Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विचार के अंतर्गत, भारतीय राजनीतिक विचारकों में महात्मा गांधी के सर्वोदय के सिद्धांत के बारे में । इस Topic में हम जानेंगे गांधी जी के सर्वोदय की अवधारणा के बारे में, इसकी विशेषताएं और साधन क्या है ? गांधीजी ने अपने इस सिद्धांत में सभी लोगों के उन्नति कल्याण और उदय की बात की है । सत्य और अहिंसा की साक्षात मूर्ति महात्मा गांधी भारत के ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के आदित्य व्यक्ति थे । उनके हृदय में समस्त मानव जाति के प्रति असीम श्रद्धा का भाव था । वह एक ऐसे कर्म योगी थे, जो कथनी और करनी को बराबर महत्व देते थे ।
महात्मा गांधी के सर्वोदय की अवधारणा का अर्थ
सामान्य शब्दों में सर्वोदय गांधी जी द्वारा प्रतिपादित एक ऐसी अवधारणा है, जिसके अंतर्गत सभी लोगों के हित की बात की जाती है । जिसका सामान्य अर्थ है, “सभी लोगों का कल्याण, उदय और उनका विकास और उन्नति । यह एक भारत की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक समस्याओं के निराकरण के लिए महात्मा गांधी द्वारा चलाया गया एक सामूहिक आंदोलन है, जो मानव जीवन के दार्शनिक पक्ष पर आधारित है और इसका उद्देश्य समाज को ऐसा रूप देना है जिसमें, आर्थिक विषमता, दरिद्रता, शोषण आदि के लिए कोई स्थान ना रहे और सभी लोग समान रूप से उन्नति और समृद्ध उन्नति कर सकें ।
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गांधीजी किसी एक धर्म, जाति, देश व समुदाय के कल्याण के पक्षपाती ना होकर संपूर्ण विश्व में मानव जाति के कल्याण व उत्थान का सपना देखते थे । उनकी यह दूरदर्शी सोच थी । भारत के स्वतंत्र होने पर भारतीय समाज की सामाजिक व आर्थिक बुराइयों का अंत करना उनकी प्राथमिकता होगी । भारतीय स्वतंत्रता का सपना तो गांधीजी के जीवन काल में साकार हो गया था, लेकिन संपूर्ण जाति का कल्याण करने कि उनकी इच्छा अधूरी रह गई थी ।
सर्वोदय के विचार का जन्म एक प्रकार से
“सर्वे भवंतु सुखिन”
भारतीय दर्शन का आधार है । इस बात में सर्वोदय का विचार छिपा हुआ है । भारतीय चिंतकों ने सर्वदा किसी वर्ग विशेष के कल्याण की बात न करके संपूर्ण मानव जाति के कल्याण की बात कही है । गांधीजी के मन में यह विचार जॉन रस्किन की किताब “Unto Last” को पढ़ने के बाद आया और उन्होंने अपने मन में सबके कल्याण की बात बिठा ली थी ।
गांधी जी ने खुद स्वीकार किया है कि
“इस पुस्तक को पढ़कर मैं जितना अधिक प्रभावित हुआ, उतना पहले कभी नहीं हुआ । पुस्तक पढ़ने के बाद मुझे नींद नहीं आई और मैंने इसके विचार जीवन में धारण करने का मन बनाया ।”
अतः इससे यह स्पष्ट होता है कि गांधीजी के मन में सर्वोदय के विचार का जन्म रस्किन की प्रसिद्ध पुस्तक Unto Last का ही परिणाम है । रस्किन की इस किताब का उद्देश्य सभी का कल्याण करना है । इस तरह गांधी जी ने अपने जीवन में सभी के कल्याण करने की बात की है, जिसे सर्वोदय का नाम दिया जाता है ।
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सर्वोदय का अर्थ
सर्वोदय की अवधारणा गांधीजी ने रस्किन की पुस्तक से ली है । रस्किन के दर्शन का मुख्य उद्देश्य सब का उदय करना है । इसी तरह से गांधी जी ने सर्वोदय शब्द का प्रयोग भी समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए किया है । सर्वोदय का शाब्दिक अर्थ है, ‘सबका उदय’ गांधीजी साम्यवादियों के उस विचार का खंडन करते हैं, जो गरीब वर्ग का कल्याण करने की बात करता है । इस दृष्टि से गांधी जी की सर्वोदय की धारणा अन्य सभी विचारको से व्यापक और महान है । गांधी जी का उद्देश्य अमीर और गरीब दोनों का कल्याण करना है । विनोबा जी ने गांधी जी के सर्वोदय के बारे में कहा है कि
