Challenges in Independent India
Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, आजाद भारत की चुनौतियों के बारे में । यानी Challenges in Independent India.
जब हमारा भारत आजाद हुआ था तो आजाद भारत के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां थी ? आपको याद होगा सन 1757 में भारत को गुलाम बनाया गया था और 1947 में भारत को आजादी मिली थी । 190 साल बाद लगभग 200 साल की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली थी । पंडित जवाहरलाल नेहरू को आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री चुना गया था । हिंदुस्तान के नागरिक इस पल का बेसब्री के साथ इंतजार कर रहे थे ।
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देश को आजादी मिली लेकिन बंटवारे का भी सामना करना पड़ा । बंटवारे की घोषणा होते ही दोनों तरफ अल्पसंख्यकों पर हमले शुरू हो गए । बहन, बेटियों की इज्जत लूटी गई । उन लोगों को मारा जाने लगा । बहुत सारे लोगों ने अपने घर की इज्जत बचाने के लिए अपनी बहू बेटियों को अपने हाथों से मार दिया । यह बंटवारा बहुत ही खतरनाक था । बंटवारे के दौरान जो लोग घर नहीं छोड़ना चाहते थे, उन्हें भी मजबूरी में अपना घर छोड़ना पड़ा । इसी तरह देश को आजादी मिली थी ।
आज़ादी के बाद की चुनौतियाँ
आजादी के तुरंत बाद देश के सामने तीन बड़ी-बड़ी समस्याएं थी । जिसमें
पहली चुनौती थी विकास की
आजादी के बाद भारत में विकास करना बहुत बड़ी चुनौती थी । क्योंकि अंग्रेजी शासन के दौरान भारत की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी । अंग्रेज भारत से कच्चा माल ले जाते थे और तैयार माल लाकर यहां पर बेचते थे । जिससे हमारा भारत बहुत गरीब हो गया था । जब हमारा देश आजाद हुआ था तो आजादी के बाद विकास करने के 2 मॉडल मशहूर थे ।
1 अमेरिका का पूंजीवादी मॉडल और
2 सोवियत संघ का समाजवादी मॉडल
विकास करने के लिए कौन से रास्ते को अपनाया जाए ? अमेरिका के पूंजीवादी मॉडल को या फिर सोवियत संघ के समाजवादी मॉडल को । इस पर वाद विवाद पैदा हो गया और लंबे वाद विवाद के बाद भारत के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया ।
दूसरी चुनौती थी लोकतंत्र की स्थापना
लोकतंत्र की स्थापना करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी । करोड़ों लोगों की पहली बार मतदाता सूची तैयार करनी थी और लोगों को लोकतंत्र की जानकारी भी देनी थी । 1952 में जाकर पहली बार चुनाव हुए । लेकिन यह तैयारी करना कोई आसान काम नहीं था । बहुत ही मुश्किल काम था ।
तीसरी चुनौती थी एकता और अखंडता की
भारत में बहुत सारी जाति धर्म के लोग रहते हैं । ऐसे में भारत को एक बनाकर रखना बहुत ही मुश्किल था और एकता अखंडता की समस्या आज भी हमारे भारत के सामने हैं । देश का बंटवारा कैसे हुआ बटवारे की प्रक्रिया के बारे में जानते हैं ।
देश के बटवारे की प्रकिया
बटवारा बहुत मुश्किल था । क्योंकि यह धर्म के आधार पर हुआ था और ब्रिटिश इंडिया द्वारा यह तय किया गया कि जहां पर मुसलमान ज्यादातर होंगे । वहां पर पाकिस्तान और बाकी बचे हुए हिस्से को भारत बना दिया जाएगा । बंटवारे के बाद रियासतों की समस्या पैदा हुई । उस वक्त देश के अंदर 565 रियासतें थी । तो उस समय सभी रियासतों को स्वतंत्र छूट छोड़ दिया गया था ।
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हर रियासत के सामने तीन विकल्प थे ।
1 भारत में विलय
2 पाकिस्तान में विलय और
3 स्वतंत्र रहने का विकल्प था
