Fundamental Rights in Indian Constitution in hindi
Hello दोस्तो ज्ञान उदय में आपका स्वागत है । आज हम जानेंगे भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के बारे में । (Fundamental Rights in hindi) । इसमें हम जानेंगे संविधान के उन अनुच्छेदों के बारे में जिसमें भारतीय नागरिकों के लिए अधिकार दिए गए हैं । तो चलिए आसान भाषा में समझते हैं ।
प्रत्येक व्यक्ति को अपना विकास करने और आगे बढ़ने के लिए अनेक अधिकारों की आवश्यकता होती है । जिनका इस्तेमाल करके व्यक्ति अपने जीवन मे सफलता हासिल करता है । इन आवश्यक अधिकारों को ही मौलिक अधिकार कहा जाता है ।
मौलिक अधिकारों से अभिप्राय,
“राज्य या समाज द्वारा प्रदान किये गए वह अधिकार जो व्यक्तियों के सर्वागिण विकास के लिए ज़रूरी है । साथ ही साथ इनके संरक्षण कि व्यवस्था भी की जाती है ।”
10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा वैश्विक मानवाधिकारो की घोषणा की गई । इसलिए प्रत्येक 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
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वर्तमान में मौलिक अधिकार
वर्तमान में भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकार हैं । हालांकि प्रारम्भ में भारतीय संविधान में 7 मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया था । परन्तु संविधान में 44 वे संशोधन 1978 द्वारा संपत्ति के अधिकार (इसकी व्यवस्था अनुच्छेद 31 में मिलती है ।) को मौलिक अधिकारों की श्रेणी से हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300A के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में माना जाता है । संविधान के भाग 3 में इन अधिकारों का वर्णन मिलता है । 6 मौलिक अधिकार निम्नलिखित हैं ।
1 समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक)
2 स्वतंन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 तक)
3 शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 व 24 तक)
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4 धार्मिक स्वतंन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28 तक)
5 शिक्षा और संस्कृति का अधिकार (अनुच्छेद 29 और 30 तक)
6 सवैधानिक उपचारो का अधिकार (अनुच्छेद 32)
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आइये अब इन अधिकारों के बारे में विस्तार से जान लेते हैं । विद्यार्थियों की सुविधा और समझ के लिए आसान भाषा में बताया गया है, जिसे पढ़कर विद्यार्थी अच्छे नंबर ला सकते हैं ।
1 समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)
(अनुच्छेद 14) कानून के समक्ष समानता यानी कानून की नज़रों में सब बराबर है । कोई छोटा या बड़ा नहीं, अमीर गरीब नही । न्याय की दृष्टि से कानून सभी को एक नज़र से देखता है ।
(अनुच्छेद 15) इस अनुच्छेद में भेदभाव की मनाही की गई है । राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ जाती, धर्म, लिंग, वर्ण, आयु, निवास स्थान और संपत्ति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा ।
(अनुच्छेद 15(3)) के अन्तर्गत राज्य महीलाओं और बच्चों के लिए विशेष सुविधा उपलब्ध करवा सकता है ।
(अनुच्छेद 16) सरकारी नौकरी में सभी को अवसर की समानता । सरकारी नौकरीयों में आरक्षण का प्रावधान आदि ।
(अनुच्छेद 16(1)) राज्य किसी व्यक्ति को धर्म, जाती, लिंग, वर्ण और निवास स्थान के आधार पर नौकरी प्रदान करने में भेदभाव नहीं करेगा । लेकिन राज्य किसी प्रान्त के निवासियो को छोटी नौकरीयों में कानून बनाकर संरक्षण प्रदान कर सकता है ।
(अनुच्छेद 16(4)) के अनुसार राज्य किसी पिछड़े वर्ग के नागरिको को विशेष संरक्षण प्रदान कर सकता है ।
