ऊपर है । व्यक्ति के हित से भी ऊपर है । सरकार ने समाज के हित को ध्यान में रखते हुए, संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया ।
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