Social Contact Principles of Rousseau
Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति विज्ञान में रूसो के समझौता संबंधी सिद्धांत और विचारों (Rules of Social Contact by Rousseau) के बारे में । साथ ही साथ जानेंगे इसके रूप और विशेषताओं के बारे में । तो शुरू करते है आसान भाषा में ।
सामाजिक समझौता क्या है ?
रूसो को आधुनिक युग का महान विचारक माना जाता है । रूसो ने मानव के स्वभाव, प्राकृतिक अवस्था, राज्य की उत्पत्ति, असमानता और सामाजिक समझौते संबंधी अनेक विचार बताएं । रूसो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक सोशल कॉन्ट्रैक्ट में इस बात का विचार किया है कि मनुष्य किस प्रकार प्राकृतिक अवस्था से निकलकर सभ्य समाज का निर्माण करते हैं । रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था के अंतिम चरण की अराजकता से जब कोई मनुष्य पीड़ित होता है, तब वह खुद को ऐसी संस्था में संगठित कर लेने की आवश्यकता की अनुभव किया कि जिससे उनके जानमाल की रक्षा हो सके तथा उसकी स्वतंत्रता भी बनी रहे ।
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यानी इस दुःख भरी परीस्थिति से छुटकारा पाने के लिए सभी व्यक्ति एक स्थान पर जमा हुए और उनके द्वारा समस्त अधिकारों का समर्पण किया गया । लेकिन उनके अधिकारों का यह समर्पण किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं बल्कि मानव समाज के लिए किया गया । जिससे उनके अधिकारों की रक्षा की जा सके ।
रूसो के अनुसार व्यक्तियों के समझौते की शर्ते इस तरह हैं ।
प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर को और सम्पूर्ण शक्ति को अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से, सामान्य इच्छा के सर्वोच्च निर्देशन में रखते हैं और अपने सामूहिक स्वरूप में हम प्रत्येक सदस्य को एक दूसरे के अंश के रूप में स्वीकार करते हैं ।
इससे यह स्पष्ट है कि रूसो मनुष्य की अराजक दशा को दूर करने के लिए, जो समझौता करते हैं । वह मनुष्यों के द्वारा दो पक्षों के बीच किया जाता है ।
1) व्यक्ति के रूप में । और
2) स्वाभाविक रूप में ।
इस तरह समझौते के परिणाम स्वरूप संपूर्ण समाज की एक सामान्य इच्छा उत्पन्न होती है और सभी व्यक्ति इस सामान्य इच्छा के अंतर्गत रहते हुए ही कार्य करते हैं ।
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रूसो के शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति अपने दायित्व और अपनी पूर्ण शक्ति को सामान्य प्रयोग के लिए, सामान्य इच्छा के सर्वोच्च निर्देशन के अधीन अर्पित कर देता है तथा एक समूह के रूप में प्रत्येक व्यक्ति समूह के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में अपने व्यक्तित्व तथा अपनी पूर्ण सत्ता को प्राप्त कर लेता है ।
इस प्रकार रूसो के समझौते के परिणाम स्वरूप राज्य संस्था संगठित हो जाने पर भी मनुष्य अपने स्वतंत्र अधिकार एवं शक्ति को अपने से अलग नहीं करते । वह उन्हें अपने पास रखते हैं । परंतु व्यक्ति के रूप में नहीं बल्कि सामूहिक रूप से । अर्थात समाज के अंग होने के कारण इस प्रकार अब मनुष्य की जानमाल की रक्षा का दायित्व केवल अपने ऊपर नहीं रहता, वरना संपूर्ण समाज का कर्तव्य हो जाता है कि वह प्रत्येक मनुष्य की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करें ।
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जनता स्वयं प्रभुत्व संपन्न होती है, क्योंकि राज्य संस्था के संचालन की शक्ति जनता में निहित रहती है । राज्य सत्ता के प्रयोग का अधिकार जिस शासक वर्ग को दिया जाता है, वह जनता की आकांक्षा के अनुसार ही कार्य करता है । क्योंकि वह जनता को क्रिया के रूप में वर्णित करने का साधन मात्र है और महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने कर्तव्य का भली-भांति पालन न करने पर उसे अपने पद से हटाया जा सकता है तथा उसके स्थान पर दूसरे शासक वर्ग को नियुक्त किया जा सकता है । यदि वह जनता की इच्छा अनुसार कार्य करने का वचन दे तो ।
