Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आप सभी का स्वागत है और आज हम आपके लिए लेकर आए हैं, ‘राजनीति का उदारवादी दृष्टिकोण’ नये पाठ्यक्रम (New Syllabus) के आधार पर । जो B.A. Program, B.A. Honors, SOL दिल्ली विश्वविद्यालय, इंदिरा गाँधी ओपन यूनिवर्सिटी और जामिया यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । इस Topic को पढ़ने के बाद आप जानेंगे ।
1 उदारवाद और मार्क्सवाद के बारे में ।
2 उदारवाद का मतलब
3 उदारवाद का लोकतांत्रिक दृष्टिकोण ।
4 आर्थिक उदारवाद के बारे में ।
5 राजनीति के विभिन्न दृष्टिकोण क्या हैं ?
6 राजनीति का मार्क्सवादी दृष्टिकोण के बारे में ।
तो आइए जानते हैं, Liberals Vies on Politics (राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण) के बारे में ।
उदारवाद और मार्क्सवाद में अंतर
उदारवाद तथा मार्क्सवाद दो अलग अलग विचारधाराएं हैं । दोनों राज्य के स्वरूप और उनके तरीकों के लिए बिल्कुल अलग-अलग रास्ते अपनाते हैं । एक तरह से कहा जाए तो उदारवाद, मार्क्सवाद का बिल्कुल विपरीत है ।
एक तरफ उदारवादी विचारधारा के लोग मानते हैं कि सभी लोगों के हितों की रक्षा के लिए राज्य एक साधन मात्र है । उदारवादी विचारधारा में राजनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों के सिद्धांत के लिए खुली प्रतियोगिता का होना ज़रूरी है । इसके अलावा उदारवादी व्यक्ति के निजि, आर्थिक या सामाजिक जीवन में सरकार के बढ़ते हस्तक्षेप का विरोध करते हैं । वह नहीं चाहते कि सरकार व्यक्तियों के हर मामले में हस्तक्षेप करे ।
दूसरी तरफ मार्क्सवाद इस विचारधारा को मानते हैं कि राज्य व्यक्तियों के संघर्ष को बढ़ावा देते हैं । इसमें अंतर समझना जरूरी है (उदारवादी संघर्ष को कम करने या खत्म करने के लिए राज्य को साधन की तरह देखते हैं) और मार्क्सवाद का कहना है कि राज्य खुद ही व्यक्ति का शोषण करता है । यह संघर्षों को और जन्म देता है । मार्क्सवादी लोग वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ढांचे को समाप्त करके उसके स्थान पर वर्ग विहीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं । जिसमें ऊंच-नीच, जात-पात या अमीर गरीब जैसा कोई वर्ग ना रहे । सभी आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से एक समान रहे ।
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जॉन लॉक को आधुनिक उदारवाद का जन्मदाता माना जाता है । उन्होंने व्यक्ति के अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अधिक बल दिया है और सरकार का कार्यक्षेत्र केवल कानून व्यवस्था बनाए रखने तक की बात कही है ।
जॉन लॉक के अनुसार राजनीति की शुरुआत व्यक्ति से होती है और व्यक्ति पर ही खत्म होती है ।
जॉन लॉक के मानव स्वभाव और प्राकर्तिक संबंधी विचार पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।
बहुत सारे उदारवादी विचारकों जैसे बैथल, जॉन स्टुअर्ट मिल, हरबर्ट स्पेसर, जेफरसन, लिंडसे और बार्कर ने व्यक्तियों की स्वतंत्रता को ध्यान में रखा है । उदारवादी विचारकों के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे समाज में ही रहना है । और यह स्वाभाविक है कि जब मनुष्य समाज में रहता है, तो मनुष्य के हितों का आपसी टकराव होना आम बात है, क्योंकि उदारवादियों के अनुसार व्यक्ति स्वार्थी होता है और वह कई बार अपने हित को पूरा करने के लिए हिंसा का भी सहारा लेते हैं । इसलिए स्वार्थ और हिंसा के द्वारा होने वाली सामाजिक अव्यवस्था को रोकने के लिए कुछ नियम और कुछ कानूनों का बनाया जाना बहुत जरूरी है, जो सभी के द्वारा माने जाएं । जिसके कारण प्रत्येक मनुष्य अपना भरण पोषण और विकास कर सके |