“सर्वोदय समाज कुछ लोगों का या बहुत लोगों का या फिर अधिकांश लोगों का उदय नहीं चाहता । हम ऊंचे, नीचे, सबल, निर्बल, विद्यमान मूर्ख सभी के हित में संतुष्ट हो सकते हैं ।”
अमीर लोगों को ऊपर उठाने पर बोलते हुए विनोबा जी ने कहा है कि
“धनी लोग पहले ही गिरे हुए हैं और गरीब कभी उठे ही नहीं है इसीलिए आमिर वर्ग को नैतिक या आध्यात्मिक दृष्टि से ऊपर उठाना है ताकि वह आवश्यकता से अधिक संपत्ति का समाज के शोषित वर्गों के लिए परित्याग कर सकें ।”
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समस्त विश्व में सबका उदय सर्वोदय का सर्वोच्च आदर्श है । इस प्रकार गांधी जी की विचारधारा के अनुसार सर्वोदय समाज के हर वर्ग का उदय का विचार है । यह एक गतिशील धारणा है, जो किसी वर्ग, जाति, देश तक ही सीमित नहीं है । यह सार्वभौमिक व सार्वजनिक अवधारणा के रूप में समस्त विश्व का कल्याण चाहती है ।
सर्वोदय का आधार
आइये अब बात करते हैं, सर्वोदय के आधार की । गांधी जी का कहना है कि
“यदि हम जीवन में कुछ बातें अपना ले तो सबको समान अवसर प्राप्त हो सकते हैं । अर्थात सबका कल्याण हो सकता है । लेकिन किसी व्यक्ति को दबाव डालकर सर्वोदय की विचारधारा को जोड़ना अन्याय है । सर्वोदय का विचार स्वयं प्रेरित होता है । इसी से सर्वोदय का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है । सर्वोदय के लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रमुख आधार हैं ।
इंद्रिय निग्रह : गांधीजी ने सदैव आत्म संयम पर जोर दिया था । उनका विचार था कि यदि व्यक्ति स्वयं अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखें या संयम पूर्वक जीवन बिताएं तो समाज के अनेक दोष दूर हो सकते हैं । विनोबा भावे ने गांधीजी के विचार का समर्थन करते हुए कहा है कि
“सर्वोदय विचार में मुख्य बात यह है कि हमें अपने मन को वश में रखना चाहिए इंद्रियों को काबू में रखना चाहिए ।”
नई समाज की रचना : गांधीजी का मानना था कि वर्तमान समाज अन्याय पूर्ण संबंधों पर आधारित है । समाज तरह तरह के सामाजिक व आर्थिक दोष रखता है । व्यक्तियों के हित परस्पर विरोधी हैं, यदि इन बुराइयों को दूर किया जाए या शोषण मुक्त नए समाज की रचना कर दी जाए तो सर्वोदय का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है ।
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विश्व समाज की स्थापना : गांधीजी का मानना था कि वर्तमान समय में देश और प्रत्येक व्यक्ति संकरण स्वार्थ पूर्ण संबंधों के आधार पर कार्य कर रहे हैं । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष हुआ विरोध है । यदि एक समाज की स्थापना का प्रयास किया जाए तो सर्वोदय का लक्ष्य प्रभावी हो सकता है । यदि एक विश्व समाज की स्थापना का प्रयास किया जाए तो सर्वोदय का लक्ष्य प्रभावी हो सकता है ।
