Political Development in Hindi
Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में राजनीतिक विकास की । इस Topic के अंदर हम जानेंगे राजनीतिक विकास का अर्थ, परिभाषा, लक्षण और उसकी प्रकृति के बारे में । राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए यह महत्वपूर्ण विषय है ।
राजनीतिक विकास का अर्थ
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में 1960 के दशक में यह एक अवधारणा थी, जिसमें राजनीति में होने वाले बदलाव को विश्लेषण के रूप में देखा गया । इसका उद्देश्य नवोदित एवं विकासशील देशों की राजनीतिक प्रक्रिया का विश्लेषण करना था । राजनीतिक विकास को राजनीतिक परिवर्तन के नाम से भी जाना जाता है । दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यह राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में विकसित अवधारणाओं में से एक है । राजनीतिक विकास की अवधारणा का संबंध नए बने और विकासशील राष्ट्रों की संस्थागत प्रक्रियाओं, स्थिति, लक्ष्य और गतिविधियों से है । अगर देखा जाए तो यह राजनीतिक आधुनिकीकरण का एक रूप है ।
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यह माना जाता है कि इस संकल्पना का सूत्रपात अमेरिकी राजनीति विज्ञान के अंतर्गत 1960 के प्रारंभ में होने वाले दशक में हुआ । इसका उद्देश्य तीसरी दुनिया के विकासशील राष्ट्रों की राजनीतिक प्रक्रिया का विश्लेषण करना था । ताकि तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन को वैश्विक आधार प्रदान किया जा सके ।
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आज के समय में हर राष्ट्र, राज्य, देश विकास करना चाहता है । विकास एक बहुआयामी (Manifold) प्रकिया है । जिसके द्वारा अनेक स्तरों पर विकास होता है । यह निश्चित लक्ष्यों के साथ एक विशिष्ट दिशा में परिवर्तन की ओर ले जाती है । एक शब्द के रूप में सामाजिक प्रक्रिया के किसी भी पहलू के बेहतर प्रगति या परिवर्तन के बारे में बताती है ।
आइए अब जानते हैं, राजनीतिक विकास की परिभाषा के बारे में ।
राजनीतिक विकास की परिभाषा
हालाँकि राजनीतिक विकास की कोई सर्वमान्य परिभाषा उपलब्ध नहीं है, क्योंकि यह विभिन्न प्रकार की राजनीतिक प्रक्रियाओं व गतिविधियों का संयुक्त रूप है । इस तरह राजनीतिक विकास की अवधारणा के प्रमुख विचारकों में लुसियान पाई, अमांड-पावेल, कोलमैन, एडवर्ड शिल्स आदि हैं, जिन्होंने राजनीतिक विकास के बारे में बताने का प्रयास किया है ।
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इस तरह राजनीतिक विकास के अर्थ के बारे में अलग अलग विचारकों में अनेक मतभेद हैं । जिसके कारण विचारकों का विविधता पूर्ण दृष्टिकोण है । आइये जानते हैं कुछ विचारकों के दृष्टिकोण के बारे में ।
1) राजनीतिक विकास को आर्थिक विकास की प्रथम शर्त मानने वालों में प्रमुख विचारकों में स्पर्ट, एमर्सन, लिपसेट, कोलमैन और कतराइट आदि हैं ।
2) राजनीतिक विकास, औद्योगिक समाजों का विशेष राजनीति है । रोस्टोव के अनुसार ।
3) राजनीतिक विकास, राजनीतिक आधुनिकीकरण का पर्याय माना जाता है । यह गुन्नार, मिर्डल और लर्नर के अनुसार माना जाता है ।
4) बाइंडर के अनुसार राष्ट्रीय विकास को राष्ट्रीय राज्य का प्रचालक या संगठन मानते हैं ।
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5) राजनीतिक विकास को प्रशासकीय और कानूनी विकास के रूप में देखा जाता है । रिग्स के अनुसार ।
6 डायच और फ़र्ल्स के अनुसार राजनीतिक विकास को जनसंचारण और जन सहभागिता रूप माना जाता है ।
अगर आप देखेंगे तो ल्यूसियान पाई का नाम राजनीति विकास की अवधारणा के विश्लेषण और विकास में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है । उन्होंने विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर राजनीतिक विकास को समझने का प्रयास किया है । जिसका वर्णन उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक एस्पेक्ट्स आफ पॉलीटिकल डेवलपमेंट (Aspects of Political Development) में विस्तार से किया है ।
