लोकतंत्र का विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत
Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, ‘लोकतंत्र के विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत’ (Elite Theory in Political Science) के बारे में । लोकतंत्र के संबंध में सबसे पहले उदारवादी सिद्धांत का निर्माण हुआ था । उदारवादी लोकतंत्र के लिए, जनता की भागीदारी और राजनीतिक समानता को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे । लेकिन बीसवीं शताब्दी में कई विचारक ऐसे पैदा हुए जो उदारवादी लोकतंत्र की आलोचना करते थे । वह लोकतंत्र को वास्तविक शास्त्र के अनुसार ढालना चाहते थे । लोकतंत्र को जनता का शासन बनाने से पहले कुछ समस्याओं का अध्ययन करना बहुत आवश्यक है । जैसे
क्या साधारण व्यक्ति के लिए रोजमर्रा की राजनीति में हिस्सा लेना व्यवहारिक है या नहीं ?
क्या एक साधारण व्यक्ति सार्वजनिक जीवन के तनावों को सहन कर सकता है ? और
क्या यह संभव है कि व्यक्ति आत्म शासन करें यानी व्यक्ति खुद के ऊपर शासन करें ?
इन सवालों ने लोकतंत्र के एक नए सिद्धांत को जन्म दिया जो परंपरागत उदारवादी सिद्धांत से बहुत अलग था और यह था लोकतंत्र का विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत ।
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विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत का अर्थ (Meaning of Elite Theory)
विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के लिए दोनों विश्वयुद्धों के बीच की परिस्थितियों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है । क्योंकि पहले और दूसरे विश्व युद्ध के बाद इटली के अंदर फासीवाद का उदय हुआ । जर्मनी के अंदर नाजीवाद पैदा हुआ । इन दोनों विचारधाराओं ने नए नेतृत्व पर बल दिया । जिससे यह साबित हुआ कि आधुनिक समाज का प्रबंध कुछ विशेष लोग ही कर सकते हैं । और संपूर्ण जनता की लोकतंत्र के अंदर या राजनीति के अंदर भागीदारी ना तो संभव है और ना ही व्यवहारिक है ।
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अब हम जानते हैं, विशिष्ट वर्ग या अभिजन वर्ग का मतलब क्या होता है ? विशिष्ट वर्ग या अभिजन वर्ग उस छोटे समुदाय को कहते हैं जिसके अंदर कुछ विशेष विशेषताएं होती हैं या योग्यताएं होती हैं । जो कि साधारण लोगों के अंदर नहीं पाई जाती । यानी विशिष्ट वर्गीय एक छोटा सा समूह होता है । जिसके अंदर बहुत ज्यादा योग्यताएं और विशेषताएं होती हैं और विशिष्ट वर्ग शासन चलाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है । शासन का स्वरूप कैसा भी हो सकता है ! लोकतंत्र हो सकता है, राजतंत्र हो सकता है, सैनिक शासन हो सकता है या तानाशाही शासन हो सकता है । इन सभी शासनों पर विशिष्ट वर्ग का ही नियंत्रण पाया जाता है । क्योंकि विशिष्ट वर्ग के अंदर कुछ ऐसी योग्यताएं होती हैं । जो किसी और के अंदर आसानी से नहीं पाई जाती । जैसे नेतृत्व करने की क्षमता, जनता की भावनाओं को समझने की क्षमता, अपने विचारों को दूसरे के सामने अच्छी तरीके से पेश करने या पहुंचाने की क्षमता या फिर लोगों को प्रेरित या Motivate करने की क्षमता ।
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जैसे महात्मा गांधी जी के अंदर एक leadership की विशेषता थी । गांधी जी अगर लोगों से कहते थे कि नमक बनाना है, तो गांधी जी के कहने पर लाखों लोग उनके साथ चल देते थे । अंग्रेज पीट रहे होते थे लेकिन लोग नमक बनाते और पिटते रहते थे । ऐसा क्यों ? क्योंकि गांधी जी ने कहा था । हिटलर जब भरे मैदान में कहता था कि “आप मेरे लिए अपनी जान देने के लिए तैयार हो ।” तो सब कहते थे, बेशक ! तो ऐसे बहुत ही कम या गिने चुने लोग होते हैं, जिनमें विशेषताएं या योग्यताएं होती हैं । इनकी बातों का जनता पर जो असर होता है, वह एक जादू की तरह होता है । यानी इनके कहने भर पे लोग अपनी जान तक दे देते हैं ।
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विशिष्ट वर्ग की अवधारणा बहुत पुरानी है । प्राचीन काल में प्लेटो को विशिष्ट वर्गीय माना जाता था और आधुनिक काल में पैरेटो, मिशेल को विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत का जनक माना जाता है । विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत की कुछ मान्यताएं हैं । सबसे पहली मान्यता है कि समाज के अंदर 2 तरीके के वर्ग होते हैं ।
एक विशिष्ट वर्ग होता है ।
दूसरा सामान्य वर्ग होता है ।
विशिष्ट वर्ग हमेशा छोटा होता है या अल्पसंख्यक होता है । जबकि सामान्य वर्ग बड़ा या बहुसंख्यक होता है । जिसके अंदर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक शक्तियां धारण करने की क्षमता होती है । विशिष्ट वर्ग 3 लोगों से बनता है । इस वर्ग में 3 तरह के लोग होते हैं । प्रबंधक या प्रशासनिक और समाज में ज्यादातर लोग, आलसी निष्क्रिय और उदासीन होते हैं ।
