समकालीन विश्व में सुरक्षा
Security in Contemporary world in Hindi
सुरक्षा हम सबके लिए शुरू से ही महत्वपूर्ण रही है । हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भी सुरक्षा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं । जैसे जानमाल की सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और मानव के जीवन पर शुरू से ही बड़े सारे खतरे आते रहे हैं । ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां पर खतरा ना हो । घर में भी खतरा होता है, बाहर भी खतरा होता है । हर जगह खतरा ही खतरा है । घर में खाना पकाते समय सिलेंडर फटने का खतरा । सड़क पर चलते समय दुर्घटना होने का खतरा । रेल दुर्घटना हो सकती है या वायुयान दुर्घटना हो सकती है । जिससे हमारी जान को खतरा हो सकता है ।
Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज आपके लिए हम लेकर आए हैं, 12वीं कक्षा का Chapter जिसका नाम है समकालीन विश्व में सुरक्षा । (Security in Contemporary World).
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इसी तरह गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, सुनामी, बाढ़ या पर्यावरण प्रदूषण, वैश्विक ताप वृद्धि । इन सारी चीजों से हमारे स्वास्थ्य को भी खतरा हो सकता है । इसलिए सुरक्षा के बारे में बात करना बहुत जरूरी है । सबसे पहले हम सुरक्षा का मतलब जानते हैं ।
सुरक्षा का अर्थ (Meaning of Security)
सुरक्षा का मतलब है, “मानव जीवन पर आने वाले खतरों से रक्षा ।” इस तरीके से सुरक्षा को हम दो भागों में बांट सकते हैं ।
1 परंपरागत सुरक्षा
2 अपरंपरागत सुरक्षा
परंपरागत सुरक्षा का जो दृष्टिकोण है, वह पुराना दृष्टिकोण है । और अपरम्परागत सुरक्षा नया दृष्टिकोण है । पहले हम बात करते हैं, सुरक्षा के परंपरागत दृष्टिकोण के बारे में ।
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1 परम्परागत दृष्टिकोण
परंपरागत रूप से यह माना जाता है कि मानव जीवन को जो खतरा होता है, वह युद्ध और हिंसा से होता है । इसलिए देश की सीमाओं की सुरक्षा करनी चाहिए ताकि युद्ध ना हो और देश के अंदर खून, खराबे को रोकना चाहिए ताकि हिंसा ना हो इस तरीके से मानव जीवन को सुरक्षित बनाया जा सकता है । परंपरागत सुरक्षा दो तरह की होती है ।
A आंतरिक सुरक्षा और
B बाहरी सुरक्षा
सबसे पहले हम बात करते हैं बाहरी सुरक्षा के बारे में ।
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B बाहरी सुरक्षा
बाहरी सुरक्षा देश की सीमाओं की सुरक्षा से जुड़ी हुई है और बाहरी सुरक्षा के लिए हमेशा जो खतरा पैदा होता है, वह पड़ोसी देशों की वजह से पैदा होता है । इसलिए बाहरी सुरक्षा के लिए हर देश कई तरीके के उपाय करता है जो निम्नलिखित हैं ।
1 सैनिक विकास
2 युद्ध का सामना
3 शक्ति संतुलन
4 सैनिक गठबंधन
सबसे पहला उपाय है, सैनिक विकास । बाहरी सुरक्षा के लिए सैनिक विकास करना बहुत जरूरी है यानी हर देश को उच्च तकनीक के जरिए नए नए हथियार बनाने चाहिए और अपने आप को सैनिक रूप से शक्तिशाली बनाना चाहिए ताकि कोई और देश हमारे ऊपर हमला न कर दे ।
दूसरा है, युद्ध का सामना । बाहरी सुरक्षा के लिए हमेशा युद्ध का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए और जब किसी देश पर हमला होता है तो उसके सामने तीन रास्ते होते हैं ।
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i ) पहला रास्ता होता है, युद्ध किए बिना दूसरे पक्ष की बात को मान लेना और आत्मसमर्पण कर देना लेकिन यह तरीका ठीक नहीं माना जाता क्योंकि अगर कोई देश सीधे बिना युद्ध किए आत्मसमर्पण कर देता है तो इससे उस देश की इज्जत खराब हो जाती है । उस देश को कायर भी माना जाता है ।
ii ) दूसरा है, शत्रु को धमकी देना और ऐसी धमकी देना कि वह सहम कर पीछे हट जाए यानी धमकी ऐसी दो कि लड़ने के बारे में सौ बार सोचे और डर कर ही पीछे हो जाए । और
