उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र और शक्तियां

Rights & Powers of High Courts

Hello दोस्तो ज्ञानउदय में आपका स्वागत है, आज हम बात करेंगे भारत में अलग अलग राज्यों के उच्च न्यायालयों (High Courts in different states of India) के बारे में । इस Post में हम जानेंगे आरंभिक अधिकार क्षेत्र, न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार, प्रशासकीय शक्तियों और भारत के उच्च न्यायलयों के नाम एवम उनके स्थापना वर्ष के बारे में । तो जानते है आसान शब्दों में ।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है । संविधान के अनुसार उच्च न्यायालय, राज्य न्यायपालिका का सर्वोच्च न्यायालय माना जाता है ।

अनुच्छेद 231 के अनुसार, संसद कानून द्वारा दो या दो से अधिक राज्यों या दो राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश के लिए एक संयुक्त उच्च न्यायालय की व्यवस्था की जा सकती है ।

A. आरम्भिक अधिकार क्षेत्र

आइये अब जानते हैं, उच्च न्यायालयों द्वारा प्रारंभिक अधिकार क्षेत्रों के बारे में । संविधान के अनुच्छेद 226 के अनुसार मौलिक अधिकार से संबंधित कोई भी अभियोग सीधा उच्च न्यायालय में लाया जा सकता है । मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए उच्च न्यायालयों को 5 प्रकार के लेख जारी करने के अधिकार प्राप्त हैं जो कि निम्नलिखित हैं ।

1) बंदी प्रत्यक्षीकरण आदेश

2) परमादेश लेख

3) प्रतिषेध लेख

4) अधिकार पृच्छा लेख

5)  उत्प्रेषण लेख

संविधान के भाग 3 में वर्तमान में 6 मौलिक अधिकार दिए गए हैं ।

मौलिक अधिकारों के बारे जानने के लिए यहाँ Click करें ।

अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों का अधिकार के लिए यहाँ Click करें ।

B. अपीलीय अधिकार क्षेत्र

अपीलीय क्षेत्र अधिकार वह है जिनके द्वारा निम्न प्रकार के मुकदमों की अपील और सुनवाई की जाती है ।

उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध ऐसे फौजदारी मुकदमों की अपील की सुनवाई की जा सकती हैं, जिनमें निम्न न्यायालयों ने अपराधी को 4 वर्ष अथवा इससे अधिक समय के लिए कैद की सजा दी हो ।

जिला तथा सेशन जज हत्या के मुकदमों में दोषी की मृत्यु दण्ड दे सकते हैं, परंतु जज द्वारा दिये गये मृत्यु दण्ड की पुष्टि उच्च न्यायालयों की ओर से करवानी आवश्यक है । उच्च न्यायालय की पुष्टि के बिना अपराधी को फांसी नहीं दी जा सकती है ।

उच्च न्यायालय के द्वारा निम्न न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध उन दीवानी मुकदमों में अपील सुन सकता है, जिसमें पांच हजार या इससे अधिक रकम या इतने मूल्य की सम्पत्ति का प्रश्न हो ।

इसके अलावा ऐसा कोई भी मुकदमा जिसमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न हो, उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है ।

C. न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार

सर्वोच्च न्यायालय की तरह राज्य के उच्च न्यायालयों को भी कानून संबंधी न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार प्राप्त है । उच्च न्यायालय, संसद तथा राज्यविधानमंडल द्वारा बनाये किसी ऐसे कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकते हैं, जो संविधान के किसी अनुच्छेद का उल्लंघन करते हो या उसके विरुद्ध हों । परंतु उच्च न्यायालय के ऐसे निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है ।

कार्यपालिका, न्यायपालिका के बारे में जानने के लिए यहाँ Click करें ।

D. प्रमाण-पत्र देने का अधिकार

उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है । परंतु इसके लिए संबंधित उच्च न्यायालय की आज्ञा आवश्यक है । इसके बावजूद संविधान के अनुच्छेद 136 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालयों की अज्ञान के बिना उसके निर्णयों के विरुद्ध स्वेच्छा से भी मुकदमे की अपील करने की आज्ञा दे सकता है ।

E. निम्न न्यायालय से मुकदमों को स्थानांतरित करने का अधिकार

यदि उच्च न्यायालय के विचार में किसी निम्न न्यायालय में चल रहे किसी मुकदमे में किसी कानून की व्याख्या का कोई विशेष प्रश्न हो तो, वह उस मुकदमे को अपने पास मंगवा सकता है । उच्च न्यायालय ऐसे मुकदमों का निर्णय स्वयं भी कर सकता है अथवा सम्बंधित कानून की व्याख्या करके निम्न न्यायालय को मुकदमा वापस भेज सकता है । यदि उच्च न्यायालय कानून की व्याख्या करके मुकदमा अधीनस्थ न्यायालय को वापस कर दे तो, अधीनस्थ न्यायालय मुकदमे का निर्णय उच्च न्यायालय की व्याख्या के अनुसार ही करता है । सैन्य अधिकरण उच्च न्यायालय की अधिकारिता एवं अधीक्षण के अंतर्गत नहीं आते (अनुच्छेद-227) ।

प्रशासकीय शक्तियां (Administrative Powers)

आइये अब बात करते हैं, प्रशासकीय शक्तियों के बारे में । उच्च न्यायालय के रूप में उसके अधिकार क्या क्या हो सकते हैं ।

उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों द्वारा की गई कार्यवाही का विवरण मांग सकते हैं ।