ऐसे में यह खतरा पैदा हो गया कि अगर सभी रियासतों को स्वतंत्र रहने की घोषणा कर दी जाएगी तो देश की एकता अखंडता के लिए खतरा पैदा हो जाएगा । बंटवारे के साथ-साथ बहुत सारी समस्याएं जुड़ी हुई थी । मिसाल के लिए ऐसी कोई एक जगह नहीं थी, जहां पर मुसलमान की तादाद ज्यादा हो ऐसे दो क्षेत्र थे, जहां मुसलमानों की जनसंख्या ज्यादा थी । एक पूरब में और दूसरा पश्चिम में । इसकी वजह से तय किया गया कि दो पाकिस्तान बनाए जाएंगे । पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान । सभी लोग बंटवारे के समर्थन में नहीं थे । बहुत सारे लोग बंटवारे के खिलाफ थे । जैसे पश्चिम उत्तरी प्रांत के नेता खान अब्दुल गफ्फार खान, बंटवारे के खिलाफ थे । लेकिन फिर भी इस इलाके को पाकिस्तान के अंदर शामिल कर दिया गया । बटवारा बड़ा ही मुश्किल था और बटवारे को 1947 के बाद भी लोग इसे आसानी से भुला नहीं पाए । बहुत सारे इलाके ऐसे थे जहां मुसलमान ज्यादा थे । वह ऐसे थे जहां पर हिंदुओं की संख्या ज्यादा थी । इसलिए यह तय किया गया कि जिला स्तर पर और गांव के स्तर पर बंटवारा किया जाए और इसी वजह से 1947 तक लोगों को यही नहीं पता था कि वह हिंदुस्तान में है या पाकिस्तान में ।
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अगर जिला स्तर और गांव स्तर पर बंटवारा कर दिया जाता तो हजारों पाकिस्तान बन जाते । जिस जगह पर मुसलमान होते वह छोटा पाकिस्तान होता । हर थोड़ी सी दूरी पर बंटवारे के बाद अल्पसंख्यक की समस्या पैदा हुई क्योंकि बहुत सारे मुसलमान भारत के अंदर अल्पसंख्यक बन गए । इसी तरीके से बहुत सारे गैर मुसलमान पाकिस्तान में अल्पसंख्यक बन गए । अब इनकी संख्या निश्चित नहीं थी क्योंकि इनकी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो गया था । बंटवारे के दौरान बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए । भारत के अंदर जितने भी गैर मुस्लिम थे और जिसने भी मुसलमान थे, उन्हें सताया गया । इसी तरीके से पाकिस्तान में मुस्लिम लोगों को सताया गया था । तो बटवारा बड़ा ही मुश्किल था । सांप्रदायिकता की समस्या बढ़ गई । देश की एकता अखंडता के लिए खतरा पैदा हो गया । हर चीज का बंटवारा किया गया था । इसलिए बटवारा बहुत ही मुश्किल था ।
रजवाड़ो के विलय समस्या
ब्रिटिश इंडिया के द्वारा बंटवारे के बाद रजवाड़े की विलय की समस्या पैदा हुई । उस वक्त भारत के अंदर 565 देशी रियासतें थी । हर रियासत के सामने तीन विकल्प थे । i). भारत में विलय ii). पाकिस्तान में विलय या iii). स्वतंत्रता रहने का विकल्प । ऐसे में खतरा पैदा हो गया कि अगर सभी रियासतों ने स्वतंत्र रहने की घोषणा की तो इससे भारत की एकता अखंडता को खतरा पैदा हो जाएगा । तो सबसे पहले त्रावणकोर के राजा ने अपने राज्य को स्वतंत्र रखने की घोषणा कर दी । उसके बाद फिर हैदराबाद, जूनागढ़, मणिपुर और भी काफी सारी रियासतों ने आजाद रहने की घोषणा कर दी ।
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रजवाड़ों का विलय भारत में जरूरी था ताकि भारत की एकता अखंडता बनी रहे और भारत एक बड़ा देश बन जाए । पाकिस्तान चाहता था कि रजवाड़ों का विलय भारत में ना हो और भारत के नेताओं ने रजवाड़ो के भारत में विलय में बहुत बड़ी भूमिका निभाई और सबसे बड़ी भूमिका निभाई सरदार वल्लभभाई पटेल ने । रजवाड़ों के विलय के संबंध में तीन बातें महत्वपूर्ण है ।
क) शासक भारत में शामिल नहीं होना चाहते थे । रियासतों के शासक लेकिन रियासतों की जनता भारत में शामिल होना चाहती थी ।
ख) भारत सरकार ने रियासतों के विलय के संबंध में लचीला दृष्टिकोण अपनाया । बहुत सारे क्षेत्रों को सहायता दे दी गई । काफी सारी रियासतों के शासकों को मुआवजा दिया गया या पेंशन दी गई । जिसे प्रिवी पर्स कहा जाता है । और
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ग) भारत सरकार किसी भी तरीके से रजवाड़ों को भारत के अंदर शामिल करना चाहती थी, क्योंकि एक भी रियासत ने आजाद रहने की घोषणा कर दी तो इससे भारत की सुरक्षा को खतरा पैदा हो जाएगा और एकता अखंडता के लिए भी खतरा पैदा हो जाएगा ।
हैदराबाद का भारत में विलय