राज्य की समाप्ति : गांधी जी का विचार था कि राज्य व्यक्ति की व्यक्तिगत के स्वतंत्र विकास में सबसे बड़ी बाधा है । यह विभिन्न वर्गो व समुदायों में वर्ग भेद को बढ़ावा देता है । यदि राज्य को समाप्त कर दिया जाए तो शोषण मुक्त समाज तथा राम राज्य की स्थापना हो सकती है । इस विचार द्वारा गांधीजी अंग्रेजों की “फूट डालो राज करो” की नीति की निंदा करते हैं । गांधीजी का मानना है कि राज्य इस तरह की नीतियों के सहारे अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं । इससे समाज के हितों को गहरा आघात पहुंचता है । समाज में विरोधी गुटों का जन्म होता है तथा विघटन को बढ़ावा मिलता है । राज्य व सरकार की समाप्ति से ही सर्वोदय का विचार प्रभावित हो सकता है ।
सर्वोदय विचारधारा की विशेषताएं
आइए अब बात करते हैं, सर्वोदय विचारधारा की विशेषताओं के बारे में । गांधीजी के सर्वोदय के विकास का अध्ययन करने पर इनकी कुछ विशेषताएं प्रकट होती हैं जो कि निम्नलिखित हैं ।
गांधीजी स्वराज्य प्राप्ति के लिए सर्वोदय को प्रमुख साधन मानते हैं । उनका मानना है कि सत्य, प्रेम, दया, अहिंसा, व्रत, सच्ची लगन और निस्वार्थ भाव से सर्वोदय समाज का जन्म होगा और इसी से स्वराज का मार्ग भी प्रशस्त होगा ।
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गांधी जी का कहना है कि सर्वोदय विचारधारा का मूल लक्ष्य आत्मनिर्भर ग्रामों की स्थापना करना है । गांव में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देकर लाखों को रोजी-रोटी की प्राप्ति होगी । कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने से ग्रामीण स्तर पर प्रयास किए जा सकते हैं । गांधी जी ने कहा है कि
“सर्वोदय समाज आपसी सहयोग पर आधारित पंचायतों का संघ होगा । पंचायतें हर तरह से सक्षम व शक्तिशाली सर्वोदय समाज आपसी सहयोग पर आधारित पंचायतों का संघ होगा ।”
गांधी जी ने आगे कहा है कि
“सर्वोदय समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपना पुश्तैनी धंधा चलायेगा और इससे अनुचित प्रतियोगिता का अंत होगा ।”
इस तरह गांधी जी ने गांव को स्वावलंबी व विकास के रास्ते पर लाने के लिए सर्वोदय का विचार पेश किया है ।
गांधी जी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रमुख समर्थक थे । इसके लिए वे आर्थिक व राजनीतिक सर्वोदय का विचार विकेंद्रीकरण के करें के पक्ष में थे । इसलिए सर्वोदय का विचार ऐसे विकेंद्रीकृत समाज की रचना करने पर जोर देता है । इसमें वर्ग विभेद समाप्त हो और सभी व्यक्ति निर्बाध रूप से आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक उन्नति कर सकें । सर्वोदय विचारधारा का मानना है कि कोई सत्ता जितनी केंद्रीकृत होती है । उतनी ही अधिक भ्रष्ट होती है । इसलिए सर्वोदयी विचारधारा ने समाज से अन्याय और शोषण को समाप्त करने के लिए आर्थिक व राजनीतिक विकेंद्रीकरण का सुझाव दिया है । जो जितनी केंद्रीकृत होती है, उतनी ही अधिक भ्रष्ट होती है । इसलिए सर्वोदय विचारधारा ने समाज से अन्याय व शोषण को समाप्त करने के लिए आर्थिक व राजनीतिक विकेंद्रीकरण का सुझाव दिया है । गांधी जी ने कहां है कि
“यदि सर्वोदय को सफल बनाना है तो अहिंसात्मक तरीके से विकेंद्रीकरण करना होगा ।’
इससे ही सर्वोदय की प्राप्ति हो सकती है ।
गांधीजी का मानना है कि समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता ही समाज के अनेक दोषों का कारण है । इसीलिए उन्होंने ट्रस्टीशिप के सिद्धांत द्वारा इस समस्या का समाधान करने का सुझाव दिया है । गांधीजी का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति आवश्यकता से अधिक वस्तुएं या संपत्ति का स्वामी ना समझ कर उसका संरक्षक समझे । गांधी जी का विचार है कि फालतू धन हस्तांतरण के बिना आर्थिक विषमता को कम नहीं किया जा सकता । इसलिए सर्वोदय का लक्ष्य आर्थिक विषमता समाप्त करके समाजवाद का लक्ष्य प्राप्त करना है ।