पढ़े :: भारतीय संविधान के भाग Parts of Indian Constitution

पढ़े :: भारतीय संविधान की प्रस्तावना Preamble of Indian Constitution

अपने अधीनस्थ न्यायालयों की कार्यवाही के संबंध में नियम बना सकते हैं ।

अधीनस्थ न्यायालयों की कार्यप्रणाली रिकॉर्ड, रजिस्टर तथा हिसाब-किताब आदि रखने के संबंध में नियम निर्धारित कर सकते हैं ।

उच्च न्यायालय किसी मुकदमे को अपने किसी अधीनस्थ न्यायालय से किसी दूसरे अधीनस्थ न्यायालय में स्थानांतरित कर सकते हैं ।

उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों के रिकॉर्ड, कागज-पत्र आदि निरीक्षण के लिए मंगवा सकते हैं ।

उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के कर्मचारियों के वेतन, भत्ते तथा सेवा आदि के नियम निर्धारित कर सकते हैं ।

उच्च न्यायालयों का मुख्य न्यायाधीश, न्यायालय के कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकता है । इस संबंध में राज्यपाल उसे लोक सेवा आयोग का परामर्श लेने के लिए कह सकता है ।

अधिकार क्षेत्र का विस्तार

संविधान के अनुच्छेद 230 के अनुसार संसद कानून द्वारा किसी राज्य के उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में न्यायिक कार्यों के लिए किसी केंद्र शासित प्रदेश को सम्मिलित कर सकती है या उसको अधिकार क्षेत्र से बाहर निकाल सकती है ।

अधिकारिता

भारत के उच्च न्यायालयों को संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत रिट निकालने की असाधारण शक्ति प्राप्त है । इस शक्ति का विस्तार अधीनस्थ न्यायालयों एवं अधिकरणों के अतिरिक्त राज्य अथवा ऐसे प्राधिकारी अथवा व्यक्ति तक है, जिसे राज्य का प्राधिकार सौंपा गया है । संविधान द्वारा प्रदान होने के कारण यह शक्ति संविधान संशोधन के द्वारा ही छीनी जा सकती है अथवा कम की जा सकती है ।

अभिलेख न्यायालय

संविधान के अनुच्छेद 215 के अनुसार प्रत्येक राज्य के उच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय के रूप में स्वीकार किया गया है । अभिलेख न्यायालय में सभी निर्णय एवं कार्यवाहियों की प्रमाण के रूप में प्रकाशित किया जाता है और उसके निर्णय सम्बंधित राज्य के सभी न्यायालयों में भी माने जाते हैं ।

भारत के उच्च न्यायालयों के नाम, स्थापना वर्ष व उनके स्थान

      न्यायालय का नाम    – स्थापना की तिथि   – न्यायक्षेत्र   स्थान

1 इलाहाबाद उच्च न्यायालय  11 जून 1866 उत्तर प्रदेश   इलाहाबाद

2 आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय 08 जुलाई 1954     आंध्र प्रदेश    हैदराबाद

3 मुंबई उच्च न्यायालय      14 अगस्त 1862    गोवा, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, महाराष्ट्र     मुंबई

4 कलकत्ता उच्च न्यायालय  02 जुलाई 1862     अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पश्चिम बंगाल   कलकत्ता

5 छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय 01 नवम्बर 2000    छत्तीसगढ    बिलासपुर

6 दिल्ली उच्च न्यायालय     31 अक्टूबर 1966    राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली) नई दिल्ली

7 गुवाहाटी उच्च न्यायालय   01 मार्च 1948      अरुणाचल प्रदेश, असम, मिजोरम, नगालैंड    गुवाहाटी

8 गुजरात उच्च न्यायालय    01 मई 1960 गुजरात अहमदाबाद

9 हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय 1971     हिमाचल प्रदेश शिमला

10 जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय      28 अगस्त 1943    जम्मू और कश्मीर    श्रीनगर और जम्मू

11 झारखण्ड उच्च न्यायालय 15 नवम्बर 2000    झारखंड रांची

12 कर्नाटक उच्च न्यायालय  1884  कर्नाटक      बंगलुरु

13 केरल उच्च न्यायालय    1956  केरल, लक्षद्वीप      कोच्चि

14 मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय 02 जनवरी 1936   मध्य प्रदेश    जबलपुर

15 चेन्नई उच्च न्यायालय    15 अगस्त 1862    पुडुचेरी, तमिलनाडु    चेन्नई

16 उड़ीसा उच्च न्यायालय    03 अप्रैल 1948     ओडिशा कटक

17 पटना उच्च न्यायालय    02 सितम्बर 1916 बिहार    पटना

18 पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय 15 अगस्त 1947 पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़      चंडीगढ़

19 राजस्थान उच्च न्यायालय 21 जून 1949 राजस्थान     जोधपुर

20 सिक्किम उच्च न्यायालय 16 मई 1975 सिक्किम     गंगटोक

21 उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय 09 नवंबर 2000    उत्तराखण्ड    नैनीताल

22 मणिपुर उच्च न्यायालय   25 मार्च 2013      मणिपुर इम्फाल

23 मेघालय उच्च न्यायालय  23 मार्च 2013      मेघालय शिलांग

24 त्रिपुरा उच्च न्यायालय    26 मार्च 2013      त्रिपुरा  इटानगर

तो दोस्तों ये था उच्च न्यायालय के आरंभिक अधिकार क्षेत्र, न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार, प्रशासकीय शक्तियों और भारत के उच्च न्यायलयों के नाम एवम उनके स्थापना वर्ष के बारे में । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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