राजनीति विज्ञान की प्रकृति कला या विज्ञान
Hello दोस्तों Gyaanuday में आपका स्वागत है । राजनीतिक विज्ञान के अंतर्गत आज हम पढ़ेंगे राजनीति विज्ञान की प्रकृति के बारे में । क्या यह विज्ञान है या कला ? तो आइए जानते हैं राजनीति विज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है अथवा नहीं, इस पर राजनीति विज्ञान के विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है । यह विज्ञान है अथवा कला ?
राजनीति कला या विज्ञान
कुछ विद्वान इसे विज्ञान की श्रेणी में रखना चाहते हैं तो कुछ इसे विज्ञान नहीं मानते हैं । तो आइए देखते हैं विज्ञान क्या है ? विज्ञान उस विषय को कहा जाता है । जिसके अध्ययन की पद्धति वैज्ञानिक हो ।
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इसका उस विषय के विषयवस्त उसे कोई मतलब नहीं होता है, केवल उसके अध्ययन की पद्धति पर निर्भर करता है कि कोई भी विषय विज्ञान है अथवा नहीं ।
राजनीति विज्ञान एक कला या विज्ञान के रूप में
विज्ञान किसी वस्तु के क्रमबद्ध और व्यवस्थित ज्ञान को कहते हैं तो इस दृश्य से राजनीति विज्ञान को विज्ञान कहा जा सकता है । लेकिन आइए देखते हैं सबसे पहले राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के विपक्ष में तर्क अनेक विद्वान राजनीति विज्ञान को विज्ञान कहे जाने पर आपत्ति प्रकट करते हैं । जान स्टुअर्ट मिल इस विषय को विज्ञान नहीं मानना चाहते हैं । इसके अलावा बरक्ले कहते हैं कि राजनीति शास्त्र का विज्ञान होना तो अलग यह कलाओं में भी सबसे पिछड़ा हुआ है । आइए देखते हैं विज्ञान होने के विपक्ष में क्या क्या तर्क दिए जा सकते हैं ।
बार्कले राजनयिक स्वास्थ्य को विज्ञान नहीं मानते हैं और कलाओं में भी सबसे पिछड़ा मानते हैं । इसमें सबसे पहला है वैज्ञानिक पद्धति का अभाव । राजनीति विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक पदक का प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि जब तक किसी विषय का वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया जा सकता है तब तक वह विज्ञान कहलाने योग्य नहीं है । इसके अलावा इसमें अवलोकन तथा परीक्षण जैसी पद्धतियों का भी अभाव पाया जाता है । तो ?
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दूसरा है प्रयोगशाला का अभाव । राजनीतिक विज्ञान में किसी प्रयोगशाला और परीक्षण नहीं किया जा सकता है, जैसा कि विशुद्ध विज्ञान में होता है । इसके अलावा इसमें सार्वभौम नियमों का भी अभाव पाया जाता है। जैसे ये राजनीति विज्ञान के नियम, समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं, लेकिन विज्ञान में ऐसा नहीं है । अगला इसके विपक्ष में तर्क ये दिया जा सकता है।
की राजनीति, विज्ञान में तथ्यों के समरूपता और सभी विषयों पर मतैयिकता का अभाव पाया जाता है । इसके अलावा इसमें कारण, कार्य, संबंध आदि पद्धतियों का भी अभाव पाया जाता है । यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि यही घटना घटेगी । अगला है कि सही माप का अभाव पाया जाता है । जिस प्रकार अन्य विज्ञान में अपने मापदण्ड है । उस प्रकार राजनीति शास्त्र में इन मापक यंत्रों का अभाव है और भविष्यवाणी राजनीति विज्ञान में किसी निश्चित घटना की कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।
विज्ञान में परीक्षण के आधार पर ।
कोई निश्चित विज्ञान में तो भविष्यवाणी की जा सकती है, लेकिन राजनीति विज्ञान में नहीं। तो आइए देख लेते हैं कि विज्ञान होने के पक्ष में इस विषय के विज्ञान होने के पक्ष में क्या क्या तर्क दिए जा सकते हैं ।
यद्यपि राजनीति विज्ञान को विज्ञान कहे जाने के संबंध में अनेक आपत्तियां हैं, परंतु कई विद्वान इसे विज्ञान कहने का दावा करते हैं । अरस्तू इसे मास्टर साइंस कहते हैं ।
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मास्टर साइंस अथवा स्मार्ट साइंस कहते हैं आरस्तु तो आइए देखते हैं विज्ञान होने के पक्ष में क्या क्या तर्क हैं ? वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग राजनीति विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जा सकता है। अब इसे इस विषय के अध्ययन में विद्वानों ने वैज्ञानिक पद्धत का प्रयोग करके और वैज्ञानिक बना दिया है । अवलोकन तथा परीक्षण का भी प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि किसी तथ्य के परीक्षण के लिए कोई ज़रूरी नहीं है कि किसी कमरे के रूप में प्रयोगशाला हो ही । इसको
अन्य रूप से भी इसका अवलोकन किया जा सकता है। सार्वभौम नियमों का निर्धारण भी किया जा सकता है पोलिटिकल साइंस में क्योंकि राजनीति विज्ञान के अध्ययन में हम सभी ऐसे सामान्य निष्कर्ष निकाल सकते हैं जिनसे सर्वमान्य तथा सर्वोव्यापी नियम के रूप में स्वीकार किया जा सके और इसमें भविष्यवाणी भी संभव है क्योंकि स्थितियों का अवलोकन तथा परीक्षण करके एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, बहुत सही नहीं हो, लेकिन भविष्यवाणी इसमें की जा सकती है । इसके अलावा यह एक क्रमबद्ध और व्यवस्थित विषय है।
क्योंकि राजनीति विज्ञान इस समय एक क्रमबद्ध और व्यवस्थित विषय के रूप में स्वच्छ । तो दोस्तो ये था हमारा आज का टॉपिक पोस्ट अच्छी लगी तो दोस्तो के साथ Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!