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(अनुच्छेद 17) इस अनुच्छेद के अनुसार अस्पृश्यता यानी छुआछूत की मनाही और इसका अन्त । भारतीय संसद ने अस्पृश्यता निषेध अधिनियम 1955 बनाकर इसे दण्डनिय अपराध में शामिल किया है ।
(अनुच्छेद 18) इस अनुच्छेद के अंतर्गत उपाधियों का अन्त किया गया है । राज्य शिक्षा, कला और सैनिक क्षेत्र के अलावा उपाधि प्रदान नहीं करेगा । हालांकि वर्तमान में समाज सेवा को जोड़ा गया । उपाधि ग्रहण करने से पूर्व देश के नागरिक तथा विदेशी व्यक्तियों को राष्ट्रपति की अनुमति लेना आवश्यक है ।
2 स्वतन्त्रता का अधिकर (अनुच्छेद 19 से 22 तक)
अब हम बात करते हैं, स्वतंत्रता के अधिकारों की । अनुच्छेद 19 से 22 तक इसके बारे में बताया गया है ।
(अनुच्छेद 19) इसमें 6 तरह की स्वतंन्त्रता के बारे में बताया गया है ।
(अनुच्छेद 19(1A) के अनुसार भाषण या अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता । प्रैस और मिडिया की स्वतंन्त्रता । साथ ही साथ 12 अक्टूबर 2005 से जोड़ा गया है, सूचना प्राप्त करने का अधिकार ।
(अनुच्छेद 19(1B) के अनुसार बिना हथियार के शान्ति पूर्वक बिना सम्मेलन या सभा करने की स्वतन्त्रता ।
(अनुच्छेद 19(1C) के द्वारा संघ या समुदाय बनाने की स्वतंन्त्रता । इस अनुच्छेद का अपवाद है कि सैन्य संगठन और पुलिस बल समुदाय नहीं बना सकते ।
(अनुच्छेद 19(1D) के अनुसार भ्रमण करने और घूमने फिरने की स्वतंन्त्रता ।
(अनुच्छेद 19(1E) के द्वारा व्यापार या आजिविका कमाने की स्वतन्त्रता ।
(अनुच्छेद 19(1F) के अनुसार आवास और स्थायी रूप से निवास करने की स्वतन्त्रता ।
उपरोक्त स्वतंत्रताएं एकता, अखंडता और नैतिकता को ध्यान में रखकर दी गई हैं । अगर कोई इसके लिए खतरा होता है तो या अव्यवस्था पैदा होती है तो उस पर पाबंदी लगाई जा सकती है ।
(अनुच्छेद 20) के द्वारा अपराधों के दोषसिद्ध के सम्बन्ध में सरंक्षण प्राप्त करने का अधिकार ।
(अनुच्छेद 20(1) के हिसाब से किसी व्यक्ति को तब तक अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक उसने कानून की कोई अवहेलना न की हो ।
(अनुच्छेद 20(2) के अनुसार किसी व्यक्ति के लिए एक अपराध के लिए दण्डित किया जा सकता है ।
(अनुच्छेद 20(3) के द्वारा किसी व्यक्ति को स्वंय के विरूद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता ।
(अनुच्छेद 21) के अनुसार ‘जीवन और दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार’ । कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी व्यक्ति का जीवन नहीं छीना जा सकता ।
(अनुच्छेद (21A) के अनुसार 86वें संविधान संशोधन 2002 के अंतर्गत, 6-14 वर्ष के बालकों को निशुल्क् अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है । शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, 1 अप्रैल 2010 से सम्पुर्ण भारत में लागू ।
(अनुच्छेद 22) के द्वारा कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार, इसमें निवारक, निरोधक विधि भी शामिल है ।
(अनुच्छेद 22(1) के द्वारा गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उसके कारण बताने होंगे ।
(अनुच्छेद 22(2) के अनुसार गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को वकील से परामर्श प्राप्त करने का अधिकार ।
(अनुच्छेद 22(3) के द्वारा 24 घंटे में गिरफ्तार व्यक्ति को सबंधित न्यायलय में पेश करना होगा । यात्रा व अवकाश का समय शामिल नहीं । अगर इस अवधि में मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया तो गिरफ्तार किये व्यक्ति को छोड़ना पड़ेगा ।
