एक्विनास के कानून पर विचार

Views on Law by St. Thomas Aquinas

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं अंतरराष्ट्रीय राजनीति विज्ञान में एक्विनास के कानून पर विचारों के बारे में (Aquinas’s views on Laws in hindi)। साथ ही साथ इस Post में हम जानेंगे कि एक्विनास ने कानून को किन किन श्रेणियों में बांटा है । तो जानते हैं, आसान भाषा में ।

इटली के इस महान दार्शनिक को मध्य युग का महान विचारक माना जाता है । एक्विनास को राजनीतिक और धर्म शास्त्र में अपने युग का संस्कृतिक विचारक माना जाता है । उन्होंने बहुत सारी महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी जिसमें सुम्मा थेओलोजिका सबसे प्रमुख मानी जाती है । उन्होंने कानून संबंधी विचार भी दिए हैं और कानून को अलग अलग श्रेणियों में बांटा है ।

कानून पर एक्विनास के विचार

यूँ तो एक्विनास के कानून संबंधी विचारों में उनके समन्वय के दर्शन मिलते हैं । कानून संबंधी विचारधारा में अनेक विचारकों का चित्रण मिलता है, जैसे अरस्तु, स्टोइक, सिसरो आदि । इसके साथ इसमें ऑगस्टाइन तथा रोमन के विधि वेक्ताओं के दर्शन का भी समावेश मिलता है ।

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एक्विनास के अनुसार

“कानून विवेक से प्रेरित और लोक कल्याण के लिये उस व्यक्ति द्वारा जारी किया गया एक ऐसा आदेश है, जिस पर समाज की व्यवस्था का भार होता है ।”

लोक कल्याण की प्रमुख शर्त के रूप में यह माना जाता है कि सच्चा कानून वह है, जो विवेकपूर्ण आदेश और सामान्य हित के उद्देश्य से प्रेरित हो ।

कानून की श्रेणियां एक्विनास के अनुसार

आइए अब जानते हैं, एक्विनास द्वारा कानूनों के प्रकार के बारे में । एक्विनास ने कानून को निम्न चार श्रेणियों में बांटा है ।

1 शाश्वत कानून

2 प्राकृतिक कानून

3 दैवीय कानून

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4 मानवीय कानून

अब बात करते हैं विस्तार से इन कानूनों के बारे में ।

1 शाश्वत कानून (Eternal Laws)

यह कानून ईश्वरीय ज्ञान माना है और यह सृष्टि की सभी वस्तुओं में निहीत होता है । इसी के द्वारा ईश्वर ने प्रकृति का निर्माण किया है और इसी कानून के माध्यम से प्रकृति और ब्राह्मण पर नियंत्रण किया जाता है । समग्र सृष्टि, मनुष्य, पशु, वनस्पति आदि । सब इसी कानून के अंतर्गत आते हैं ।

“शाश्वत कानून सर्वोच्च विवेक का प्रतीक माना जाता है । मनुष्य की बुद्धि सीमित होने के कारण वह उसे पूरी तरह से नहीं समझ पाता ।”

मनुष्य की सीमित बुद्धि होने के कारण शाश्वत कानूनों का आभास मनुष्यों को नहीं हो पाता है । इसी कारण प्राकृतिक कानून के रूप में ईश्वर मनुष्य को शाश्वत कानून का आभास समय-समय पर कराता है ।

2 प्राकृतिक कानून (Natural Laws)

प्राकृतिक कानूनों में उन सभी बातों को शामिल किया जाता है, जो मनुष्य की प्रव्रति से संबंधित हैं । जीवन की रक्षा कानून पर निर्भर करती है और मनुष्य में दया, क्षमा, परोपकार की भावना आदि । प्रवृतियां कानून प्राकृतिक कानून से संबंधित हैं ।

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प्राकृतिक कानून सृष्टि के समस्त जीवो, प्राणियों में दैवीय विवेक का प्रतिबिंब माना जाता है । मनुष्य इस कानून से अच्छे तथा बुरे काम का ज्ञान प्राप्त करता है । प्राकृतिक कानूनों की उत्पत्ति शाश्वत कानूनों से होती है । परंतु यह उन कानूनों से आसान तथा समझने योग्य होते हैं ।