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iii ) तीसरा रास्ता है, कि अगर युद्ध ठन जाए या युद्ध हो जाए तो शत्रु देश को पराजित करना और ज्यादा से ज्यादा नुकसान करना देश का लक्ष्य होना चाहिए । और इस तरीके में माना जाता है, शक्ति संतुलन यानी शत्रु के बराबर शक्ति हासिल करना ही शक्ति संतुलन कहलाता है और जब 2 देशों में शक्ति संतुलन आ जाता है तो Power of Balance आ जाता है तो इससे लड़ाई की संभावना कम हो जाती है । और
iv ) चौथा रास्ता है, सैनिक गठबंधन का । जब हमारा दुश्मन ज्यादा ही शक्तिशाली होता है तो हमें अपने मित्र देशों के साथ मिलकर गठबंधन बनाना चाहिए ताकि हम शत्रु का आसानी से मुकाबला कर सकें । जैसे शीत युद्ध के दौर में अमेरिका ने नाटो, सीटो और सैंटो का निर्माण किया । ताकि वह सोवियत संघ का आसानी से मुकाबला कर सके ।
तो अब हम जानते हैं आंतरिक सुरक्षा के बारे में ।
A आंतरिक सुरक्षा
आंतरिक सुरक्षा के अंदर यह माना जाता है कि देश के अंदर हिंसा और खून खराबे से लोगों की हिफाजत होनी चाहिए । आमतौर पर किसी देश के नागरिकों को जितना खतरा देश के बाहर से होता है, उससे कई गुना ज्यादा खतरा देश के अंदर होता है । क्योंकि देश के अंदर हिंसा, रक्तपात, खून खराबा, बहुत ज्यादा होता है । दो देशों के बीच लड़ाइयां कम होती है । लेकिन अगर हम अखबार उठाकर पढ़े तो उसमें हमें आंतरिक हिंसा के बारे में बहुत ज्यादा पढ़ने को मिल जाता है । जैसे आतंकवादी घटना हो सकती है या लड़ाई, दंगे फसाद हो सकते हैं । आंतरिक सुरक्षा के लिए बहुत सारे खतरे हैं । सांप्रदायिक हिंसा, राजनीतिक हिंसा, जातीय हिंसा, भाषाई हिंसा, अलगाववादी हिंसा या आतंकवादी हिंसा । आंतरिक सुरक्षा पर ध्यान देना बहुत जरूरी है । अब हम जानते हैं कि परंपरागत रूप से पूरी दुनिया को सुरक्षा के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाने चाहिए ।
परंपरागत रूप से सुरक्षा के उपाय
1 युद्ध का सीमित प्रयोग
2 निशस्त्रीकरण
3 अस्त नियंत्रण और
4 विश्वास बहाली
परंपरागत रूप से भी सुरक्षा के चार उपाय बताए गए हैं और जो की निम्न प्रकार हैं ।
1 पहला उपाय हैं, युद्ध का सीमित प्रयोग । ऐसा माना जाता है कि आत्मरक्षा के लिए और जनसंहार यानी खून खराबे को रोकने के लिए युद्ध का प्रयोग आवश्यक है । लेकिन युद्ध का प्रयोग सीमित होना चाहिए, ज्यादा नहीं होना चाहिए । जैसे युद्ध का प्रयोग सिर्फ तभी करना चाहिए, जब इसकी जरूरत हो । दूसरे देशों को धमकी देना या प्रभावित करने के लिए युद्ध का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए ।
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2 दूसरा है, निशस्त्रीकरण परंपरागत रूप से यह माना जाता है कि देशों के बीच सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए निशस्त्रीकरण को बढ़ावा देना चाहिए । निशस्त्रीकरण का मतलब है कि कुछ खास तरीके के हथियारों पर पाबंदी लगा दी जाए । क्योंकि हथियार ऐसे होते हैं, जो बहुत ज्यादा नुकसानदायक होते हैं । जैसे आपने जैविक हथियारों के बारे में सुना होगा और रासायनिक हथियारों के बारे में भी सुना होगा । यह ऐसे खतरनाक है कि हवा में छोड़ दिए जाए तो हवा में सांस लेने वाले लोग मर जाते हैं । नदी में छोड़ दिए जाएं तो पानी पीने वाले लोग मर जाते हैं । इसलिए निशस्त्रीकरण के लिए ऐसे हथियारों पर पाबंदी लगा देनी चाहिए । जैसे 1972 में बायोलॉजिकल के जरिए जैविक हथियारों पर रोक लगा दी गई थी । 1992 में रासायनिक हथियारों पर पाबंदी लगा दी गई । और
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समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व (US Hegemony in world of Politics Part-II
3 तीसरा तरीका है, अस्त्र नियंत्रण । हथियारों को बनाने और उन्हें विकसित करने के लिए उन्हें नियंत्रित करना चाहिए ताकि कोई भी देश अपने मुताबिक हथियार न बना सके । आज दुनिया के देश हथियार बनाने के मामले में बेलगाम घोड़े की तरह हो गए हैं । और कोई भी देश कैसा भी हथियार बना रहा है । जैसे अमेरिका ने धीरे-धीरे करके परमाणु हथियार बना लिया । आज उत्तरी कोरिया भी नए नए तरीके के हथियारों के परीक्षण कर रहा है । तो हथियार बनाने और उनका विकास करने के लिए नियम बनने चाहिए ताकि कोई भी देश अपनी मर्जी के मुताबिक हथियार ना बना सके । जैसे 1972 में एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि की गई थी । इसी तरीके से रोक लगाई जा सकती है ।