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यह सुविधा 2 तरीके के व्यक्तियों के लिए नहीं है । एक तो निवारक नज़रबंदी के तहत गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को । दूसरा शत्रु देश के नागरिक को गिरफ्तारी ।
3 शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 और अनुच्छेद 24)
(अनुच्छेद 23) के अनुसार मानव का अवैध क्रय-विक्रय, व्यापार, दास प्रथा, तथा बेगार प्रथा को पूर्णतय प्रतिबन्धित किया गया है । इसका अपवाद राज्य किसी सार्वजनिक सुविधा के लिए अनिवार्य श्रम लागू कर सकता है ।
(अनुच्छेद 24) के द्वारा बाल बाज़दूरी पर पाबंदी । 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को उद्योग, धन्धों में काम पर नहीं लगाया जा सकता ।
4 धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28 तक)
(अनुच्छेद 25) के अनुसार किसी भी धर्म को मानने और उसके प्रचार का अधिकार ।
(अनुच्छेद 26) के द्वारा माने गये धर्म के प्रबंधन करने की स्वतन्त्रता (प्रबन्धन- चल और अचल सम्पति का) ।
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(अनुच्छेद 27) के अनुसार धार्मिक कार्यों के लिए धन पर कर (Tax) में छूट ।
(अनुच्छेद 28) के अनुसार धर्मिक संस्थान खोलने और धार्मिक शिक्षा का अधिकार ।
5 शिक्षा और संस्कृति का अधिकार (अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30)
(अनुच्छेद 29) के अनुसार राज्य के अन्तर्गत रहने वाला प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा, लिपी और संस्कृति को सुरक्षित और संरक्षित करने का अधिकार है ।
(अनुच्छेद 30) के अनुसार भाषा, लिपी और संस्कृति की सुरक्षा हेतु सभी अल्पसंख्यक वर्गो को अपनी पसन्द की शिक्षण संस्थान की स्थापना करने का अधिकार है । ऐसी संस्थाओं में प्रवेश से वंचित नहीं किया जायेगा ।
6 संवैधनिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद – 32)
यह सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद है । संवैधानिक उपचारों के अधिकार को मौलिक अधिकारों की आत्मा भी कहा जाता है, क्योंकि ये अधिकार मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है । डा. अम्बेडकर ने इसे संविधान की आत्मा कहा है ।
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मौलिक अधिकारों को उचित संरक्षण प्रदान करने के लिए 5 writs बताये गए हैं ।
A) बन्दी प्रत्यक्षीकरण – (Havoc Corpus)
B) परमादेश – (Mandamus)
C) प्रतिषेध – (Prohibition)
D) उत्प्रेषण – (सैरिसिरियो)
E) अधिकार पृच्छा – (क्यू वारेन्टो)
इन रिटो को न्याय का झरना कहा जाता है ।
A) बन्दी प्रत्यक्षीकरण – इसके अंतर्गत गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को न्यायालय अपने सामने पेश करने का आदेश देता है । यदि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति निर्दोष है तो, उसे छोड़ने का आदेश दे सकता है ।
B) परमादेश – इसके अंतर्गत न्यायालय किसी संस्था को अपने कर्तव्यों का पालन करने का आदेश दे सकता है ।
C) प्रतिषेध – मना करना – सर्वोच्च न्यायलय अपने अधिनस्थ न्यायलय को सीमा से बाहर जाकर कार्य करने को मना करता है ।
D) उत्प्रेषण – इसके अंतर्गत अगर कोई अधीनस्थ न्यायालय में सुनवाई ठीक तरह से नही हो रही है तो न्यायालय उस मुकदमे को अपने यहाँ पर सुनवाई कर सकता है ।
E) अधिकार पृच्छा – के अनुसार किसी अधिकार से किसी सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा जब कोई पद वैद्य या अवैद्य तरीके से प्राप्त किया जाता है, तो उसके कारणों की समीक्षा करता है ।
तो दोस्तों ये थे भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के बारे में । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!
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