What is Behaviouralism in Political Science
Hello दोस्तो ज्ञानउदय में आपका स्वागत है, आज हम जानेंगे राजनीति विज्ञान में व्यवहारवाद के बारे में । व्यवहारवाद का नियम द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में आया और इसके बाद इस विषय पर जोर दिया गया । इस Post में हम जानेंगे व्यवहारवाद क्या है ? इसका अर्थ, इसको अध्ययन करने की क्या-क्या पद्धतियां अपनाई जाती हैं । और इसकी शुरुआत कैसे हुई ? तो जानते हैं, आसान भाषा में ।
अक्सर विद्यार्थियों में इस शब्द को लेकर संशय बना रहता है । क्योंकि अलग अलग विद्वानों द्वारा इसे अलग अलग माना गया है । कुछ व्यवहारवाद को व्यवहारवादी दृष्टिकोण मानते हैं, कुछ व्यवहारवादी उपागम और कुछ व्यवहारवादी सिद्धांत । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद व्यवहारवाद का राजनीतिक समस्याओं को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है । इसके साथ साथ इसे अध्ययन के रूप में भी स्वीकार किया गया है ।
व्यवहारवाद का अर्थ
राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए परंपरागत दृष्टिकोण के स्थान पर नए दृष्टिकोण को अपनाना ही व्यवहारवाद माना जाता है । इस प्रकार से परंपरागत रूप से चले आ रहे उन तथ्यों को हटाकर, जो कि तथ्य परक नहीं थे, बल्कि अनुमान पर आधारित थे, एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता महसूस हुई । जो कि किसी अनुमान या धारणा के ऊपर निर्भर न होकर, तथ्यों और व्यवहारिकता पर आधारित है ।
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प्लेटो के समय से ही राजनीति विज्ञान का अध्ययन किया जा रहा है । राजनीतिक समस्याओं को सुलझाने के लिए, प्लेटो ने दार्शनिक दृष्टिकोण अपनाया जो कि तथ्यों पर आधारित न होकर, संभावनाओं पर आधारित था । प्लेटो की तरह ही अनेक विद्वानों ने समस्याओं को सुलझाने के लिए दार्शनिक दृष्टिकोण को अपनाया । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद व्यवहारवाद का विकास एक क्रांति के रूप में हुआ । इसका उद्गम हुआ । क्योंकि व्यवहारवाद के जो मानने वाले थे, वह भी व्यवहारवाद को लेकर एकमत नहीं थे । आखिरकार इसका अर्थ क्या है ? कोई इसको सिद्धांत कहता है । कोई इसको क्रांति मानता है । कोई इसको दृष्टिकोण । सभी ने इसे अलग अलग नामों से परिभाषित किया गया है ।
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जब प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध हुआ तो, इन युद्धों के बाद जो समस्याएं पैदा हुई, उनका स्वरूप बहुत ही विकराल हो गया था और वास्तव में उन समस्याओं का स्वरूप इतना उलझ गया कि उसे सुलझाने के लिए पूरे विश्व में चर्चा करने के लिए अमेरिका के वैज्ञानिकशास्त्र जो थे उसका मानना था कि अब जो गंभीर समस्याएं जो युद्ध उपरांत पैदा हुई है । पूरी दुनिया और अमेरिका में उन समस्याओं को ठीक से समझने की आवश्यकता थी । उनके बारे में हम केवल कोई एक दृष्टिकोण अपनाएं या फिर राय नहीं दे सकते थे । हमें उसकी वास्तव में वास्तुनिष्ठ जानकारी चाहिए । उस समस्या का स्वरूप क्या है ? और उसकी क्या बारीकियां है ? जो प्लेटों के समय से राजनीति सिद्धांत द्वारा का हल किया जाता था और उसके द्वारा उसके समर्थन किए जाते थे । लेकिन वर्तमान समय में अब यह दृष्टिकोण कारगर नहीं है ।
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अब हमें दूसरे तरीके से इन समस्याओं को सुलझाना होगा, क्योंकि तथ्य को जाने बिना उसका समाधान नहीं किया जा सकता । जांच पड़ताल करके हमें अपना निष्कर्ष निकालना होता है और इस प्रकार से वह परंपरागत रूप से चला आ रहा था । तभी का उसको हटाकर एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता महसूस हुई और इसी नए दृष्टिकोण को व्यवहारवाद के नाम से जाना जाता है । जो कि किसी अनुमान, कल्पना या धारणा के ऊपर निर्भर करता है ।
व्यवहारवाद के अध्ययन तत्व
आइये अब जनते हैं, व्यवहारवाद की अध्ययन की पद्धतियों के बारे में । वह कौन-कौन से ही पद्धति है, जिनके द्वारा राजनीतिक समस्याओं का हल व्यवहारवाद में निकाला जाता है । यह जो व्यवहारवाद शुरू हुआ उसमें दो तीन विशेष चीजों पर ध्यान दिया ।
1 आनुभाविक पद्धति (Imperialism Method)
2 वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method)
