अरस्तू के राज्य सम्बन्धी विचार

State related thoughts of Aristotle

 Hello दोस्तो ज्ञान उदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, पश्चिमी राजनीतिक विचार के अंतर्गत अरस्तु के राज्य से संबंधित विचारों (Aristotle State Thoughts) के बारे में । इस Post में हम जानेंगे राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई ? साथ ही साथ अरस्तु के राज्य संबंधी सिद्धांत की प्रमुख विशेषताओं के बारे में । तो चलिए शुरू करते हैं आसान भाषा में ।

अरस्तु के राज्य संबंधी विचार

अरस्तु प्राचीन यूनान के एक महान विचारक और दार्शनिक थे । अरस्तु को राजनीति का जनक भी माना जाता है । अरस्तु ने यूनान की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, कई विचार दिए । जिसमें न्याय, नागरिकता और राज्य से संबंधित विचार अधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं ।

अरस्तु के अनुसार व्यक्ति एक राजनीतिक प्राणी है और राज्य व्यक्ति की इसी प्रकृति का परिणाम है । प्लेटो की तरह वह सोफिस्ट वर्ग की धारणा का खंडन करता है कि राज्य की उत्पत्ति किसी समझौते के कारण हुई है ।

अरस्तू राजनीती विज्ञानं के जनक के रूप में पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

अरस्तु का मानना है कि राज्य एक स्वाभाविक तथा प्राकृतिक संस्था है और इसकी उत्पत्ति एक प्रक्रिया द्वारा विकास के कारण हुई है । राज्य सभी संस्थाओं में श्रेष्ठ और उच्च संस्था मानी जाती है ।

राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई ?

अब हम जान लेते हैं कि राज्य किस तरह से अस्तित्व में आया और इसका आरंभ किस प्रकार हुआ ? राज्य मनुष्य की सामाजिकता का परिणाम है । विवाह के आधार पर पारिवारिक संस्था का उदय होता है । जहां पर पति, पत्नी उनके बच्चे तथा उनसे संबंधित लोग होते हैं । कई परिवारों के एकत्रित होने से गांव का निर्माण होता है । गांव की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वहां पर कुछ सुविधाओं का भी विकास होने लगता है ।

अरस्तू के क्रांति सम्बन्धी विचारों को पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

गांव भी व्यक्ति की सभी भौतिक, बौद्धिक और नैतिक आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पाते हैं।  इस प्रकार कई गांवों के एकत्रित और सम्मिलित होने से राज्य या नगर का निर्माण होता है । जिसके फलस्वरूप बड़े स्तर पर सुविधाओं का निर्माण होता है । इस तरह व्यक्ति का सर्वांगीण विकास भी इसी संस्था में हो सकता है ।

अरस्तु के अनुसार कुटुंब से गांव और गांव से राज्य अस्तित्व में आए हैं । राज्य की परिभाषा बताते हुए अरस्तु ने कहा है कि-

“राज्य कुलों और ग्रामों का ऐसा समुदाय है, जिसका उद्देश्य पूर्ण और आत्मनिर्भर जीवन की प्राप्ति करना है ।”

अरस्तु के राज्य सिद्धांत की विशेषताएं

आइए अब जान लेते हैं, अरस्तु के राज्य संबंधी विषयक सिद्धांत पर इसकी प्रमुख विशेषताओं के बारे में ।

1) राज्य एक स्वाभाविक संस्था है ।

राज्य एक सर्वथा स्वाभाविक संस्था तथा प्राकृतिक संस्था है । जिसका निर्माण स्वत् होता है । राज्य परिवार का व्यापक रूप है । यह वैसे ही स्वाभाविक है, जैसे ग्राम, नगर या राज्य का होना । जो व्यक्ति राज्य में रहने में असमर्थ है या जिसे इसकी आवश्यकता नहीं है । वह या तो पशु है या फिर देवता ।

अरस्तू के दास प्रथा सम्बन्धी विचारों को पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

2) राज्य सर्वोच्च समुदाय है ।

अरस्तु के अनुसार राज्य को समुदायों का समुदाय नहीं बल्कि सर्वोच्च समुदाय माना जाता है । जिसका स्थान सबसे ऊपर होता है । इसके अलावा अन्य सभी समुदायों का अस्तित्व तथा विकास राज्य में ही संभव होता है । इस प्रकार राज्य का उद्देश्य, सर्वोच्च अच्छाइयों की प्राप्ति करना है ।

3) राज्य व्यक्ति का पूर्वगामी है ।

अरस्तु ने राज्य को व्यक्ति का पूर्व आगामी बताया है । समय की दृष्टि से देखा जाए तो, परिवार सबसे पहले आता है । जबकि प्रकृति की दृष्टि से देखा जाए तो, राज्य सर्वप्रथम है । राज्य समग्रता है और मनुष्य उसका अंग मात्र है । समग्र मतलब इकट्ठा या एकत्रित जोकि सबसे पहले आता है और राज्य उसके बाद में ।

प्लेटो का शिक्षा को पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

4) राज्य का स्वरूप जैविक है ।

अरस्तु के अनुसार राज्य का स्वरूप जैविक है और इसकी प्रकृति एक जीवधारी के समान मानी जाती है । अरस्तु के अनुसार राज्य का निर्माण विभिन्न अंगों से मिलकर हुआ है । जिसमें व्यक्ति, उसका परिवार, उसके संबंधी तथा पड़ोसी मिलकर बनाते हैं और व्यक्ति समुदाय इसका अंग हैं और अंगों का महत्व संपूर्ण होने के कारण ही माना जाता है ।

5) राज्य एक आत्मनिर्भर समुदाय है ।

अरस्तु के राज्य की एक विशेषता यह भी है कि यह एक आत्मनिर्भर समुदाय है । इससे आशय यह है कि राज्य अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वयं सक्षम होता है और राज्य सभी परिस्थितियों और वातावरण की सृष्टि करता है । जो व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए आवश्यक मानी जाती हैं ।

6) राज्य का उद्देश्य जीवन की पूर्णता है ।

अरस्तु के अनुसार राज्य का उद्देश्य जीवन ही नहीं बल्कि एक आदर्श और श्रेष्ठ जीवन की प्राप्ति करना है । अरस्तु के अनुसार राज्य का उद्देश्य अपने सदस्य का अधिकतम कल्याण करना है । राज्य का कर्तव्य सकारात्मक और रचनात्मक होना आवश्यक है ।

राज्य क्या है ? को पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

निष्कर्ष के रूप में देखा जाए तो, अरस्तु राज्य को एक प्राकृतिक और स्वाभाविक संस्था मानते हैं । जिसका उद्देश्य व्यक्ति की भौतिक और नैतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना है । प्लेटो की तरह अरस्तू ने भी ‘नगर राज्य’ या ‘सिटी स्टेट’ को सर्वाधिक श्रेष्ठ राजनीतिक संगठन माना है । अरस्तु अपने आदर्श राज्य को एक नगर राज्य के रूप में ही बताते हैं । अरस्तु ने राज्य संबंधी विवेचना में नगर राज्य को ही समस्त कला और गुणों से संपन्न बताया है । जिसके अंतर्गत व्यक्ति का सर्वागीण विकास संभव हो पाता है ।

तो दोस्तों हमने जाना पश्चिमी राजनीतिक विचार के अंतर्गत अरस्तु के राज्य से संबंधित विचारों (State related thoughts of Aristotle) के बारे में साथ ही साथ हमने इसकी उत्पत्ति और विशेषताओं को भी जाना । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

Leave a Reply