अब हम जानते हैं कि हैदराबाद को किस तरीके से भारत के अंदर मिलाया गया था । हैदराबाद एक बहुत बड़ी और बहुत ही धनी रियासत थी । हैदराबाद के शासक को निजाम कहते थे । निजाम बहुत ही धनी किस्म का व्यक्ति होता था । एक गरीब इंसान को पैसों का लालच दिया जा सकता है, लेकिन अगर कोई पहले से अमीर है तो उसे लालच नहीं दिया सकता । ऐसे में निजाम ने फैसला लिया कि वह हैदराबाद को एक स्वतंत्र रियासत के रूप में बरकरार रखेगा । भारतीय नेता चाहते थे कि हैदराबाद को किसी तरीके से भारत के अंदर मिलाया जाए, लेकिन निजाम भारत के अंदर मिलने को तैयार नहीं था । भारत सरकार और निजाम के बीच लगभग 1947 में यथास्थिति बनाए रखने का समझौता हुआ यानी यही स्थिति बनाए रखना है । “अगर आप भारत के अंदर नहीं आना चाहते तो आप तब तक पाकिस्तान में भी नहीं मिलोगे ।” ताकि बातचीत को थोड़ा सा आगे बढ़ाया जा सके ।
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अब भारत सरकार ने हैदराबाद की जनता को थोड़ा सा लोकतंत्र के बारे में बताना शुरू किया । लोगों ने निजाम के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया । कांग्रेस ने और सामने आदि पार्टियों ने आंदोलन को बढ़ावा दिया । हैदराबाद के शासक ने इस आंदोलन को जबरदस्ती दबाया । सैनिक शक्ति के जरिए । ऐसे में सितंबर 1948 में भारतीय सेनाओं को हैदराबाद भेजा गया ताकि निजाम के अत्याचारों से हैदराबाद की जनता को बचाया जा सके । निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और इस तरीके से हैदराबाद को भारत के अंदर मिला लिया गया ।
मणिपुर के विलय
मणिपुर की कहानी भी थोड़ी सी हैदराबाद से अलग है । लेकिन मणिपुर का विलय भारत के अंदर ही हुआ था । मणिपुर के शासक को बहुसर कहते थे और जिस तरीके से बाकी रियासतों को भारत में मिलाया गया । ऐसे ही मणिपुर को भी भारत के अंदर मिलाया गया था । मणिपुर के राजा ने भारत में मणिपुर का विलय कर दिया और बदले में भारत सरकार ने मणिपुर को स्वायत्तता दे दी और मणिपुर की जनता ने लोकतंत्र का नील आंदोलन चलाया । जनता के दबाव में आकर मणिपुर के राजा ने जून 1948 में विधानसभा के चुनाव करवाएं । जिससे मणिपुर के अंदर विधान सभा की स्थापना हुई और मणिपुर के अंदर लोकतंत्र आ गया ।
अब भारत सरकार कोई यह डर सताने लगा मणिपुर की विधानसभा में विलय के खिलाफ प्रस्ताव पास हो सकता है । इसलिए भारत सरकार ने मणिपुर के राजा से विलय की संधि पर पूरी तरीके से हस्ताक्षर करवा लिए और स्वायत्तता को भी खत्म कर दिया । इससे मणिपुर की जनता भड़क उठी और मणिपुर की जनता कहने लगी कि अगर विलय बारे में प्रस्ताव हमें पास होना था और कोई फैसला होना था और वह फैसला मणिपुर की विधानसभा में ही होना चाहिए । क्योंकि राजा तो अपना पद छोड़ चुका है । अब राजा को तो फैसला लेने का कोई अधिकार ही नहीं है । मणिपुर की जनता ही इस बारे में फैसला लेगी । इसलिए मणिपुर की जनता आज भी यह मानती है कि भारत सरकार ने जबरदस्ती मणिपुर को भारत के अंदर मिलाया है ।
राज्यों के पुनर्गठन की समस्या
रियासतों के बाद राज्यों के पुनर्गठन की समस्या पैदा हुई कि राज्यों को आखिर किस तरीके से बनाया जाए । क्योंकि अंग्रेजों ने भारत के अंदर अपनी सुविधा के अनुसार राज्य बनाए थे और भारतीय जनता अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए राज्य से संतुष्ट नहीं थी । भारतीय जनता चाहती थी कि भाषा के आधार पर राज्यों का निर्माण किया जाए । आजादी से पहले 1920 में कांग्रेस ने भी घोषणा कर दी कि अगर देश आजाद होता है और कांग्रेस की सरकार बनती है तो कांग्रेस भाषा के आधार पर राज्यों का निर्माण करेगी । आजादी मिल गई और कांग्रेस की भी सरकार बन गई और जनता ने भाषा के आधार पर निर्माण की मांग की लेकिन भारतीय नेता चाहते थे कि भाषा के आधार पर निर्माण ना किया जाए । क्योंकि भाषा के नाम पर राज्यों का निर्माण करना बहुत मुश्किल था । क्योंकि इससे अव्यवस्था फैल सकती थी ।