इन नियमों और कानूनों को बनाने के लिए और समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा राज्य नाम की एक संस्था बनाई गई ।
उदारवादी विचारक राज्य को सार्वजनिक हितों की पूर्ति का साधन मानते हैं । उनके अनुसार राज्य सभी के हितों की रक्षा करने का एक साधन है । जो समाज के प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेता है ।
वह राज्य द्वारा किसी भी विशिष्ट वर्ग या व्यक्ति को सुविधा के पक्ष में कदम उठाने का विरोध करते हैं । इसे दूसरे वर्ग के लोगों का शोषण मानते हैं । उदारवादी लोग खुली स्पर्धा का समर्थन करते हैं । वह अमीर या गरीब किसी को राज्य के द्वारा संरक्षण, आरक्षण या फिर किसी भी प्रकार की सहायता के पक्ष में नहीं हैं । उसे दूसरे वर्ग के लोगों का शोषण मानते हैं ।
उदारवाद का मतलब
अब कुछ विचारको द्वारा दी गई परीभाषाओं को जान लेते हैं । उदारवाद को समझने की कोशिश करते हैं ।
मौरिस दुवर्ज़र के अनुसार
“राजनीति एक ऐसा साधन है, जिसके द्वारा न्याय और व्यवस्था की जाती है और राज्य निजी स्वार्थ के व्यक्ति सामान्य हितों को संरक्षण देता है ।”
इसी बात को जे.बी.डी. मिलर ने इस प्रकार व्यक्त किया है ।
“कुछ ऐसे विवाद, जिन्हें लोग सरकार की सहायता के बिना नहीं सुलझा सकते । राजनीतिज्ञों का यह कर्तव्य है कि सामाजिक विवादों को निपटाए ताकि लोग मेल मिलाप की जिंदगी बिता सकें ।”
जेम्स मिल के अनुसार
“कानूनों की दक्षता का मापदंड केवल यह है कि वह किस सीमा तक और कितने लोगों को सुख पहुंचाता है । यानी राज्य द्वारा बनाए गए कानून कितने अच्छे हैं या बुरे यह नापने के लिए हमें यह देखना चाहिए कि वह कितनी ज्यादा हद तक लोगों के साहित्य से जुड़ा है ।”
आप जानते हैं कि राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण को मानने वाले लोग इस तरीके की व्यवस्था चाहते हैं ।
राजनीति के क्षेत्र में उदारवादी विचारधारा के लोग एक उत्तरदाई और प्रतिनिधि संस्था का समर्थन करते हैं । इस तरीके से वे लोकतंत्र का प्रबल समर्थन करते हैं । जेफरसन के अनुसार अच्छा शासन वह है जिसमें राज्य शक्ति किसी एक के हाथ में केंद्रित ना हो और जनसाधारण के बीच बांट दी जाए । यहां ध्यान रखने वाली बात किया है कि लोकतंत्र के भी कई स्वरूप है ।
उदारवाद का लोकतांत्रिक दृष्टिकोण
1 देश में एक से अधिक राजनीतिक दल होने चाहिए । जिसमें विभिन्न विचारधारा की पार्टियां हो और सरकार बनाने के लिए उनके बीच खुलकर प्रतियोगिता हो ।
2 राजनीतिक प्रतियोगिता में शांतिपूर्ण और संवैधानिक उपायों पर बल दिया जाए । ऐसा ना हो की सरकार बनाने के लिए हिंसा और बल का प्रयोग किया जाए । बल्कि शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव द्वारा इस प्रक्रिया को संपन्न किया जाए ।
3 ऊंचे राजनीतिक पदों पर नियुक्तियां खुली स्पर्धा द्वारा होनी चाहिए और समय-समय पर चुनाव के द्वारा होना चाहिए । जैसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति इनकी नियुक्तियां खुली स्पर्धा द्वारा होनी चाहिए । जिसमें कोई भी व्यक्ति उस में भाग ले सकें और यह समय समय पर चुनाव द्वारा किया जाना चाहिए ।
4 राजनीतिक निर्णयों पर प्रभाव गुटों के लिए जगह होनी चाहिए, ताकि कोई भी अपना गुट या यूनियन बना सकें । प्रभाव गुट जैसे इंडस्ट्री, फार्मर ग्रुप, लेबर यूनियन उदारवादी लोकतंत्र में इनके लिए भी जगह होनी चाहिए । जिससे कोई भी अपना यूनियन बना सके और अपनी बातों को गुटों के माध्यम से सरकार तक पहुंचा सके ।