4 चौथा तरीका है विश्वास बहाली का । परंपरागत रूप से यह माना जाता है कि विश्वास बहाली करके युद्धों को कम किया जा सकता है । विश्वास बहाली का मतलब है कि सभी देश आपस में सैनिक सूचनाओं का आदान प्रदान करेंगे ताकि उनका एक दूसरे पर विश्वास हो सके । इससे भी युद्धों को कम किया जा सकता है ।
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अब जरा हम सुरक्षा के दूसरे नजरिए के ऊपर बात करते हैं, जिसे कहते हैं अपरंपरागत सुरक्षा या आधुनिक सुरक्षा ।
अपरम्परागत सुरक्षा या आधुनिक सुरक्षा
अपरंपरागत या आधुनिक सुरक्षा के अंदर सुरक्षा का जो मतलब है, वह परंपरागत से बहुत अलग है अपरंपरागत रूप से सुरक्षा का मतलब यह माना जाता है कि
“मानव जीवन पर आने वाले सभी खतरों से रक्षा ही सुरक्षा है ।”
क्योंकि मानव जीवन के लिए युद्ध और हिंसा से रक्षा ही काफी नहीं है, बल्कि इससे भी बड़े-बड़े बहुत सारे खतरे हैं । जिसका सामना हर इंसान करता है । जैसे गरीबी है, बेरोजगारी, भुखमरी, वैश्विक ताप वृद्धि, पर्यावरण प्रदूषण, आतंकवाद तो सभी खतरों से रक्षा ही सुरक्षा है ।
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अब मानव जीवन के लिए नए नए खतरे हैं । जैसे गरीबी है, बेरोजगारी है, शरणार्थियों की समस्या है, पर्यावरण प्रदूषण है, वैश्विक ताप वृद्धि है । यह सारे नए नए खतरे हैं जिसके सामना हर देश को करना पड़ रहा है । हमें सुरक्षा को लेकर अपने नजरिए को बदलने की जरूरत है और सुरक्षा के लिए कभी-कभी पूरी दुनिया का भी सहयोग हासिल करना पड़ता है और इस रक्षा को कहा जाता है । “सहयोग मूलक सुरक्षा” यानी जिन खतरों का सामना करने के लिए दुनिया के सभी देशों का सहयोग आवश्यक है, ऐसी सुरक्षा को ही सहयोग ऐसी सहयोग मुलक सुरक्षा कहा जाता है ।
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वर्तमान में दुनिया के सामने बहुत बड़े बड़े खतरे हैं । जिनका सामना कोई भी देश अकेले नहीं कर सकता और कुछ खतरों का सामना करने के लिए दुनिया के सभी देशों का सहयोग आवश्यक है । जैसे बाढ़ से बचने के लिए दो या कुछ देश मिलकर बांध बना सकते हैं । लेकिन वैश्विक ताप वृद्धि का सामना करने के लिए सभी देशों का सहयोग आवश्यक है । सहयोग मूलक सुरक्षा बड़े स्तर के खतरों के लिए आवश्यक है । क्योंकि बड़े स्तर के खतरों का सामना कोई भी देश अकेले नहीं कर सकता । सहयोग मूलक सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन की भी मदद ली जा सकती है । जैसे यूएनओ UNO, डब्ल्यूटीओ WTO, या डब्ल्यूएचओ WHO और सहयोग मुल्क सुरक्षा के लिए गैर सरकारी संगठनों की भी मदद ली जा सकती है । जैसे कि एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesti International) धार्मिक संगठन, मजदूर संगठन और यहां तक कि सहयोग मूलक सुरक्षा के लिए बल यानी Power का प्रयोग भी किया जा सकता है । लेकिन इसका इस्तेमाल सामूहिक स्वीकृति सब की रजामंदी से होना चाहिए ।
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आज हम सबके सामने एक बहुत बड़ा खतरा है । जो हर देश सामना कर रहा है और वह है आतंकवाद । वर्तमान में आतंकवाद दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुका है । आतंकवाद का मतलब है, किसी मकसद के लिए हिंसा और गैरकानूनी तरीकों का इस्तेमाल करना । आतंकवादी जानबूझकर भीड़ भरी जगह जैसे बस, ट्रेन, होटल, बाजार यहां पर बम धमाके करते हैं । जिसमें बहुत सारे बेगुनाह और मासूम लोग मारे जाते हैं । इसलिए आतंकवाद ठीक नहीं है । आतंकवाद बहुत गलत है । आतंकवाद को हम सुरक्षा की परंपरागत श्रेणी के अंदर रख सकते हैं, क्योंकि आतंकवाद का संबंध हिंसा से है । आतंकवाद आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है । तो आतंकवाद से निपटना भी बहुत जरूरी है ।
