Marxist Theory of Property
संपत्ति का मार्क्सवादी सिद्धांत
संपत्ति के संबंध में मार्क्सवादी विचारधारा बहुत लंबे समय से महत्वपूर्ण रही है । सन 1917 की रूसी क्रांति के बाद, संपत्ति के बारे में यह विचार पैदा हुआ कि निजी संपत्ति नहीं होनी चाहिए ! बल्कि संपत्ति सार्वजनिक ही होनी चाहिए और सार्वजनिक संपत्ति सबसे बेहतर संपत्ति होती है ।
Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, संपत्ति के मार्क्सवादी सिद्धांत (Marxist Theory of Property) के बारे में ।
मार्क्सवादी विचारक ने इस बात को बताया कि निजी संपत्ति शोषण, बल, अनैतिकता और सभी बुराइयों का मूल कारण है । इसलिए निजी संपत्तियों को खत्म करके ही एक अच्छे समाज का निर्माण किया जा सकता है । मार्क्स ने संपत्ति के बारे में समझाने के लिए इसके उद्देश्यों को समझाया है ।
मार्क्स ने संपत्ति को दो हिस्सों में बांटा है ।
1 व्यक्तिगत संपत्ति (Personal Property)
2 निजी संपत्ति (Public Private)
1 व्यक्तिगत संपत्ति : – वह संपत्ति होती है, जिसका इस्तेमाल व्यक्ति अपनी निजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए करता है । जैसे व्यक्ति के कपड़े, किताबें और दूसरी चीजें खुद अपने इस्तेमाल करने वाली । मार्क्स ने निजी संपत्ति को स्वीकार किया है । क्योंकि इसका उद्देश्य दूसरे लोगों का शोषण करना नहीं होता है । इसके विपरीत दूसरी है ।
2 निजी संपत्ति : – निजी संपत्ति का मतलब है, उत्पादन के साधन यानी जिस संपत्ति का इस्तेमाल करके व्यक्ति उत्पादन करता है । वह व्यक्ति की निजी संपत्ति कहलाती है । मार्क्स ने इस संपत्ति को स्वीकार नहीं किया । क्योंकि निजी संपत्ति का उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है और दूसरों का शोषण करना होता है ।
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संपत्ति का उदय और विकास
मार्क्स ने हमें बताया । संपत्ति के उदय के बारे में और और इसके विकास के बारे में । मार्क्स यह कहना है कि संपत्ति का उदय और विकास समय के साथ-साथ, धीरे-धीरे हुआ था । यानी संपत्ति प्राकृतिक नहीं है । संपत्ति को समाप्त किया जा सकता है । मानव जीवन के प्रारंभ में, मानव जीवन की आवश्यकताऐं और जनसंख्या सीमित थी । धीरे-धीरे करके आवश्यकता बड़ी और संसाधन कम होने लगे । संसाधनों पर शक्तिशाली लोगों ने कब्जा कर लिया । जिससे निजी संपत्ति का उदय हुआ । इस निजी संपत्ति का इस्तेमाल करके कुछ लोग पूंजीपति बन गए और बहुत सारे लोग निर्धन हो गए । पूंजीपतियों ने निर्धनों का शोषण किया । इसलिए मार्क्स निजी संपत्ति की आलोचना करता है । मार्स निजी संपत्ति की पांच आधारों पर आलोचना करता है ।
सम्पत्ती की आलोचना
1 आर्थिक आधार पर
2 सामाजिक आधार पर
3 राजनीतिक आधार पर
4 नैतिक आधार पर और
5 अलगाववाद के आधार पर
1 सबसे पहले मार्क्स आलोचना करता है, आर्थिक आधार पर । मार्क्स का यह कहना है कि पूंजीवादी व्यवस्था का जो उदय हुआ है, वह सिर्फ निजी संपत्ति की वजह से ही हुआ है । निजी संपत्ति से शोषण, असमानता, गरीबी, बेरोजगारी और अनियमितता । यह सारी चीजें बड़ी हैं । महंगाई भी पूंजीपतियों की वजह से ही होती है । पूंजीपति चीजों की जमाखोरी करते हैं । जिससे महंगाई बहुत ज्यादा बढ़ जाती है ।
2 दूसरा है, सामाजिक आधार पर आलोचना । मार्क्स का कहना है कि निजी संपत्ति असमानता और शोषण को बढ़ावा देती है । यानी निजी संपत्ति की वजह से ही अमीर गरीबों के साथ भेदभाव करते हैं । उनका शोषण करते हैं । तो मार्क्स का यह कहना है कि निजी संपत्ति असमानता, शोषण और भेदभाव को बढ़ा देती है ।
