दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । मैं नौशाद सर आज आपके लिए 12th Class का राजनीति विज्ञान का तीसरा Chapter लेकर आया हूं, जिसका नाम है, समकालीनविश्व में अमेरिकी वर्चस्व (US Hegemony in World of Politics) Part-II
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अमेरिका के वर्चस्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद भी है, क्योंकि वर्तमान में इतने सारे युद्ध करने के बाद भी आतंकवाद खत्म नहीं हुआ है । और जब तक आतंकवाद को खत्म नहीं किया जाता, तब तक अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती मिलती रहेगी । वर्तमान मेंअमेरिका के वर्चस्व का सामना कोई भी नहीं कर सकता । रूस, चीन, यूरोपीय संघ मेंअमेरिका को टक्कर देने की क्षमता है, लेकिन इन देशों में आपस में विवाद है । फिर भी अमेरिका के वर्चस्व से निपटने के लिए तीन रास्ते बताए जाते हैं ।
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1. बेडवेगन की नीति
2. छुपा लेना
3. राज्येतर संस्थायें
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1. बेडवेगन की नीति
इस नीति में, जिसके अंदर कहाजाता है कि अमेरिका के खिलाफ जाने की जगह उसके साथ दोस्ती करके फायदा उठाने कीनीति बेहतर है । इसे कहा जाता है ।
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“जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी दीजै “
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यानी समय और परिस्थितियों को देखकर चलना, और इससे फायदा उठाना ।
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2. अगली नीति है, छुपा लेना ।
यह माना जाता है कि, अगर अमेरिका के वर्चस्व का सामना करना है तो, अपने आप को अमेरिका की निगाह से बढ़ने से बचाव और छुपकर विकास करो । आज चीन, रूस और यूरोपीय संघ इसी तरीके पर अमल कर रहे हैं । यह नीति तो छोटे देशों के लिए काम की हो सकती है पर बड़े देशों के लिए नहीं, क्योंकि कब तक बड़े देश अमेरिका को उसकी नजर में बढ़ने से बचाएंगे ।
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3. राज्येतर संस्थाएं
और तीसरा तरीका बताया जाता है, राज्येतर संस्थाएं । अमेरिका के वर्चस्व का सामना कोई नहीं कर सकता । आज सभी अमेरिका की ताकत के आगे बेबस हैं ।
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अमेरिका को जो चुनौती मिलेगी, वह धनात्मक बल पर मिलेगी । आर्थिक रूप में और सांस्कृतिक रूप में यह चुनौती अमेरिका को जनता से बुद्धिजीवियों से मीडिया से समाज पत्रों से । इन सभी से मिलेगी । यह सब मिलकर अमेरिका के वर्चस्व के खिलाफ आवाज उठाएंगे और अमेरिका का वर्चस्व खत्म हो जाएगा । इतिहास इस बात का गवाह है कि वर्चस्व किसी का भी हमेशा के लिए कायम नहीं रहता । फ्रांस का वर्चस्व था, लेकिन आगे चलकर काफी सारे देशों ने फ्रांस को चुनौती दी तो फ्रांस का वर्चस्व खत्म हो गया । आगे चलकर 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन का वर्चस्व आया पर जर्मनी, जापान और इटली यह सब ब्रिटेन के खिलाफ आवाज उठाने लगे तो ब्रिटेन का वर्चस्व खत्म हो गया । तो आज बीसवीं शताब्दी में अमेरिका का दबदबा पाया जाता है । लेकिन आने वाले 20 सालों में 30 सालों में या फिर 50 सालों में । कुछ देशों का गठबंधन ऐसा तैयार होगा कि जो अमेरिका के वर्चस्व को कमजोर कर देगा और अमेरिका का वर्चस्व खत्म हो जाएगा । तो इस तरह का से अमेरिका के वर्चस्व का सामना करने के लिए 3 तरीके बताए गए हैं ।
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अब हम जानते हैं, अमेरिका ने अपने वर्चस्व के दम पर कौन-कौन से युद्ध किये हैं ।
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अमेरिका द्वारा किए गए प्रमुख युद्ध निम्नलिखित हैं ।
1 . प्रथम खाड़ी युद्ध
2. ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच (Operation Infinite Reach)
3 . ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम (Operation Ending Freedom- OEF)
4. ऑपरेशन इराकी फ्रीडम (Operation Iraqi Freedom)
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सबसे पहले हम बातकरते हैं, प्रथम खाड़ी युद्ध के बारे में । अगस्त 1990 में इराक ने अपने पड़ोसी देश कुवैत परकब्जा कर लिया ।मामला UN पहुंचा । UN ने इराक को समझाने बुझानेकी बहुत कोशिश की पर इराक नहीं माना । इसलिए सुरक्षा परिषद ने इराक के खिलाफ सैनिक कार्यवाही की आज्ञा दे दी । अब 34 देशों की मिलीजुली सेना इराक के लिए बनाई गई । जिस में 607000 सैनिक थे और इस सेना के 75% सैनिक अमेरिका के थे । इस युद्ध को ऑपरेशन डेजर्ट (Operation Desert) का नाम दिया गया । इस युद्ध का सीधा प्रसारण टीवी पर किया गया । इस वजह से इसे वीडियो गेम वार ( Video Game War) भी कहते हैं । और इस युद्ध में बहुत ही उच्च तकनीक का इस्तेमाल भी किया गया था । इस वजह से इसे कंप्यूटर वार (Computer War) भी कहते है। हालांकि, इससे पहले सद्दाम हुसैन ने कहा था कि यह 100 जंग की एक जंग साबित होगी । लेकिन जब युद्ध हुआ तो इराक हार गया । ना तो सद्दाम हुसैन की सरकार इराक में बरकरार रही । इस युद्ध के बाद अमेरिका का वर्चस्व दुनिया में तेजी से बढ़ने लगा । पहाड़ी क्षेत्रों में अमेरिका का प्रभाव भी बढ़ गया । हालाकी लड़ाई में नुकसान होता है । चाहे कोई जीते, या हारे हारने वाले का नुकसान तो होता ही है । जीतने वाले का भी नुकसान होता है, क्योंकि उसकी सेना के सैनिक भी मारे जाते हैं । हथियार पर पैसा खर्च होता है, लड़ने में । लेकिन अमेरिका को नुकसान नहीं हुआ बल्कि फायदा हुआ । क्योंकि इस युद्ध के बाद अमेरिका के हथियारों की बिक्री में तेजी आई ।
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युद्ध के बाद अमेरिका को जर्मनी से जापान से सऊदी अरब से बहुत पैसा मिला । क्योंकि अमेरिका ने इन देशों को अपने हथियार बेचे ।
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2. ऑपेरशन इनफाइनाइट रीच(Operation Infinite Reach)
अब जरा दूसरे युद्ध पर नजर डालते हैं । ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच ।सन 1998 में केन्या और तंजानिया में अमेरिकी दूतावास पर हमले हुए । इन हमलों के लिए अमेरिका ने अलकायदा को जिम्मेदार माना और अलकायदा के खिलाफ अमेरिका ने ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच शुरू कर दिया । जिसमें अफगानिस्तान पर मिसाइलों से हमले किए गए थे । इन हमलों के लिए अमेरिका ने यूएन (UN) की भी परमिशन नहीं ली । इस तरीके से अमेरिका ने अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल किया । और दिखाया की कि वह यूएन से भी ज्यादा शक्तिशाली है । इस युद्ध में अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय युद्ध नियमों का पालन नहीं किया । और नागरिक क्षेत्रों को भी निशाना बनाया । जब युद्ध होता है तो कुछ अंतरराष्ट्रीय नियम होते हैं, युद्ध के कुछ कानून होते हैं । उनका पालन किया जाना चाहिए और नियम यह होता है, कि नागरिक क्षेत्रों पर बमबारी नहीं की जाएगी क्योंकि आम नागरिकों का लड़ाई से कुछ लेना देना नहीं होता । सिर्फ सैनिक क्षेत्रों पर बमबारी की जाए नागरिक क्षेत्र पर नहीं लेकिन अमेरिका ने नागरीक क्षेत्रों पर भी बमबारी की थी ।
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3. ऑपेरशन एंड्यूरिंग फ्रीडम (Operation Enduring Freedom- OEF)
