Individualism views by John Locke
Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका स्वागत है और आज हम बात करते हैं, पश्चिमी राजनीतिक विचार के अंतर्गत जॉन लॉक के व्यक्तिवाद (Individualism by John Locke) के बारे में । साथ ही इस Post में हम जानेंगे जॉन लॉक के व्यक्तिवाद के प्रमुख तत्वों के बारे में । तो जानते हैं, आसान भाषा में ।
जॉन लॉक 17वीं शताब्दी के प्रमुख राजनीतिक चिंतक और विचारक थे । लॉक ने अनेक विषयों पर अपने विचारों को लोगों के सामने रखा । जिनमें प्रमुखता निजी संपत्ति पर विचार, सामाजिक समझौता, प्राकृतिक अधिकार और व्यक्तिवाद पर विचारों को शामिल किया जाता है । इस Post में हम जॉन लॉक के व्यक्तिवाद के बारे में जानेंगे ।
जॉन लॉक के विचारों में व्यक्तिवाद
वर्तमान समय में जॉन लॉक के विचारों को महत्वपूर्ण माना जाता है । जॉन लॉक के विचारों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व उसकी व्यक्तिवादिता है । लॉक ने व्यक्ति को केंद में रखकर उसकी रक्षा और स्वतंत्रता पर बल दिया है । इस संबंध में वाहन का मानना है कि
“लॉक की व्यवस्था में प्रत्येक वस्तु का आधार व्यक्ति है । प्रत्येक वस्तु को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है कि व्यक्ति की प्रभुता सुरक्षित रहे ।”
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यद्यपि वास्तव में यह देखा जाए तो जॉन लॉक ने जिस व्यवस्था की कल्पना की थी, उस का केंद्र बिंदु व्यक्ति ही है । लेकिन इसके साथ ही लॉक ने व्यक्ति की असीमितता और व्यक्ति के प्रभुत्व का प्रतिपादन नहीं किया । उसके बारे में बात नहीं की ।
व्यक्तिवाद के प्रमुख तत्व
आइए अब जानते हैं, व्यक्तिवाद के प्रमुख तत्वों के बारे में । जॉन लॉग द्वारा व्यक्तिवाद के बारे में कई सारे प्रमुख तत्व बताए गए हैं । उनको संक्षेप में जान लेते हैं ।
1 राज्य असाध्य है
जॉन लॉक के दर्शन में यह स्पष्ट किया गया है कि राज्य स्वयं साध्य नहीं है, बल्कि उसका अस्तित्व व्यक्ति के हित अथवा कल्याण के लिए हैं । अर्थात राज्य का निर्माण व्यक्तियों के हितों के संरक्षण व उसके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हुआ है ।
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2 व्यक्तियों की उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राज्य का उद्गम
जॉन लॉक के विचारों से यह निष्कर्ष निकलता है कि राज्य एक ऐसा यंत्र है, जिसे व्यक्तियों ने अपने उद्देश्य की पूर्ति की बनाया है । जॉन लॉक और हॉब्स द्वारा प्रतिपादित निरंकुश राज्य सत्ता का विरोधी दर्शन का आधार व्यक्ति और उसके अधिकार हैं ।
3 राज्य द्वारा व्यक्तियों के अधिकारों के हनन को रोकना
जॉन लॉक का उद्देश्य व्यक्ति के स्वतंत्रता की रक्षा और राज्य की मनमानी को रोकना है । इस कारण वह मानता है कि व्यक्ति की इच्छा से ही राज्य और समाज का जन्म हुआ है । राज्य के अधिकार भी इसी कारण बहुत सीमित रखे गए हैं और इन अधिकारों का दुरुपयोग होने पर व्यक्तियों को राज्य के विरोध का अधिकार है । जो कि जॉन लॉक के व्यक्तिवादी होने का प्रमाण भी माना जाता है ।
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4 राज्यों पर प्रतिबंध
जॉन लॉक का मानना है कि राज्य का प्रादुर्भाव व्यक्ति के अधिकारों । जैसे जीवन, स्वतंत्रता तथा संपत्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए हुआ है और इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए राज्य की शक्ति पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाएं जाते हैं । इसी तरह मैक्सी अनुसार-
“जॉन लॉक का कार्य राज्य की सत्ता को ऊपर उठाना नहीं बल्कि उसके प्रतिबंधों का प्रतिपादन करना है ।”
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5 व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता सर्वप्रथम
जॉन लॉक के दर्शन में व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता ही सर्वोपरि है । इसलिए वह राज्य की संप्रभुता शब्द का ना तो प्रयोग करता है और ना ही राज्य को संप्रभु राज्य बताता है । जॉन लॉक के अनुसार राज्य एक बहुत बड़ी लिमिटेड कंपनी से अधिक और कुछ नहीं है । राज्य के पास उतनी ही शक्ति है, जितनी की समाज में या व्यक्तियों ने उसके प्रदान की है ।
6 शक्ति विभाजन का सिद्धांत
जॉन लॉक ने शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए शक्ति के विभाजन का सिद्धांत भी स्थिर कर दिया है । जिससे कानूनी और कार्यकारी शक्तियां अलग-अलग रहें और न्यायिक कार्य में इन अंगों का हस्तक्षेप न हो । इसका सीधा संबंध व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा उसके अधिकारों की रक्षा से भी माना जाता है ।
7 धर्म एक व्यक्तिगत वस्तु के रूप में
जॉन लॉक के अनुसार धर्म के संबंध में यह धारणा रखते हैं कि व्यक्तिवाद धर्म से पूर्ण हैं । वह धर्म को व्यक्ति वस्तु मानता है और व्यक्ति को अंत करण के अनुसार पूजा एवं उपासना की स्वतंत्रता भी प्रदान करता है और मानव विवेक तथा सहज बुद्धि में विश्वास करता है ।
निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो जॉन लॉक ने व्यक्ति को अपनी संपूर्ण व्यवस्था का केंद्र बिंदु माना है । व्यक्ति के अधिकारों का संरक्षण तथा राज्य का सीमित नियंत्रण उसके राजदर्शन का प्रमुख उद्देश्य भी है । बार्कर के अनुसार –
“जॉन लॉक में व्यक्ति की आत्मा की सर्वोच्च गरिमा स्वीकार करने वाली तथा सुधार चाहने वाली महान भावना थी ।”
इसी प्रकार डनिंग ने जॉन लॉक की व्यक्तिवादी विचारों को राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में उस का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान भी स्वीकार किया है । लेकिन व्यक्तिवाद का समर्थन करने के बावजूद लॉक ने व्यक्ति को संपूर्ण प्रभुता संपन्न नहीं माना है और इस पर कुछ शर्तें भी बताई गई हैं ।
तो दोस्तों यह था जॉन लॉक का व्यक्तिवाद और उसके प्रमुख तत्व । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!