भारत की सुरक्षा नीति रणनीति के घटक या तत्व ।
1 सैनिक सुरक्षा को मजबूत करना
2 अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को मजबूत करना
3 आंतरिक सुरक्षा का विकास करना और
4 सामाजिक आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
भारत का भी सुरक्षा को लेकर एक बहुत बड़ा नजरिया है । भारत ने भी अपनी सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ी नीति तैयार की है । इस नीति के चार तत्व या घटक हैं । सबसे पहला है, सैनिक सुरक्षा को मजबूत करना । हमारा भारत शुरू से ही पड़ोसी मुल्कों के हमलों से प्रभावित रहा है । जैसे 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया 1965, 1971 और 1999 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया । इस वजह से हमें अपने आप को सैनिक रूप से मजबूत बनाना आवश्यक है और इसी वजह से भारत ने परमाणु परीक्षण भी किया ताकि वह अपनी हिफाजत कर सके ।
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2 दूसरा है, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को मजबूत करना । भारत का यह मानना है कि इस एक ध्रुवीय विश्व में यूएनओ UNO के मुकाबले यूएसए USA ज्यादा शक्तिशाली हो गया है । तो यूएन UN तभी अच्छे तरीके से काम कर सकता है और दुनिया में शांति की स्थापना कर सकता है, जब यूएन को मजबूत किया जाए और
3 भारत की सुरक्षा की रणनीति आंतरिक सुरक्षा पर भी बहुत ज्यादा ध्यान देती है । क्योंकि कश्मीर के अंदर आतंकवाद बहुत ज्यादा है । इसी तरीके से काफी सारे इलाकों के अंदर नक्सलवादी आंदोलन तेजी से बढ़ता जा रहा है । तो आंतरिक सुरक्षा पर ध्यान देकर इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है ।
4 ठीक इसी तरीके से भारत की सुरक्षा रणनीति सामाजिक आर्थिक विकास पर भी ध्यान देती है । क्योंकि एक तरफ भारत के अंदर जात-पात के नाम पर भेदभाव होता है । धर्म के नाम पर भेदभाव होता है । दूसरी तरफ गरीबी, बेरोजगारी भी बहुत ज्यादा है और इन तमाम समस्याओं का समाधान सिर्फ सामाजिक आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर किया जा सकता है ।
आज हमारे सामने जिस तरीके के खतरे हैं । उन खतरों का सामना हम हथियारों के दम पर नहीं कर सकते । हमारा जो सबसे खतरनाक हथियार हैं, चाहे वह परमाणु हथियार हो हमारे खतरनाक से खतरनाक हथियार भी आजकल के खतरों का सामना करने के लिए काफी नहीं है । यानी हमें सुरक्षा को लेकर हमें अपने नजरिए, अपनी सोच को बदलने की आवश्यकता है । तभी हम इन खतरों का सामना कर सकते हैं । जैसे दुनिया में वैश्विक ताप वृद्धि भी बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है । जिसकी वजह से समुंद्र का जो water level है, जो पानी का स्तर है वह लगातार बढ़ रहा है और इससे जितने भी किनारे वाले देश हैं, वह डूब जाएंगे । श्रीलंका पता नहीं लगेगा । इसके अलावा और जितने भी द्वीप वाले देश हैं । वह सब डूब जाएंगे । तो करोड़ों लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो जाएगा और इस ख़तरे का सामना हम हथियार के दम पर नहीं कर सकते । दुनिया में प्रदूषण बहुत तेजी से बढ़ रहा है और प्रदूषण बढ़ने की वजह से जो हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर आने लगी हैं तो इन किरणों को हम परमाणु हथियारों से नहीं रोक सकते । आज दुनिया के सामने गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, संक्रामक रोग यह बहुत बड़े बड़े खतरे हैं और इन खतरों का सामना हम अपने हथियारों के दम पर नहीं कर सकते । इसलिए हमें सुरक्षा को लेकर अपने नजरिए को बदलने की जरूरत है यानी हमारे हथियार किसी काम के नहीं है । हमारी सुरक्षा करने के लिए, हमें सुरक्षा को लेकर अपना नजरिया बदलना पड़ेगा तभी हम खुद को और इस पूरी दुनिया को सुरक्षित कर सकते हैं ।
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