Self-Government system in villages
Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका स्वागत है । आज हम जानेंगे राजनीति विज्ञान में पंचायती राज व्यवस्था और उसके महत्व के बारे में । साथ ही साथ जानेंगे पंचायती राज व्यवस्था की कार्यप्रणाली के बारे में ।
पंचायत का अर्थ
पंचायत का नाम लेते ही हमारे दिमाग़ में एक तस्वीर बन जाती है, जिसमें गांव में पेड़ के नीचे एकत्रित कई लोग जो किसी समस्या को सुलझाने का प्रयास करते है । किसी फैसले पर अपनी सहमति और असहमति व्यक्त करते हैं ।
जैसा कि हम जानते हैं । भारत में प्राचीन काल से ही पंचायतों का अस्तित्व पाया जाता है । प्राचीन काल में भी किसी स्थान पर रहने वाले लोग, अपनी समस्याओं के समाधान के लिए पंचायतों का निर्माण करते थे । इन पंचायतों में अधिकतर गांव के वरिष्ठ नागरिक सदस्य होते थे । जिनके निर्णय सर्वमान्य होते थे । इस अवस्था के कारण ही प्राचीन भारत को ग्राम गणराज्य कहा जा सकता है ।
पंचायती राज का इतिहास
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में नए संविधान का निर्माण किया गया । जिसमें लोकतांत्रिक सरकार के गठन के लिए प्रावधान किया गया । भारत में पंचायती राज के महत्व को ध्यान में रखते हुए ही नीति निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत अनुच्छेद 40 में कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए प्रभावी कदम उठाएगा ।
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योजना आयोग के गठन के बाद यह अनुभव किया गया की बड़ी-बड़ी योजनाओं का लाभ निम्न स्तर तक पहुंचाने के लिए निम्न स्तर पर भी संस्थाओं का गठन करना जरूरी है । जिनके माध्यम से योजनाओं को लागू किया जा सके । जिसके फलस्वरुप सन 1952 में सांप्रदायिक विकास कार्यक्रम आरंभ किया गया । इस कार्यक्रम के पश्चात पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई । परंतु शीघ्र ही पंचायतों की कार्यप्रणाली और गठन आदि के संबंध में सुधार की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी । इसलिए
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सन 1957 में श्री बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया । जिसमें 1958 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की । इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पंचायतों का वर्तमान स्वरूप ठीक नहीं है, बल्कि त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था होनी चाहिए । जिसमें ग्राम स्तर पर, ग्राम पंचायत ब्लॉक स्तर पर, समिति और जिला स्तर पर । जिला परिषद होना चाहिए ।
पंचायती राज व्यवस्था
आइये अब जानतें हैं पंचायती राज व्यवस्था में त्रिस्तरीय व्यवस्था के बारे में । इस व्यवस्था में निम्न 3 स्तरों के बारे में बताया गया है ।
I ग्राम स्तर
II खण्ड (ब्लॉक) स्तर पर
III ज़िला स्तर पर
इनके बारे में विस्तार से जान लेते हैं ।
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I ग्राम स्तर
ग्राम स्तर पर पंचायतों की 3 संस्थाएं होती हैं । जो एक-दूसरे से जुड़ी हुई होते हैं । ग्रामीण स्तर पर पंचायती राज में निम्नलिखित तीन संस्थाएं है ।
1 ग्राम सभा
2 ग्राम पंचायत
3 न्याय पंचायत
II ब्लॉक (खण्ड) स्तर
खंड स्तर पंचायती राज का दूसरा स्तर है । कुछ गांवों को मिलाकर खंड या ब्लॉक का निर्माण किया जाता है तथा प्रत्येक ब्लॉक में ब्लॉक समिति या पंचायत समिति का गठन किया जाता है ।
III ज़िला स्तर
जिला स्तर पंचायती राज व्यवस्था का सर्वोच्च स्तर है । जिला स्तर पर पंचायती राज की स्थापना के लिए जिला परिषद की स्थापना की जाती है । जिला परिषद विभिन्न ब्लॉक समितियों के बीच आपसी तालमेल स्थापित करने का कार्य करती है ।
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