दक्षिण भारत में सबसे पहले तेलुगु भाषा बोलने वाले लोगों ने अलग राज्य के लिए मांग पैदा की । दक्षिण भारत में के तेलुगु भाषा बोलने वाले लोग चाहते थे कि आंध्रप्रदेश नाम से एक उनका अलग राज्य बनाया जाए । अब ऐसे में दक्षिण भारत के कांग्रेसी नेता श्री रामू देसाई अनिश्चित काल के लिए भूख हड़ताल पर बैठ गए । 56 दिन की भूख हड़ताल के बाद उनकी मौत हो गई । इससे चारों तरफ अव्यवस्था फैल गई । इसलिए 1952 में 1952 आंध्र प्रदेश नाम से एक राज्य बनाना पड़ा । अब जैसे ही एक राज्य बना दिया ।
राज्य पुनर्गठन आयोग
भाषा के नाम पर और भाषाई आंदोलन और तेजी से बढ़ने लगा । सरकार इस आंदोलन को किसी तरीके से दबाना चाहती थी । इसलिए भारत सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का निर्माण किया । राज्य पुनर्गठन आयोग को दो काम सौपे गए पहला काम था कि बताओ कि कितने राज्य बनाए जाएं और दूसरा और किस आधार पर राज्य बनाए जाएं । राज्य पुनर्गठन आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की और 3 सिफारिशें की भाषा के आधार पर राज्य बनाने पड़े, नहीं तो अव्यवस्था फैल जाती । दंगे फसाद हो सकते थे और दूसरा 14 राज्य बनाए जाए भाषा हालांकि 22 हैं । लेकिन 14 राज्य बनाए जाएं 14 राज्यों से लोगों को संतुष्टि मिल जाएगी और ऐसे छः इलाके हैं / क्षेत्र हैं । जिन्हें किसी राज्य में शामिल नहीं किया जा सकता । उन्हें केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया । इसलिए राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्र सरकार ने 1956 में 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाएं ।
राज्यों का निर्माण
लेकिन अगर हम वर्तमान की स्थिति देखें तो इस समय 29 राज्य हैं और 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं । क्योंकि समय-समय पर भाषाई आंदोलन भड़के और भी कई सारे राज्य बने । जैसे 1956 में गुजरात नाम का एक बड़ा राज्य बनाया गया और गुजराती भाषा बोलने वाले चाहते थे, उनका एक अलग राज्य बनाया जाए । गुजरात में से तोड़कर फिर महाराष्ट्र बना दिया गया । इसी तरीके से 1956 में पंजाब नाम का एक बहुत बड़ा राज्य बनाया गया । पर लोग चाहते थे कि उनका एक अलग राज्य बनाया जाए । इसलिए 1966 में पंजाब को तोड़कर हिमाचल प्रदेश और हरियाणा बना दिए गए और पंजाब को सिर्फ भाषा बोलने वालों का राज्य बना दिया गया ।
पूर्वोत्तर भारत में बहुत सारे राज्य बनाए गए । जैसे कि असम को तोड़कर 1972 में मेघालय बनाया । मणिपुर और त्रिपुरा बनाया गया । 1987 में अरुणाचल प्रदेश बनाया गया और 1963 में नागालैंड पहले ही बनाया जा चुका था । सन 2000 में झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल राज्य बनाया गया । जिसे हम आजकल उत्तराखंड के नाम से जानते हैं और सन 2014 में आंध्र प्रदेश में से तोड़कर तेलंगाना राज्य बनाया गया ।
इस तरीके से भाषाई आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा और वर्तमान में भी बहुत सारे राज्य में भी अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन चल रहा है । जैसे कि यूपी में उत्तर प्रदेश में हरित प्रदेश बनाने के लिए आंदोलन चला रहे हैं । महाराष्ट्र में विदर्भ नाम का राज्य बनाने के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है । और पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में एक अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है । हो सकता है भविष्य में कोई नया राज्य बन जाए । राज्य बढ़ते जाएंगे और जो वर्तमान स्थिति में राज्य की संख्या वह बढ़ती जाएगी और भाषाई आंदोलन खत्म नहीं होगा ।
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