रूसो के समझौता सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएं
आइए अब जानते हैं, रूसो के समझौते सिद्धांत की मुख्य विशेषताओं के बारे में । रूसो के अनुसार सामाजिक समझौता सिद्धांत के अंतर्गत व्यक्ति के दो रूप बताएं गए हैं ।
1 एक व्यक्तिगत और
2 दूसरा सामूहिक
जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने समस्त अधिकारों का समर्पण कर देता है । किंतु अधिकारों का यह समर्पण किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं बल्कि संपूर्ण समाज के प्रति किया जाता है । व्यक्ति इसी संपूर्ण समाज का सदस्य होता है, इसलिए समाज का सदस्य होने के नाते सामूहिक व्यक्तित्व के आधार पर अपनी शक्तियां फिर से प्राप्त कर लेता है ।
इस समझौते के आधार पर व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित नहीं होती, बल्कि वह वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त करता है । इस तरह जनहित में कार्य करना या कर्तव्य का पालन करना स्वतंत्रता है । इसलिए जब कोई राज्य मनुष्य को अपनी इच्छा के अनुसार नहीं बल्कि जनहित के लिए कार्य करने के लिए बाध्य करेगा तो वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र तो होने के लिए बाध्य किया जाएगा । इस प्रकार राज्य की असीमित शक्ति से व्यक्ति की स्वतंत्रता का अंत नहीं होगा बल्कि उसे वास्तविक नैतिक स्वतंत्रता प्राप्त होगी ।
रूसो के समझौते सिद्धांत के अनुसार
“व्यक्ति के स्थान पर सामुहिक, और व्यक्ति के स्थान पर सामान्य इच्छा आ जाती है ।”
इस समझौते के आधार पर जिस सामान्य इच्छा का निर्माण होता है । वह सामान्य इच्छा सभी व्यक्तियों के लिए सर्वोच्च होती है और इस प्रकार हरेक व्यक्ति उसके आधीन होता है । यह सामान्य इच्छा की राज्य संप्रभुता, शक्ति, सब कुछ है ।
रूसो का मानना है कि इस सामाजिक समझौते या अनुबंध के माध्यम से लोग अपनी प्राकृतिक स्वतंत्रता के बदले में नागरिक स्वतंत्रता हासिल करते हैं ।
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सामानय इच्छा का सिद्धांत रुसो के सामाजिक समझौते का महत्वपूर्ण भाग है । सामान्य इच्छा सदैव न्याय मुक्त होती है और जनहित उसका लक्ष्य होता है । व्यक्ति स्वयं अपने हित के संबंध में ठीक प्रकार से विचार नहीं कर पाता है । इसलिए उसका हित सामान्य इच्छा द्वारा बताए गए रास्ते पर चलने में है ।
रुसो केवल सामाजिक समझौते की बात स्वीकार करता है । राजनीतिक समझौते की नहीं । रुसो का मानना है कि सामाजिक समझोते से उत्पन्न होने वाला समाज संप्रभुता संपन्न होता है । समाज का प्रत्येक सदस्य संप्रभुता संपन्न निकाय का एक निर्णायक भाग होता है । समझौते से किसी सरकार की स्थापना नहीं होती बल्कि सामान्य इच्छा पर आधारित संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाज की स्थापना होती है और सरकार प्रभुत्व शक्ति द्वारा नियुक्त यंत्र मात्र होता है ।
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इस तरह से अगर देखा जाए तो उसके समझोते सिद्धांत द्वारा उस लोकतांत्रिक समाज की स्थापना होती है, जिसके अंतर्गत संप्रभुता संपूर्ण समाज में निहित होती है । शासन कार्य सामान इच्छा के आधार पर किया जाता है । इस तरह से रुसो का सामाजिक समझौता सिद्धांत हॉब्स और लॉक के समझौते से अलग होते हुए भी अत्यंत प्रभावशाली है ।
तो दोस्तों ने था आपका रुसो के समझौता सिद्धांत के बारे में और उसकी विशेषताएं । अगर आपको यह Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!
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