3 तीसरा है, राजनीतिक आधार पर आलोचना । पूंजीवाद में सिर्फ अमीर लोग ही राजनीतिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं । गरीब लोग कितने भी काबिल हो, वह राजनीतिक अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर सकते । निजी संपत्ति को अगर खत्म कर दिया जाए तो अमीर और गरीब सभी राजनीतिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं । मिसाल के लिए लोकतंत्र के अंदर सबको चुनाव लड़ने का अधिकार होता है और वोट डालने का अधिकार होता है । अगर वास्तविकता (प्रैक्टिकल लाइफ) में देखें तो अमीर लोग तो इलेक्शन लड़ सकते हैं । लेकिन गरीब लोग इलेक्शन नहीं लड़ सकते क्योंकि वह कितने भी काबिल हो । वह भी अपना वोट इमानदारी से नहीं डाल सकते और वह कुछ पैसों के लालच में आकर भी अपना वोट किसी को भी बेच देते हैं । तो राजनीतिक अधिकारों का इस्तेमाल सिर्फ पूंजीपति ही कर सकते हैं । सभी लोग राजनीति अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर सकते ।
4 चौथा है, नैतिक आधार पर निजी संपत्ति की आलोचना । मार्क्स का कहना है कि व्यक्ति संपत्ति हासिल करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल करता है । जैसे धोखा देना, मारधाड़ करना, चोरी, डकैती और गलत रास्तों को भी चुन लेता है । और
5 पांचवा है, अलगाववाद के आधार पर आलोचना । मार्क्स का यहां तक भी कहना है कि निजी संपत्ति की वजह से व्यक्ति के अंदर अलगाववाद की भावना पैदा हो जाती है । व्यक्ति को संपत्ति के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता । वह अंधा हो जाता है, सब कुछ भूल जाता है । मित्रों को, रिश्तेदार, परिवार सभी को भूल जाता है । संपत्ति के लालच में आकर उसके अंदर जो भी भावनाएं होती है, संवेदनाएं होती हैं, वह सब खत्म हो जाती हैं । इसलिए मार्क्स निजी संपत्ति की आलोचना करता है ।
मार्क्स का यह कहना है कि मानव के प्रारंभिक जीवन में निजी संपत्ति नहीं थी और निजी संपत्ति प्राकृतिक नहीं है । इसलिए निजी संपत्ति को खत्म किया जा सकता है । इसे सिर्फ क्रांति के द्वारा ही खत्म किया जा सकता है । जब क्रांति होगी तो इसमें निर्धन वर्ग की जीत होगी । जिसकी संख्या ज्यादा होगी । यानी निर्धन वर्ग इस क्रांति के अंदर जीत जाएगा और पूंजीपति हार जाएंगे । एक नई व्यवस्था क्रांति के बाद बनेगी । जिसे कहेंगे साम्यवादी व्यवस्था और इस साम्यवादी व्यवस्था के अंदर निजी संपत्ति नहीं होगी । संपत्ति सार्वजनिक होगी । इस तरीके से निजी संपत्ति पूरी तरह से खत्म हो जाएगी ।
निजी समपत्ति की आलोचना
अब हम मार्क्स की निजी संपत्ति की आलोचना करते हैं । मार्क्स निजी संपत्तियों को खत्म करने की बात कहता है । लेकिन हकीकत यह है कि निजी संपत्ति के अभाव में व्यक्ति की कार्य करने की प्रेरणा का अंत हो जाएगा । मार्क्स का यह कहना है कि अगर निजी संपत्ति को खत्म कर दिया जाएगा और संपत्तियों को सार्वजनिक बना दिया जाएगा तो सार्वजनिक बनाने से भी कोई लाभ नहीं है । इसमें ऐसे लोगों को भी संपत्ति मिल जाएगी जो कुछ नहीं करते हैं और मार्क्स संपत्ति को आधार बनाकर प्रतियोगिता को खत्म करना चाहता है । लेकिन अगर प्रतियोगिता खत्म हो जाएगी तो गुणवत्ता में सुधार नहीं होगा ना ही कीमतें कम होंगी और गरीबों का कल्याण नहीं हो पाएगा । निजी संपत्ति से गरीबों का कर प्रणाली के द्वारा कल्याण किया जा सकता है ।
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