अध्ययन की पद्धति के अनुसार हम जो भी आकलन करेंगे, तथ्यों पर आधारित होना चाहिए । वह मूल्यपरक नहीं होना चाहिए । ऐसा नहीं होना चाहिए वह संभावनाओं, कल्पनाओं पर आधारित हो । इसमें यह माना जाता है कि तथ्य क्या कहता है । इस पद्धति की है विशेष बात यह है कि इस तरीके से अनुभवी अध्ययन का जन्म हुआ । जो कि अध्ययन अनुभव के आधार पर किया जाने लगा । यानी जो घटना घटित हो चुकी है, उसके अनुभव से हम परिचित होते हैं ।
वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method)
इस पद्धति में हम तथ्यों को प्राप्त करेंगे । उसका हम अनुमान नहीं करेंगे यानी कि जब घटनाएं घट जाती है, तो उनके उनके बाद आने वाली समस्याएं क्या-क्या होती हैं । उनको अध्ययन करके उन तथ्यों को पढ़कर ही हम एक निष्कर्ष पर पहुंचते हैं । व्यवहारवाद ने अनुभव एक अध्ययन के रूप में जन्म दिया । इस अध्ययन में एक सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाया गया । इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण को रखा गया और यह कहा गया कि यह जो हम अध्ययन करेंगे, वह तथ्यों पर आधारित होगा और यह तथ्य में वैज्ञानिक विधियों से प्राप्त होंगे ।
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अध्ययन का आधार
आइये अब जानते हैं, व्यवहारवाद में अध्ययन के आधार के बारे में । मुख्य रूप से इसमें अध्ययन का आधार व्यक्तिगत (Personal) होता है । यानी कि इसमें निजी तौर पर हर व्यक्ति की प्रतिक्रिया ली जाती है । ऐसा नहीं कि किसी एक ग्रुप के पास जाकर, या सिर्फ कुछ लोगों से मिलने पर कोई धारणा बना लें, ऐसा नहीं । बल्कि हम एक एक व्यक्ति से निजी तौर पर जाकर मिलेंगे और उसके आधार पर हम अपने तथ्यों को इकट्ठा करेंगे और जो हर व्यक्ति का अपना व्यवहार है और जो उनका अपनी निजी राय है, उसके आधार पर ही हम कोई निष्कर्ष निकालेंगे । अक्सर व्यक्ति का निजी व्यवहार कई सारे कार्य को से प्रभावित होता है, जो हमें दिखाई नहीं देते । वैज्ञानिक पद्धति द्वारा हम अनुभव से एक अध्ययन करके, उस अध्ययन के निष्कर्ष के आधार पर हम तथ्यों का संकलन करेंगे और उन तथ्यों के विश्लेषण से हम बताएंगे कि समस्या का स्वरूप क्या है और इसके बाद हम इसका समाधान भी निकालेंगे ।
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व्यवहारवाद की शुरुआत
आइए अब हम जानते हैं, व्यवहारवाद के उपागम के बारे में यानी इसकी शुरुआत कैसे हुई ? इसकी शुरुआत अमेरिका के विश्वविद्यालय द्वारा 1920 और 30 के दशक में हुई । इसमें दृष्टिकोण प्रतिपादित किया है कि हम किसी भी व्यक्तिगत के राजनीतिक दृष्टिकोण को समझेंगे । तभी हम सही ढंग से राजनीति कर पाएंगे । सबसे पहले इसको चार्ल्स मरियम ने शुरुआत की । कुछ विद्वान इनको व्यावहारवादिता के पिता (फादर ऑफ बिहेवियरलिज्म) भी कहते हैं । इसमें जो अमेरिकन साइंस पॉलिटिशन एसोसिएशन थी, इसमें ईस्टन नाम के एक विद्यमान ने इसको एक सैद्धांतिक रूप दिया । उन्होंने इसे एक एकेडमिक क्रांति का नाम दिया उनके द्वारा ही व्यवहारवाद के अध्ययन की पद्धति बनाई गई 1930 और 40 के अध्ययन से इस व्यवहारवाद का जन्म हुआ ।
व्यवहारवादी आंदोलन
ईस्टर्न के बाद बहुत सारे विद्वानों ने व्यवहारवाद में अपना योगदान दिया और इस तरीके से व्यवहारवादी आंदोलन की शुरुआत हुई । और इस तरीके से व्यवहार वादी आंदोलन ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया और अनेक विद्वानों की सोच बदल दी । इस तरीके से दूसरे विश्व युद्ध के बाद तीसरी दुनिया के देशों में मुख्य रूप से अनिवार्य हो गया कि हम अपनी समस्याओं को तथ्यात्मक रूप से समझने का प्रयास करेंगे । और उनका समाधान वैज्ञानिक और अनु भाविक पद्धति के आधार पर करेंगे ।
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इस तरीके से दार्शनिक दृष्टिकोण का महत्व खत्म हो गया और वैज्ञानिक पद्धति के महत्व को बढ़ावा मिला । जिस तरीके से विज्ञान में एक तथ्य को दूसरे तथ्य से अंतर संबंध स्थापित किया जाता है, उसी तरीके से व्यवहारवादी विधि में वैज्ञानिक पद्धति द्वारा तथ्यों को एक दूसरे को जोड़ा जाता है ।
तो दोस्तो ये था व्यवहारवादी नियम, व्यावहार का अर्थ, अध्ययन की पद्धति और इसकी शुरुआत । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!