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ल्यूसियान पाई ने अपने अनुभव, व्याख्या तथा विश्लेषण के आधार पर इसके 3 लक्षण बताये हैं ।
i) समानता
ii) क्षमता
iii) विभेदीकरण
i) समानता को राजनीतिक विकास का आधार माना है । पाई के अनुसार सभी कानून की दृष्टि में एक समान हो तथा जनता राजनीतिक प्रक्रियाओं में अधिक से अधिक भाग ले । वह अपनी सक्रियता को प्रदर्शित करें तथा जनता में समानता के सिद्धांतों के प्रति अधिक संवेदनशीलता पैदा करें । इसमें शासक व शाषित वर्ग के बीच कोई विषमता ना हो ।
ii) क्षमता राज्य व्यवस्था की वह मूल्यवान शक्ति है, जिसके द्वारा सार्वजनिक मामलों और निर्णय को और भी अच्छी तरह से पूरा किया जा सकता है । इसके अंतर्गत राजनीतिक मामलों का प्रबंधन, जनता की मांगों का निपटारा, राजनीतिक विवादों का उचित नियंत्रण शामिल है । क्षमता के द्वारा शाशक की शक्ति को मापा और पहचाना जा सकता है ।
iii) विभेदीकरण को राजनीतिक प्रणाली में किसी कार्य को पूरा कराने के लिए कई प्रकार की संरचनाओं का घोतक है । इसमें राजनीतिक संस्थाओं का संकलन, आत्मक विधि करण बढ़ जाता है । उनके कार्यों का विशेषीकरण बढ़ जाता है तथा सहभागी संस्थाओं और संगठनों में एकीकारण भी बढ़ जाता है । कार्य को विशेष रूप से निष्पादित किया जाता है ।
परन्तु इन तीनों ही लक्षणों का एक दूसरे के साथ आसानी से समन्वय नहीं हो पाता है । समानता और क्षमता एक दूसरे को चुनौती दे सकती है । इन तीनों का आपस मे मेल नहीं होता ।
इसी तरह राजनीतिक विकास को समझने के लिए अन्य विचारकों में आलमंड और पावेल है । उनके अनुसार
“राजनीतिक विकास, राजनीतिक संरचनाओं में अभिवृद्धि विभिन्न कारणों और विशेषीकरण तथा राजनीतिक संस्कृति का बढ़ा हुआ लौकिकीकरण है ।”
इस धारणा में यह माना जाता है कि जिस संस्था को जो कार्य दिया जाए, वह उसी कार्य को करें । इससे उनके कार्यों का विशेषीकरण होगा तथा अधिक स्वायत्तता प्राप्त होगी । वह अपने इन कार्यों में दक्षता हासिल कर लेंगे ।
राजनीतिक विकास में संस्कृति का लौकीकरण से आशय परंपरागतता से दूर होना तथा धर्मनिरपेक्षता की ओर बढ़ना है, ताकि व्यक्तियों में समानता आ सके । उनके बीच मतभेद खत्म हो सके ।
इस प्रकार आलमंड और पावेल के इस मॉडल का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता और दक्षता को बढ़ाना है, ताकि वह कुशलता से अपने कार्य को निष्पादित कर सकें । और धर्मनिरपेक्षता द्वारा व्यक्तियों में समानता लाई जा सके ।
राजनीतिक विकास की प्रकृति
आइए अब जानते हैं, राजनीतिक विकास की प्रकृति के बारे में । राजनीतिक विकास की प्रकृति प्रगतिशील, संकल्पनात्मक और विकासात्मक है । यह एकमार्गीय व एकपक्षीय न होकर बहुमार्गी तथा बहुपक्षीय प्रक्रिया है । जिसमें रचनाशीलता का गुण पाया जाता है । किसी भी व्यवस्था की उपयोगिता वहां पर होने वाले राजनीतिक विकास से लिया जाता है ।
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इसके अलावा राजनीतिक विकास की प्रकृति को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में व्यवस्थापित किया जा सकता है । जिसके द्वारा राजव्यवस्था अपने लक्ष्यों की पूर्ति करने की क्षमता बढ़ाती है और नए नए संगठन बना लेती है । साथ ही साथ जनता की राजनीतिक व्यवस्था में सहभागिता, अनेक सामाजिक संस्थाओं की अनुक्रियाओं का राजनीतिक विकास की प्रकृति पर प्रभाव पड़ता है ।
पिंकल और गेबल के अनुसार
“राजनीतिक विकास अर्ध विकसित देशों में एक ही साथ सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों का कारण और परिणाम होता है ।”
तो दोस्तों ये था, राजनीतिक विकास उसका अर्थ, परिभाषा, लक्षण और प्रकृति के बारे में अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!