5 न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग होना चाहिए । न्यायपालिका में सरकार या सरकार की किसी भी मशीनरी का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए । न्याय सबको समान और निष्पक्ष रुप से मिलना चाहिए ।
6 उदारवाद विभिन्न स्वतंत्रता और जनसंपर्क साधनों पर सरकार के एकाधिकार के अभाव का समर्थन करते हैं । इसका मतलब है, सरकार का हस्तक्षेप का विरोध करते हैं । उदारवादी व्यक्ति कम से कम अंकुश का समर्थन करते हैं ।
7 उदारवादी विचारधारा के अनुसार नागरिक स्वतंत्रता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आर्थिक स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया जाता है ।
राजनीति के विभिन्न दृष्टिकोण
उदारवादियों के अनुसार व्यक्तियों पर किसी का दबाव नहीं होना चाहिए । बल्कि उसे स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए । स्वतंत्रता का मतलब यह है कि सरकार नागरिकों पर अनुचित दबाव न डालें ।
स्वतंत्रता दो तरह की होती है । एक होती है, नकारात्मक स्वतंत्रता और दूसरी होती है, सकारात्मक स्वतंत्रता । तो उदारवादी सकारात्मक स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं । उदारवादी विचारधारा के अनुसार व्यक्ति के पास अपने विचारों को व्यक्त करने, भाषण देने या किसी भी प्रकार का प्रकाशन करने, लिखने तथा शांतिपूर्ण ढंग से वाद-विवाद करने का अधिकार मिलना चाहिए ।
नकरात्मक स्वतंत्रता (Negative Liberty) के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ Click करें ।
सकारात्मक स्वतंत्रता (Positive Liberty) को जानने के लिए यहाँ Click करें ।
जैसा कि हम सब जानते हैं, मीडिया और अखबारों को सरकार की एक संस्था चलाती है और उसे नियंत्रित करती है । जिसे हम सेंसर बोर्ड कहते हैं, इन सबको उसके अंतर्गत काम करना पड़ता है । और अगर सरकार नहीं चाहती कि कोई बात अपने नागरिकों को बताएं । वह उनके प्रकाशन पर भी रोक लगा सकती हैं । उदारवादी लोग इसको न्याय संगत नहीं मानते ।
धर्म के क्षेत्र में उदारवाद धार्मिक सहिष्णुता पर बल देता है । आपने एक शब्द सुना होगा Intolerance (असहिष्णुता), उदारवाद में इस शब्द के लिए कोई जगह नहीं है । उदारवादी व्यक्ति सभी धर्मों को एक नजर से देखते हैं और उनके अपने विश्वासों और उनकी अपनी रीति-रिवाजों का सम्मान करते हैं । उदारवाद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन जीने का तरीका स्वयं चुनने का अधिकार होना चाहिए । जिसमें व्यक्ति को कौन सी शिक्षा लेनी है, किस से विवाह करना है । यह सभी चुनाव उसकी खुद की होनी चाहिए । उन पर किसी भी प्रकार का राज्य तो छोड़िए बल्कि पारिवारिक दबाव भी नहीं होना चाहिए ।
आर्थिक उदारवाद
अब इसमें एक सवाल आता है कि “आर्थिक उदारवाद क्या है ?” इसकी भी हम विस्तार से चर्चा कर लेते हैं, जैसा अभी हमने देखा कि उदारवाद सरकार के हस्तक्षेप को सही नहीं मानता और शुरुआत में तो उदारवादी आर्थिक क्षेत्र में सरकार का जरा सा भी हस्तक्षेप नहीं चाहते थे । वह चाहते हैं कि सरकार राजनीतिक, सामाजिक और खासकर आर्थिक मामलों में कम से कम हस्तक्षेप करें ।