अब जरा तीसरे ऑपरेशन पर नजर डालते हैं जो बहुत मशहूर हुआ था 911 के नाम से 11 सितंबर 2001 को अमरीका पर बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ था इस हमले में डब्लू टी सी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर नष्ट हो गया और अमेरिकी क्षेत्र का मुख्यालय पेंटागन भी प्रभावित हुआ जबकि राष्ट्रपति भवन और संसद भवन बच गए इस हमले में तीन हजार अमेरिकी नागरिक मारे गए थे यह अमेरिका के लिए दिल दहला देने वाला हमला था और अब तक का सबसे बड़ा हमला था इस हमले को 911 के नाम से जाना जाता है क्योंकि अमेरिका में महीने को पहले लिखा जाता है और तारीख को बाद में लिखा जाता है तो 911 उस का संक्षिप्त रूप है 911 हमले के खिलाफ अमेरिका ऑपरेशन इन ड्यूरिंग फ्रीडम शुरू कर दिया और 911 हमले के लिए जिम्मेदार माना गया अलकायदा को और अलकायदा को खत्म करने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान को निशाना बनाया और बहुत बड़े पैमाने पर लोगों को गिरफ्तार किया
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4. ऑपेरशन इराकी फ्रीडम (Operation Iraqi Freedom)
अब जरा चौथे ऑपरेशन पर नजर डाल लेते हैं । जिससे अमेरिका का वर्चस्व तेजी से बढ़ता गया । ऑपरेशन इराकी फ्रीडम । जी 19 मार्च 2003 को अमेरिका ने इराक पर हमला करके ऑपरेशन इराकी फ्रीडम शुरू कर दिया । अमेरिका लंबे समय से इराक पर इल्जाम लगा रहा था कि इराक व्यापक पैमाने पर जनसंघहार के हथियार मौजूद हैं । पर यूएन ने अमेरिका को इराक के खिलाफ हमले की आज्ञा नहीं दी क्योंकि जांच के दौरान एक भी हथियार नहीं मिला था । फिर भी अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर इराक पर हमला कर दिया और पूरी दुनिया के सामने सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ा दिया ।
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भारत और अमेरिका के संबंध
अब अमेरिका के वर्चस्व वाले इस दौर में भारत और अमेरिका के संबंध के बारे में भी बात की जाती है । जब शीत युद्ध चल रहा था तो भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया और सोवियत संघ के साथ दोस्ती की, जिससे भारत और अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण हो गए । लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद और वैश्वीकरण (Globalization)अपनाने की वजह से भारत और अमेरिका के संबंधों में सुधार आया । जैसे अमेरिका की सिलिकॉन वैली में 300000 भारतीय काम करते हैं । इसी तरीके से अमेरिकी कंपनी वायुयान बनाने वाली कंपनी बोइंग में 35% कर्मचारी भारतीय हैं । भारत से निर्यात होने वाले सॉफ्टवेयर का 65% अमेरिका को जाता है । और अमेरिका के अंदर उच्च तकनीक वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां 15% कंपनियां भारतीयों ने शुरू की हैं । इस तरह भारत और अमेरिका के संबंध लगातार सुधार रहे हैं । और संबंध बढ़ने के साथ साथ विवाद पैदा हो गया ।
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संबंध बनाने के लिए 3 संभावित रणनीति या बताई जाती हैं ।
पहली नीति में कहा जाता है । भारत को अमेरिका के साथ दोस्ती करनी चाहिए और और ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहिए ।
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दूसरी नीति के अंदर यह कहा जाता है, कि भारत को अमेरिका से दूर रहना चाहिए और विकासशील देशों के साथ मिलकर गठबंधन तैयार करना चाहिए । और
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तीसरी नीति के अंदर यह बताया जाता है, कि भारत को अमेरिकासे दूर रहना चाहिए और खुद अपना विकास करना चाहिए । लेकिन भारत और अमेरिका के संबंध इतने जटिल नहीं हैं । लेकिन फिर भी भारत और अमेरिका के संबंध बहुत जटिल है । इसीलिए भारत को तीनों रणनीतियों को ध्यान में रखते हुए संबंध बनाने चाहिए ।
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तो दोस्तों यहथा आपका 12वींClass का 3rd Chapter समकालीन विश्व मेंअमेरिकी वर्चस्व, अगर आपकोइस Chapter के Detail में Notes चाहिएतो आप हमारे WhatsApp वाले नंबर 9999338354 पर Contact कर सकतेहैं | आप इस जानकारी को अपनेदोस्तों के साथ Share करें |धन्यवाद