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विशिष्ट वर्ग के उदय का कारण
लोकतंत्र का विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पैदा हुआ । दूसरे विश्वयुद्ध के बाद राजनीतिक विचारकों ने ऐसा सिद्धांत बनाने का प्रयास किया, जिसमें विशिष्ट वर्ग बहुत बड़ी भूमिका निभाई । और तानाशाही का भी खतरा पैदा ना हो यानी की विशिष्ट वर्ग क्या करेंगे । अपने दल बना लेंगे और आपस में सत्ता प्राप्त करने के लिए प्रतियोगिता करेंगे और जिस विशिष्ट वर्ग को बहुमत मिलेगा या जनता चुनेगी उसे शासन चलाने का मौका मिलेगा । इस तरीके से शासन विशिष्ट वर्ग ही चलाता है । लोकतंत्र का विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत परेटो और मिशेल के विचारों से प्रभावित है । इंग्लैंड और अमेरिका में इसे सुनपेटर ने स्थापित किया था ।
विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत की विशेषताएं
विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत की कुछ विशेषताऐं हैं । सबसे पहली विशेषता है, जनता से शासन का कोई अर्थ नहीं होता, कोई मतलब नहीं होता । क्योंकि विशिष्ट वर्ग के सिद्धांत के अंदर यह माना जाता है कि साधारण जनता की राजनीति के अंदर कोई रुचि नहीं होती और अधिकतर लोग मूर्ख, आलसी और निष्क्रिय होते हैं । हालांकि लोग शासकों को चुनते हैं लेकिन यह शासन नहीं करते इसलिए शासन विशिष्ट वर्ग ही चलाते हैं । और
जनता की भूमिका बहुत ही कम होती है । उनकी भूमिका सीमित है, विशिष्ट वर्ग के सिद्धांत में यह माना जाता है कि शासन चलाने के लिए विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है और यह ज्ञान साधारण जनता में नहीं होता । साधारण जनता राजनीति से दूर रहती है या बहुत ही निष्क्रिय होती है, उदासीन होती है । विशिष्ट वर्ग के पास ज्ञान होता है, विशेषता होती है । तो अपनी विशेषता के बल पर शासन चलाता है । इसलिए असली सशक्त विशिष्ट वर्ग ही होता है ।
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तीसरी मान्यता है । विशिष्ट वर्ग के बहुत सारे छोटे छोटे समूह होते हैं । विशिष्ट नेताओं के छोटे-छोटे समूह क्या करते हैं, अपने अपने दल बना लेते हैं और सत्ता प्राप्त करने के लिए आपस में प्रतियोगिता करते हैं । इससे जो विशिष्ट वर्ग के बीच आपस में प्रतियोगिता होती है । खुलकर प्रतियोगिता होती है और जिस विशिष्ट वर्ग को जनता चुनती है । उसे एक निश्चित समय तक शासन चलाने का मौका मिल जाता है ।
लोकतांत्रिक महत्व
अब हम जानेंगे कि विशिष्ट वर्ग कहां तक लोकतांत्रिक है । समाज के अंदर लोग, विशिष्ट वर्ग हमेशा छोटा है । यह हमेशा ही विशेष योग्यता वाला होता है । लेकिन इस बात पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है कि यह सिद्धांत कहां तक लोकतांत्रिक है । इस बारे में कुछ तर्क दिए जा सकते हैं । जैसे यह बात सच है कि शासन विशिष्ट वर्ग ही करता है । लेकिन विशिष्ट वर्ग का शासन पर स्थाई रूप से कब्जा नहीं होता, नियंत्रण नहीं होता । यह बात भी सच है कि शासन पर विशिष्ट वर्ग का नियंत्रण पाया जाता है । लेकिन विशिष्ट वर्ग को जनता ही चुनती है और विशिष्ट वर्ग सत्ता प्राप्त करने के लिए आपस में प्रतियोगिता करता है । इससे भी हम कह सकते हैं कि यह सिद्धांत लोकतांत्रिक है और जनता के पास एक विशिष्ट वर्ग को हटाने, दूसरे वर्ग को सत्ता प्रदान करने की शक्ति होती है । इसलिए जनता के पास अंतिम शक्ति होती है या पावर होती है । इसलिए हम इसे लोकतांत्रिक मान सकते हैं ।
विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत की आलोचना
अब हम विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत की आलोचना के बारे में जानते हैं । यह मानव जीवन की परंपराओं के खिलाफ है, क्योंकि यह जरूर नहीं है कि हर व्यक्ति की राजनीति के अंदर रुचि हो । हर इंसान की रुचि अलग अलग होती है । कोई खेल में भी रूचि ले सकता है । कोई व्यापार में भी रूचि ले सकता है । तो हर किसी की रुचि अलग अलग होती है ।
दूसरा यह सिद्धांत जनता की भागीदारी को ज्यादा महत्व नहीं देता ।
तीसरा यह सिद्धांत इस मान्यता पर आधारित है कि सरकार जो भी नीतियां बनाती है । जनता उन्हें स्वीकार कर लेती है जबकि ऐसा नहीं है । अगर जनता सरकार की नीतियों से संतुष्ट नहीं है तो वह सरकार के खिलाफ भी आवाज उठा सकती है । यह सिद्धांत इस मान्यता पर आधारित है कि जनता मुर्ख, आलसी और अयोग्य होती है । दूसरी तरफ ऐसा काबिल लोगों को चुनती है जो शासन चलाते हैं और यह सिद्धांत वर्तमान के शिक्षित और योग्य समाज पर बिल्कुल लागू नहीं होता । इसलिए विशिष्ट वर्गीय सिद्धान्त लोकतंत्र के विभिन्न वर्ग सिद्धांत को ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है ।
तो दोस्तों यह था आपका राजनीति का विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत (Elite Theory in Hindi) । अगर आपको यह Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!