सर्वोदय विचारधारा में आत्मा की सर्वोच्चता पर बल दिया जाता है । गांधीजी का विश्वास था कि समाज के समस्त समस्याओं का कारण की सर्वोच्चता पर बल दिया जाता है । गांधी जी का विश्वास था कि समाज की समस्त समस्याओं का कारण अध्यात्म विवाद से विश्वास का हटना है । सर्वोदय आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य सभी की आत्मिक शक्ति का विकास करना है । गरीबों की सेवा या परोपकार से आत्मिक शक्ति का विकास होता है । इस तरह से सर्वोदय का विचार आध्यात्मिक शक्ति का विकास करता है ।
गांधीजी का मानना था कि अहिंसा के बिना कोई भी आंदोलन सफल नहीं हो सकता । हिंसा पर आधारित शक्ति स्थाई व श्रमिक होती है गांधी जी ने अहिंसा की शक्ति के बारे में लिखा है कि
“अहिंसा की शक्ति बिजली से भी अधिक तेज और ईथर से अधिक शक्तिशाली है । बड़ी से बड़ी हिंसा का सामना अहिंसा से संभव है ।”
इस प्रकार अहिंसा के बिना सर्वोदय की स्थापना भी नहीं हो सकती । आशीष साधन ही सर्वोदय के विचार को चिरस्थाई बना सकते हैं । अतः सर्वोदय का विचार अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित है ।
गांधीजी राज्य को एक आवश्यक बुराई मानते थे। उन्होंने राज्य को आत्म रहित मशीन की संज्ञा दी है । राज्य शोषण का ऐसा यंत्र है जो गरीबों को अधिक तीस्ता है । यह संगठित तथा एकत्रित हिंसा का प्रतिनिधित्व है । इसी तरह राजनीतिक दल भी समाज को वर्गों में विभाजित कर देता है और समाज की एकता नष्ट हो जाती है। इसलिए राज्य रूपी शोषण की संस्था और समाज की एकता को नष्ट करने वाले दलों की समाप्ति सही है । सर्वोदय समाज की स्थापना हो सकती है । सर्वोदय समाज की एकता को नष्ट करने वाली दलों की समाप्ति से से ही सर्व समाज की स्थापना हो सकती है । सर्वोदय समाज में राज्य बादलों का कोई महत्व नहीं होगा ।
गांधीजी का मानना है कि नैतिकता के आदर्श को प्राप्त किए बिना सर्वोदय समाज की स्थापना संभव नहीं है । वर्तमान सभी समस्याएं नैतिक समस्याओं पर आधारित हैं और उनका समाधान भी नैतिक साधनों द्वारा संभव है । इसलिए सर्वोदय का विचार नैतिक साधनों के अभाव में सफल नहीं हो सकता है । जब तक व्यक्ति का नैतिक विकास ना किया जाए । तब तक सर्वोदय समाज की स्थापना भी नहीं हो तब तक सर्वोदय ही समाज की स्थापना भी नहीं हो सकती ।
गांधीजी की समानता को सर्वोदय का आधार माना है । समानता के बिना सर्वोदय की स्थापना नहीं की जा सकती । जब सभी व्यक्तियों को समान पनपने के अवसर प्राप्त होंगे तो उनका विकास होगा । इसी प्रकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अभाव में भी व्यक्ति का सर्वाधिक विकास नहीं हो सकता । सर्वोदय समानता व सबको स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद ही प्राप्त हो सकता है । इस प्रकार गांधीजी का सर्वोदय का विचार समानता व स्वतंत्रता के अधिकार पर आधारित इस प्रकार गांधी जी का सर्वोदय का विचार समानता व स्वतंत्रता के अधिकार पर आधारित है ।
सर्वोदय के साधन
गांधी जी के विचारों के आधार पर उनके अनुयायियों विनोबा भावे तथा काका कालेलकर ने सर्वोदय की स्थापना के कुछ तरीके बताएं हैं जो कि निम्नलिखित हैं ।
