Censorship (Expression of Freedom)
Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, सेंसरशिप (Censorship (Expression of Freedom) के बारे में यानी कि विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में ।
विचार अभिव्यक्ति का इतिहास
विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इतिहास बहुत पुराना है । और प्राचीन काल से ही इस पर बहुत बहस होती रही है । उदारवाद के अंदर यह माना जाता है कि विचारक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए और इस पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए । दूसरी और कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि विचार अभिव्यक्ति पर पाबंदी होनी चाहिए ।
जॉन मिल्टन और जे. एस. मिल ने विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन किया है । जॉन मिल्टन का यह मानना था कि अगर सभी बातों पर खुलकर बहस होती है तो, सच अपने आप सामने आ जाता है । सच्चाई के अंदर ऐसी ताकत होती है कि वह झूठ को अपने आप पराजित कर देता है । इस तरीके से जॉन मिल्टन ने भी जे. एस. की तरह विचार अभिव्यक्ति का पूरा समर्थन किया है । लेकिन
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विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है बल्कि उस पर भी कुछ पाबंदियां लगाई दी गई है । और पाबंदी कुछ बातों को ध्यान में रखकर लगाई जाती है । जैसे कि पाबंदी कानून के द्वारा लगनी चाहिए और दूसरा पाबंदी वैद्य उद्देश्य से प्रेरित हो यानी पाबंदी तब लगाई जाए, जब इससे किसी को नुकसान हो । इस तरीके से विचार अभिव्यक्ति पर कई पाबंदी लगाई जा सकती हैं । अगर पाबंदी लगे तो लेकिन ये पाबंदी ज्यादा नहीं होनी चाहिए । क्योंकि इसका दुरुपयोग भी हो सकता है । जैसे सरकार अपने विरोधियों के विचारों का दबा सकती है या उनको जेल के अंदर डाल सकती है । विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इतिहास को लोकतांत्रिक देशों में ज्यादा महत्व दिया जाता है । और लोकतांत्रिक देशों में विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को मौलिक अधिकार तक का दर्जा दे दिया जाता है ।
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गैर लोकतांत्रिक देशो में अभिव्यक्ति
लेकिन जिन देशों के अंदर लोकतंत्र नहीं होता । वहां पर विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता और अगर कोई गैर लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार दूसरों के सामने प्रकट करने की कोशिश करता है तो उसे सज़ा दी जाती है या मार दिया जाता है । मिसाल के लिए चीन में छात्रों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया । सरकार ने छात्रों को जान से मरवा दिया क्योंकि चीन के अंदर लोकतंत्र नहीं है । और
लोकतांत्रिक देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
जिन देशों में लोकतंत्र है । वहां पर लोग खुलकर अपने विचारों को सबके सामने रख सकते हैं । विचार अभिव्यक्ति पर बहुत लंबे समय से वाद-विवाद भी होता रहा है । लेकिन आमतौर पर यह माना जाता है कि सेंसरशिप होनी चाहिए यानी विचारों पर कुछ पाबंदी लगनी चाहिए ।
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विचारों पर पाबंदी तब लगाई जाती है, जब तीन बातों को ध्यान में रखकर पाबंदी लगाई जाती है । मिसाल के लिए किसी समाज के अंदर बहुत सारे अलग-अलग जाति और धर्म के लोग होते हैं । तो ऐसे में एक व्यक्ति के विचार या एक समुदाय के विचार दूसरे समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं । ऐसे में सेंसरशिप का होना जरूरी है । सेंसरशिप का दूसरा आधार हमें प्लेटो की किताब रिपब्लिक में मिलता है । किताब में बताया है कि समाज के अंदर कुछ ऐसे लोग होते हैं । जिनका दिमाग सच और झूठ, अच्छे और बुरे में फर्क नहीं कर सकता ।
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उनका मन भटक सकता है । इसलिए सेंसरशिप का होना जरूरी है । विचार अभिव्यक्ति पर तीसरी पाबंदी लगाई जा सकती है । जब किसी के विचारों से समाज में किसी तरीके की दिक्कत हो । मिसाल के लिए लोगों के विचार, अपने विचार दूसरों के सामने प्रकट करने का अधिकार है । लेकिन घृणा फैलाना, नफरत फैलाने या अश्लीलता फैलाने का अधिकार नहीं है और इसी तरीके से किसी किताब में विद्रोह भड़काने की संभावना है तो उस किताब पर भी पाबंदी लगा दी जा सकती है । तो दोस्तो ये था विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ।
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