एडम स्मिथ और माल्थस जैसे अर्थशास्त्रियों का विचार था कि व्यक्ति खुद बहुत समझदार है । वह अपनी हानि और लाभ को खुद अच्छी तरह जानता है । इसलिए सरकार को आर्थिक क्षेत्र में स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए । इसमें वस्तु का उत्पादन करने वाले और उपभोक्ता यानी वस्तुओं का इस्तेमाल करने वाले उनमें से किसी पर भी सरकार का कोई जवाब नहीं होना चाहिए । सरकार दबाव कैसे डालती है ? कर (tax) के द्वारा या किसी चीज पर सरकार सब्सिडी देती है । यह सभी चीजें मार्केट मूल्य को कम या ज्यादा करते हैं । उदारवादी खुली स्पर्धा का समर्थन करते हैं । उनके अनुसार वस्तुओं का मूल्य और मजदूरी की दर, मांग और पूर्ति की आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित होना चाहिए । ऐसी व्यवस्था यूरोप के कई देशों में शुरुआत में अपनाई गई, लेकिन अहस्तक्षेप की इस नीति से मजदूरों की स्थिति बहुत खराब हो गई । क्योंकि पूंजीपतियों ने श्रमिकों को बहुत कम मजदूरी देकर उनसे ज्यादा से ज्यादा काम लेना शुरू कर दिया । अपना लाभ अधिक करने के चक्कर में उद्योगपतियों ने केवल अपने उत्पादन पर बल दिया । उन्होंने अपने मजदूरों के स्वास्थ्य और उनके भोजन पर जरा भी खर्च नहीं किया । इसलिए बाद में उदारवादियों ने श्रमिकों को संरक्षण देने की मांग उठाई ।
बेंथम और स्टुअर्ट मिल जैसे उदारवादीओं ने बाद में स्वीकार किया कि आर्थिक मामलों में भी सरकार की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है । लोगों की रोजमर्रा की चीजें, जीने के फैसले को उपलब्ध कराना, किसी भी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य होता है । ध्यान रखें कि आधुनिक उदारवादी भी सरकार से केवल इतनी ही अपेक्षा करते हैं कि सिर्फ आधारभूत सुविधा उपलब्ध कराएं । वह मार्केट में सरकार के हस्तक्षेप को अभी भी मंजूर नहीं करते । वह उसे अनुचित मानते हैं ।
आधुनिक युग के प्रमुख राजनीतिक विचारकों में से कई उदारवादी होते हुए भी राज्य के कार्य क्षेत्र को बहुत व्यापक मानते हैं । उनके अनुसार ऐसे में पूंजीवाद से उपभोक्ताओं का और श्रमिकों का शोषण होता है और साथ ही उत्पादन में धन की बर्बादी भी होती है । इसलिए आधुनिक उदारवादी आर्थिक नियोजन के पक्ष में हैं । अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के पक्ष में हैं ।
जहां सरकार कुछ लक्षणों का विश्लेषण करें और उसके हिसाब से उद्योगपतियों द्वारा उसका उत्पादन किया जाए । इसी के साथ आधुनिक उदारवादी महत्वपूर्ण उद्योग व कंपनियों पर सरकारी नियंत्रण का कुछ हद तक समर्थन भी करते हैं । विचारक मैक्यावली का कहना है कि रसायन, खाद्य, चीनी, खाद्य पदार्थ व तेल आदि जैसे उद्योग इतने महत्वपूर्ण है कि उनके विषय में उद्योगपतियों को स्वतंत्र नहीं छोड़ा जा सकता और व्यवहारिक रूप से भी अगर हम अपने आसपास देखें तो जहां भी उदारवादी लोकतंत्र हैं, वहां महत्वपूर्ण उद्योग सरकार के अधीन ही चल रहे हैं । उदाहरण के लिए इंग्लैंड में लोहे, कोयले, विद्युत और गैस आदि जैसे उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया जा चुका है । आप भारत में देख लीजिए जहां बैंकिंग, रेल और कोयला जैसे महत्वपूर्ण उद्योग सरकार द्वारा चलाए जाते हैं । या तो इनमें से कुछ सरकार या कुछ प्राइवेट कंपनियां मिलकर चलाते हैं । इस तरीके से आधुनिक उदारवादी आंशिक राष्ट्रीयकरण को स्वीकार करते हैं और साथ ही वह यह कहते हैं कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था का संचालन सरकार नहीं कर सकती । कृषि और उद्योग जैसे क्षेत्र में काफी सीमा तक वह निजी स्वामित्व के समर्थक हैं । कुल मिलाकर उदारवादी सरकार के समर्थक हैं और उनको एक साधन के रूप में मानते हैं । लेकिन समाज कल्याण के साधन के रूप में जो समाज के हर स्तर के व्यक्तियों के लिए जरूरी है कि कार्य करें । साथ ही आर्थिक समस्या मामलों में सरकार का हस्तक्षेप चाहते हैं ।
तो दोस्तों ये था राजनीति का उदारवादी दृष्टिकोण, अगर Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!