आत्म संयम गांधी जी का कहना था जो विनोवा भावे ने कहा है कि
“गांधी जी का कहना है कि, यदि हम अपनी इच्छा पर काबू पा लें तो गरीब लोगों के लिए भी कुछ बच सकता है ।”
विनोबा भावे ने आगे कहा है कि
“हमें अपने विचार और जीभ पर काबू रखना चाहिए । हम इस्तेमाल करें, लेकिन अति से बचें ।”
इसके लिए लोगों को अध्यात्म व योग की शिक्षा दी जानी चाहिए । ताकि वह इंद्रिय निग्रह के आदी हो जाएं और दूसरों के बारे में भी सोचे ।
ह्रदय परिवर्तन : गांधी जी का कहना है कि अहिंसात्मक साधनों द्वारा अमीरों को गरीबी की सहायता करने के लिए मनाना चाहिए । इससे शोषण की समाप्ति होगी और सामाजिक व आर्थिक विषमताओं का अंत होगा । इसके लिए किसी प्रकार का दबाव नहीं डालना चाहिए । स्वेच्छा से किया गया समाज हित का कार्य ही सर्वोदय प्राप्ति में पहुंचने में सहायता करता है ।
भूदान आंदोलन : गांधी जी का कहना था कि अतिरिक्त संपत्ति को गरीबों में बांटने या समाज हित में लगा देने से सामाजिक विषमता का अंत होता है । उस विचार को आगे बढ़ाते हुए विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन का समर्थन किया उन्होंने कहा कि
“जिस व्यक्ति के पास फालतू या आवश्यकता से अधिक संपत्ति है, तो उसे स्वेच्छा से गरीबों को या भूमिहीनों को दान कर देना चाहिए । इससे गरीबों की सामाजिक उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे और सारे समाजिक दोष भी समाप्त हो जाएंगे ।”
ट्रस्टीशिप व्यवस्था : गांधी जी का विचार था कि जिन लोगों के पास फालतू संपत्ति है । वह उस संपत्ति को समाज की धरोहर समझ कर उनकी रक्षा गांधी जी का विचार था कि जिन लोगों के पास फालतू संपत्ति है । वह उस संपत्ति को समाज की धरोहर समझकर उनकी रक्षा करें । खुद को उसका स्वामी ना समझें । वह लोग अपनी संपत्ति के कुछ अंश स्वेच्छा से ही गरीबों को भी दान कर सकते हैं ।
राज्य व सरकार का अंतर : गांधी का मानना था कि राज्य और सरकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधा पहुंचाते हैं । इनका अंत करके ही सर्वोदय के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है ।
इस प्रकार से गांधी जी व उनके अनुयायियों में सर्वोदय के विचार का पोषण किया है । उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग के उत्थान के लिए कार्य करने पर जोर दिया है ताकि सर्वोदय की प्राप्ति हो सके । लेकिन फिर भी सर्वोदय विचारधारा यथार्थवादी स्वरूप ग्रहण नहीं कर सकती । आज का युग प्रतियोगिता का युग है । इसमें सर्वोदय को प्राप्त करना कठिन है । सर्वोदय समाज की हर समस्या का समाधान नहीं कर सकता । गांधी जी ने सर्वोदय को प्राप्त करने के तरीकों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा है । भूदान तथा ग्रामदान जैसे उपाय उनके परवर्ती विचारको द्वारा शामिल किए गए हैं । लेकिन इतना होने के बावजूद भी गांधीजी के सर्वोदय के विचार को समय-समय पर महत्व दिया जाता रहा है । 73वें संविधान संशोधन में भी पंचायती राज संस्थाओं को महत्व दिया गया है । उनके अहिंसा संबंधी विचारों पर आधारित होने के कारण सर्वोदय का विचार का ही प्रासंगिक है ।
विश्व शांति के लिए गांधीजी के सर्वोदय विचार की सार्वभौमिकता आज भी अधिक व्यावहारिक लगती है । अतः गांधीजी के सर्वोदय संबंधी विचारों का परमाणु युग में भी विशेष महत्व है ।
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