3 दैवीय कानून (Divine Laws)

इस कानून को एक्विनास ने प्राकृतिक कानूनों से अलग स्थान दिया है । दैवीय कानून ईश्वर द्वारा प्रदान किए गए उपहार के रूप में हैं । इसके अंतर्गत कानूनों को धर्म ग्रंथों में प्रतिपादित देववाणीयों और ईश्वरीय व्यवस्थाओं से लिए गए हैं । जब मनुष्य विवेक शून्य हो जाता है, तोदैवीय विधियां मनुष्य में उत्पन्न कमियों या दोषों को दूर करती है । यह कानून मानव जीवन के पारलौकिक अर्थात आध्यात्मिक जीवन को नियमित और नियंत्रित करता है ।

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यह कानून सबके लिए नहीं होते । बल्कि जो धर्म को मानने वाले हैं, वही इसकी उपयोगिता को समझ सकते हैं । प्राकृतिक और दैवीय कानून में कोई विरोध नहीं होता क्योंकि वह विवेक सम्मत होते हैं ।

4 मानवीय कानून (Human Law)

मानवीय कानूनों को एक्विनास ने सबसे नीचे की श्रेणी में रखा है । एक्विनास का मानना था कि शाश्वत, प्राकृतिक और दैवीय विधियों को मनुष्य पर लागू अवश्य किया जा सकता है, लेकिन ये ना तो मनुष्य तक सीमित है और ना ही सिर्फ मानवीय प्राकृतिक पर आधारित हैं । जो विधि केवल मनुष्य के लिए बनाई जाती है । उसे एक्विनास मानवीय कानून बताता है ।

मानवीय कानून मनुष्य द्वारा समाज में शांतिपूर्ण व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपनाई गई दंड व्यवस्थाएं हैं । मानवीय कानून का निर्माण मनुष्य अपनी बुद्धि से करता है किंतु यह प्राकृतिक कानूनों पर आधारित होती हैं । परंतु यदि मानवीय कानून, प्राकृतिक कानून के प्रतिकूल हो तो इसे कानून नहीं वरन कानून का भ्रष्ट रूप समझा जाएगा ।

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मानवीय कानून प्राकृतिक कानून के पूरक होते हैं । मानवीय कानून की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि प्राकृतिक कानून अनिश्चित और अपरिभाषित होते हैं । इसमें  दंड की कोई व्यवस्था नहीं होती ।

ये तीन शाश्वत, प्राकृतिक और दैवीय कानून मानव और संसार दोनों पर लागू होते हैं । वही मानवीय कानून केवल मानव जगत पर ही लागू किया जा सकता है ।

इस तरह से एक्विनास, ऑगस्टाइन की मान्यताओं के विपरीत यूनानी विचारकों के अनुरूप राज्य की आवश्यकता महसूस कराता है । मनुष्य की क्षमताओं के पूर्ण विकास के लिए राज्य आवश्यक है । इस कारण मनुष्य को कानून की आवश्यकता होती है । राज्य को वही कानून बनाने चाहिए जो प्राकृतिक कानूनों के अनुकूल हो । एक्विनास के विचारों में कानून की धारणा सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है ।

निष्कर्ष के रूप में देखा जाए तो एक्विनास के अनुसार कानून सार्वभौमिक है । कानूनों का पालन सभी को करना चाहिए । यह अपरिवर्तनशील होते हैं । शासक इसमें अपने मनमाने ढंग से कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है । कानून का मूल स्रोत प्रकृति है । मानवीय कानून भी दैवीय कानून के भाग माने जाते हैं । जिसके अनुसार पृथ्वी तथा स्वर्ग में शासन किया जाता है । किसी व्यक्ति में यहां तक कि पादरी भी कानून के उल्लंघन की शक्ति नहीं रखते हैं ।

तो दोस्तों यह था एक्विनास द्वारा कानून संबंधी विचारों के बारे में और साथ ही साथ हमने जाना एक्विनास के कानून की चार अलग-अलग श्रेणियों के बारे में । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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