Parliamentary Executive
Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका एक बार फिर स्वागत है । आज हम बात करते हैं, कार्यपालिका (Parliamentry Executive) के बारे में ।
प्राचीन काल में सारी शक्तियों का इस्तेमाल राजा या सम्राट के द्वारा किया जाता था । जो कि आज के युग मे सरकार के द्वारा किया जाता है । आधुनिक लोकतांत्रिक देशों में सरकार के काम को तीन भागों में बांटा जा सकता है । विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका । जिसके बारे में आप नीचे दिए Link से पढ़ सकते हैं ।
लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तम्भ- कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका एक दृष्टि में
कार्यपालिका का अर्थ
कार्यपालिका का मतलब है । सरकार का वह अंग जो नियमों और कानूनों को लागू करता है, कार्यपालिका कहलाता है और कार्यपालिका के अंदर वह सभी व्यक्ति आते हैं । जिनका काम कानूनों को लागू करना होता है । अब इसके अंदर उन सरकारी कर्मचारियों को शामिल किया जाता है जो सरकार के आधीन काम करते है । इसमें पुलिस को भी शामिल किया जाता है । सरकारी अध्यापक को शामिल किया जा सकता है । उन सारे सरकारी कर्मचारियों को शामिल किया जा सकता है, जो सरकार के लिए, जनता को सेवा प्रदान करते हैं ।
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वैसे तो कार्यपालिका हर देश में अलग-अलग होती है । लेकिन कार्यपालिका के तीन प्रकार होते हैं ।
1 अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली :
इस प्रणाली के अंदर राष्ट्रपति सरकार का प्रधान होता है, मुखिया होता है । सिद्धांत और व्यवहार में राष्ट्रपति का पद सबसे ज्यादा शक्तिशाली होता है । अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अमेरिका, ब्राजील और लैटिन अमेरिका के कई सारे देशों में पाई जाती है ।
2 संसदीय शासन प्रणाली :
इस प्रणाली के अंदर प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान होता है और राष्ट्रपति सिर्फ नाम मात्र का अध्यक्ष होता है । सारी की सारी शक्तियों का इस्तेमाल प्रधानमंत्री और मंत्री परिषद के द्वारा किया जाता है । संसदीय शासन प्रणाली इंग्लैंड, भारत, जर्मनी, जापान और भी बहुत सारे देशों में यह प्रणाली पाई जाती है ।
3 अर्ध अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली :
इस प्रणाली के अंदर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों ही शक्तिशाली होते हैं । दोनों एक दल के भी हो सकते हैं । लेकिन जब प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति अलग-अलग दल के होते हैं, तो ऐसे में दोनों में विवाद पैदा हो सकता है ।
लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तम्भ- कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका एक दृष्टि में
राष्ट्रपति की नियुक्ति
दोस्तों अब हम जानते हैं कि भारत में राष्ट्रपति की नियुक्ति कैसे की जाती है । भारत में राष्ट्रपति की नियुक्ति 5 वर्षों के लिए की जाती है । नियुक्ति जनता के द्वारा नहीं बल्कि एक निर्वाचक मंडल के द्वारा की जाती है । इस निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों के सदस्य यानी लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य और राज्य के विधानसभा के सदस्य शामिल होते हैं । यह तीनों सदस्य मिलकर राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं और राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री का चुनाव करता है ।
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प्रधानमंत्री की नियुक्ति, राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और राष्ट्रपति किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है, जिसे लोकसभा के चुनावों में बहुमत मिला हो । अगर किसी दल को लोकसभा में बहुमत नहीं मिलता, तो राष्ट्रपति किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना सकता है । जिसे वह सरकार बनाने के काबिल समझता है और उसे बहुमत साबित करने के लिए एक निश्चित समय दे दिया जाता है ।
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जैसे 1998 में बीजेपी को 251 सीटें मिली जो कि बहुमत से 21 सीटें कम थी । इसलिए राष्ट्रपति ने बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेई जी को प्रधानमंत्री बना दिया और 10 दिन का समय बहुमत साबित करने के लिए दिया । लेकिन वाजपेई जी बहुमत साबित नहीं कर पाए । इसलिए उन्हें इस्तीफा देना पड़ा । 2009 में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को बहुमत मिला । डॉ मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया गया । 2014 को बीजेपी को पूरा पूरा बहुमत मिला । इसलिए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बना दिया गया । इस तरीके से राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है । जिस दल को बहुमत मिलेगा । उसी दल के नेता को प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा ।
आज के इस दौर में नौकरशाह के बिना देश का शासन चलाना बहुत मुश्किल हो गया है । मंत्रियों के पास समय नहीं होता और बहुत से मंत्री अयोग्य होते हैं । इसलिए नौकरशाह की नियुक्ति की जाती है । भारत में संघ लोक सेवा आयोग यूपीएससी (UPSC) लिखित परीक्षा के जरिए नौकरशाहों की भर्ती करती है । जिसमें आईएएस(IAS), आईपीएस(IPS), आईएफएस (IFS) आदि । पदों को भरा जाता है । इस तरीके से कार्यपालिका अगर देखी जाए तो कार्यपालिका दो तरीके की होती है |
अ) राजनीतिक कार्यपालिका । दूसरी होती है
ब) स्थायी कार्यपालिका ।
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राजनीतिक या अस्थायी कार्यपालिका
राजनीतिक कार्यपालिका के अंदर जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शामिल हैं । जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या इसके अलावा जितने भी मंत्री परिषद हैं, जिनको इसमें शामिल किया जाता है । राजनीतिक कार्यपालिका स्थायी नहीं होती । इनमें सदस्यों का आना जाना लगा रहता है । राजनीतिक कार्यपालिका को अस्थायी कार्यपालिका भी कहते हैं ।
स्थायी कार्यपालिका
स्थायी कार्यपालिका के सदस्यों को लिखित परीक्षा के आधार पर और व्यक्ति की योग्यता के आधार पर चुना जाता है और यह लोग सेवा निर्मित (Retirement) की आयु तक अपने पद पर बने रहते हैं और लंबे समय तक कार्य करते रहते हैं । इस तरीके से कार्यपालिका के अंदर सभी को शामिल किया जाता है । मंत्रियों को, सरकारी कर्मचारियों को, आदि । जो दीर्घायु तक कार्य करते हैं । भारत में ये आयु 60 वर्ष हैं ।
तो दोस्तो ये था संसदीय कार्यपालिका के बारे में । अगर आपको यह Post अच्छी लगे अपने दोस्तों के साथ share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!
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This is Nice study point