Hello दोस्तो ज्ञान उदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, राजनीति के जनक कहे जाने वाले व्यक्ति की यानी अरस्तु (Aristotle) की । जैसा कि आप सभी जानते हैं कि राजनीति का प्रारंभ पश्चिमी जगत से हुआ । अरस्तु प्राचीन यूनानियों के एक महान विचारक और दार्शनिक थे । अरस्तु को राजनीति का जनक भी मन जाता है ।
जिस तरह प्लेटो (Plato) को राजनीति का प्रेरणा स्रोत माना जाता है, हालांकि प्लेटो ने प्रारम्भ में राजनीति पर विचार किया था, परंतु प्लेटो के विचार सम्पूर्ण ज्ञान कल्पना पर आधारित माना जाता है । अरस्तु ने राजनीति में बहुत बड़ा योगदान दिया, उसी वजह से अरस्तु को राजनीति का जन्मदाता माना जाता है ।
अरस्तु से पहले राजनीतिक चिंतन तो था, लेकिन राजनीति कोई विज्ञान नहीं था । राज्य, विषय, चिंतन तथा राजनीतिक विज्ञान को स्वतंत्र विज्ञान का पद प्रदान करने का श्रेय अरस्तु को ही जाता है ।
अरस्तु ने यूनान की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, राजनीति संबंधी कई विचार दिए । इसी कारण मैक्सी अरस्तु को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक (Political Scientist) की संज्ञा देते हैं । अरस्तु की पद्धति और उसके सिद्धान्त में निहित सार्वभौमिक तत्व उसे राज दर्शन के इतिहास में प्रथम वैज्ञानिक विचारक के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं ।
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आइये जानते हैं राजनीति विज्ञान में अरस्तु (Aristotle) के योगदान के बारे में ।
अरस्तु ने सबसे पहले आगनात्मक पद्धति यानी Inductive Method का प्रयोग किया । उसके बाद कई प्रयोग किये जैसे । विश्लेषणात्मक पद्धति यानी Analytical Methods और साथ ही पर्यवेक्षात्मक पद्धति Supervision Methods और साथ ही तुलनात्मक पद्धति Balance Method का प्रयोग किया । जो की यथार्थता और व्यवहारिकता पर बल देती है । अरस्तु के द्वारा ही प्रयोग में लाया गया था ।
सर्वप्रथम अरस्तु द्वारा ही राजनीति के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया गया । अरस्तु ने अपने महान ग्रंथ ‘Politics’ में सर्वप्रथम पर्यवेक्षक, तुलनात्मक पद्धति का सहारा लिया । साथ ही साथ अरस्तु ने 158 देशों के संविधानों का अध्ययन भी किया ।
अरस्तु एक ग्रीक दार्शनिक थे और साथ ही साथ अरस्तु प्लेटो के सबसे प्रिय शिष्य भी थे । राजनीति विज्ञान को स्वतंत्र विज्ञान का रूप देना अरस्तु की महत्वपूर्ण देन है । प्लेटो के अनुसार राजनीति और नीति शास्त्र मिश्रित है । अरस्तु ने राजनीति को नीतिशास्त्र से अलग किया और राजनीति विज्ञान की शुरुआत की ।
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अरस्तु ने ही सबसे पहले राज्य के संपूर्ण सिद्धांत का व्यापक रूप में अध्ययन किया । राज्य की उत्पत्ति और विकास के सिद्धांत से लेकर उसके स्वरूप, संविधान, नागरिकता कानून तथा क्रांति आदि सभी महत्वपूर्ण विषय पर विवेचन किया । इसका स्पष्ट विवरण प्लेटो में भी नहीं मिलता ।
अरस्तु ने सर्वप्रथम शासन व्यवस्था के तीनों अंगों नीति निर्धारक, प्रशासकीय और न्यायिक का निरूपण किया । कानून की सर्वोच्चता तथा संवैधानिक शासन में विश्वास के कारण उसे समझना संविधानवाद का जनक कहा जाता है ।
अरस्तु कानून की सर्वोच्चता में विश्वास करते हैं । प्लेटों के अनुसार सर्वाधिक विवेक संपन्न व्यक्तियों के द्वारा शासन के स्थान पर उन नियमों और कानूनों की संस्था में विश्वास किया जाता है ।
अरस्तु ने वैज्ञानिक सुझभूज के द्वारा मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया । इसी कारण समस्याओं पर यथार्थवादी तथा व्यवहारिक रूप में से विचार किया जाता है ।
लोक कल्याणकारी, राज्य का भी प्रवर्तक, जब वह कहता है कि राज्य का जन्म जीवन के लिए हुआ है । और तथा खुशहाल जीवन के लिए उसकी निरंतरता बनी हुई है । अरस्तु द्वारा प्रतिपादित मिश्रित शासन का व्यवहार, विचार अनुकरणीय हैं । जिसमें उसने राजतंत्र, कुलीन तंत्र और प्रजातंत्र का सुंदर तालमेल स्थापित किया है ।
अरस्तु ने राज्य में न्याय और शिक्षा को पर्याप्त महत्व दिया है । किसी सुसंस्कृत समाज के लिए न्याय सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है । राज्य के नागरिकों में संविधान और राज्य के प्रति निष्ठा उत्पन्न करने में शिक्षा का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है ।
अन्ततः अरस्तु ने ही सर्वप्रथम राजनीति को विज्ञान के रूप में प्रतिपादित किया । यदि सभी बातों पर विचार करें, तो यह स्पष्ट है कि अरस्तु प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक और राजनीतिक विज्ञान के जन्मदाता है । वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग जो आज भी प्रासंगिक है । अरस्तु ने जिन विषयों पर विचार किया तथा अपने सिद्धांत दिए, वह आज भी उतने ही उपयोगी हैं, जितने अरस्तु के समय मे थे ।
तो दोस्तों ये थे राजनीति में अरस्तु के योगदान । अगर Post अच्छी लगी तो दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें, तब तक के लिए धन्यवाद !!
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