नारीवाद विचारधारा (What is Feminism)
Hello दोस्तो, Gyaan Uday में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, स्त्री अधिकार के बारे में यानी कि Feminism या नारीवाद ।
नारीवाद एक ऐसी विचारधारा है, जो स्त्री और पुरुष के समान अधिकारों पर बल देती है । नारीवाद के अनुसार स्त्री और पुरुष के बीच बहुत सारी असमानताएं हैं । ये ना तो प्राकृतिक हैं और ना ही आवश्यक । इसलिए इन असमानताओं को बदला जा सकता है । ताकि स्त्री और पुरुष एक समान जीवन व्यतीत कर सकें ।
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पितृसत्ता (Patriarchy)
नारीवाद के अनुसार स्त्री और पुरुष के बीच असमानता का मुख्य कारण है, ‘पितृसत्ता’ । यह एक ऐसी व्यवस्था होती है, जिसमें पुरुष को प्रधान समझा जाता है और पुरुष को स्त्रियों के मुकाबले ज्यादा महत्व दिया जाता है । जैसे भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है । पुरुष ही परिवार का मुखिया होता है । लड़कों की शिक्षा, पालन, पोषण और आजादी को विशेष महत्व दिया जाता है । इसके विपरीत जबकि लड़कियों पर बहुत सारी पाबंदियां लगाई जाती हैं और लड़कियों को घर की चारदीवारी के अंदर रखा जाता है । लड़कियों के पैदा होने पर अफसोस किया जाता है और परिवार में लड़कों की कामना की जाती है । और लड़कों के पैदा होने पर खुशियां मनाई जाती हैं ।
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यह व्यवस्था प्रकृति ने नहीं बल्कि समाज ने बनाई है । समाज ने ही स्त्री और पुरुष के कामों को घर और बाहर के कामों में बांटा है । इसीलिए नारीवादी पितृसत्ता समाज की आलोचना करता है ।
नारीवादियों के हिसाब से स्त्री पुरुष असमानता दो प्रकार की होती है ।
पहली जैविक और
दूसरी लैंगिक
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जैविक असमानता प्राकृतिक है । प्रकृति द्वारा निर्धारित हैं । और लैंगिक असमानता सामाजिक है जो कि समाज ने पैदा की है । जैसे जीव विज्ञान के अनुसार सिर्फ औरतें ही गर्भ धारण कर के बच्चों को जन्म दे सकती हैं । पुरुष ऐसा नहीं कर सकते । लेकिन यह जरूरी नहीं कि कि बच्चों का पालन पोषण भी स्त्रियां ही करें । पुरुष भी बच्चों का पालन पोषण कर सकते हैं । काम के बंटवारे को लेकर भी स्त्री और पुरुष में समानता पाई जाती है । स्त्री को घर के कामों के लिए जिम्मेदार माना जाता है । और पुरुष को बाहर के कामों के लिए जिम्मेदार माना जाता है । हालांकि महिलाएं बहुत सारा काम करती हैं ।
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पुरुष घर के काम को काम नहीं मानता । आमतौर पर देखा जाता है महिलाएं 10 से 12 घंटे तक लगातार घरों में काम करती हैं और गांव की महिलाओं को तो और ज्यादा काम करना पड़ता है । जैसे खेतों में जाकर कटाई करना, पशुओं के लिए, जानवरों के लिए चारा ढोना । दूरदराज के इलाकों से, तालाबों से, नदियों से पानी निकलना । फिर भी पुरुष महिला से कहते हैं कि तुम सारा दिन घर में रहकर आखिर करती ही क्या हो ? इतना सारा काम करने के बावजूद भी महिलाओं को यह सुनने को मिलता है ।
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आज के इस दौर में महिलाएं बाहर के काम में हिस्सा लेने लगी हैं । और बाहर का काम भी करने लगी है । लेकिन इसके बावजूद भी उनको घर का काम भी करना पड़ता है । नारीवादी इसे महिलाओं के कंधों पर दोहरा बोझ मानते हैं । अगर पुरुष घर का कोई काम करता है, तो वह बाहर का एक भी काम नहीं करेगा । घर के एक बर्तन को हाथ नहीं लगा सकता और अगर महिला बाहर का काम करती है, इसके बावजूद भी उसको घर का काम करना पड़ता है ।
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अभी तक नारियों की छवि एक आश्रिता की बनी हुई है या निर्भरता । यानी नारी पुरुष पर निर्भर हो जाती है या नारी को उस पुरुष उस पर कमाऊ पूत या पति पर निर्भर माना जाता है । अगर हमें स्त्री पुरुष में भेद खत्म करना है तो लैंगिक असमानता को खत्म करना पड़ेगा । जिससे पहले महिलाओं की स्थिति में थोड़ा सा सुधार आ सके ।
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