हेलो दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, “कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत” (Kautilya ka Sptang Siddhant) के बारे में कौटिल्य को इतिहास में तीन नामों से जाना जाता है ।
पहला चाणक्य
दूसरा विष्णुगुप्त और
तीसरा कौटिल्य ।
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कौटिल्य का भारत की राजनीति में बहुत बड़ा योगदान है । कौटिल्य को भारतीय राजनीतिक विचारों का जनक माना जाता है । उनका जन्म चार ईसा पूर्व मगध राज्य में हुआ था । 325 ईसा पूर्व कौटिल्य ने विश्व प्रसिद्ध पुस्तक “अर्थशास्त्र” लिखी जबकि फादर ऑफ इकोनॉमिक्स एडम स्मिथ को माना जाता है, जिनका जन्म 1723 में हुआ । कौटिल्य ने सबसे पहले एक सुनियोजित राज्य व्यवस्था का विचार दिया था । कौटिल्य की रचनाओं को पश्चिम में सबसे ज़्यादा पढ़ा जाता है । कौटिल्य की चाणक्य नीति आज के समय भी उतनी उपयोगी है जितनी उस समय में थी और इससे चाणक्य की सोच और सूज बूझ के बारे में पता चलता है ।
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आइये बात करते हैं सप्तांग सिद्धान्त की ।
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सप्तांग सिद्धांत
कौटिल्य ने इस सिद्धान्त में राज्य के सात अंगों का वर्णन किया है । सप्तांग दो शब्दों से मिलकर बना है सप्त यानी सात और अंग यानी हिस्से । कौटिल्य ने राज्य के सभी अंगों की तुलना शरीर के अंगों से की है । जिस तरह मानव शरीर का अपना महत्व है, जो शरीर को उपयोगी और काम के योग्य बनाता है। इसी तरह कौटिल्य ने राज्य के सात अंगों के महत्व का वर्णन किया है जो किसी राज्य को चलाने या उसकी रक्षा के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । सात अंग इस तरह है ।
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इन अंगों को Sequence में लिखना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि Exam में आपको इसी के Number मिलेंगे ।
आइये इन अंगों को detail में जानें ।
1. राजा या स्वामी
सप्तांग सिद्धान्त का जो सबसे पहला अंग है, स्वामी यानी राजा को कौटिल्य ने विशेष महत्व दिया है । कौटिल्य ने राजा को राज्य का केंद्र व महत्वपूर्ण अंग माना है और राजा की तुलना शीर्ष से की है । कौटिल्य के अनुसार, राजा को दूरदर्शी, आत्मसंयमी, कुलीन, स्वस्थ, बौद्धिक गुणों से संपन्न, युद्ध कला में माहिर तथा धैर्यवान होना चाहिए । कौटिल्य राजा को कल्याणकारी तथा जनता के प्रति उत्तरदायी होने की सलाह देते हैं क्योंकि उनके अनुसार राजा कर्तव्यों से बँधा होता है । वह अपने गुणों के आधार पर अन्य सभी अंगों का संचालन करता है । कौटिल्य के अनुसार स्वामी को न तो किसी के अधीन होना चाहिये न ही किसी बाहरी नियम से बंधा होना चाहिए ।
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2. अमात्य या मंत्री
कौटिल्य ने अपने दूसरे सिद्धान्त में एक आदर्श मंत्री के आवश्यक गुणों का वर्णन किया हैं । अमात्य की तुलना की “आँख” से की है । अमात्य वह व्यक्ति होता है जो अपनी जिम्मेदारियों को सँभाल सके और राजा के कार्यों में उसका पूर्ण सहयोग दे । कौटिल्य के अनुसार एक मंत्री को चतुर, ललित कलाओं को जानने वाला, बुद्धिमान, उत्साही, धैर्यवान, युद्ध कला में माहिर और स्वामी भक्त होना चाहिए ।
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3. जनपद
इस अंग की तुलना कौटिल्य ने “पैर” से की है । जनपद में भूमि और जनसंख्या दोनों को शामिल किया जाता है । कौटिल्य के अनुसार जनपद तीसरा सबसे महत्वपूर्ण अंग है जिसका अर्थ है “जनयुक्त भूमि” । कौटिल्य के अनुसार हर राज्य का भूभाग होना चाहिए, भूमि उपजाऊ होना चाहिए, जो राज्य की जनसंख्या का भरण पोषण कर सके, जनता को रोजगार दे सके जिससे राज्य का संचालन सही तरह हो । जनपद में प्राकर्तिक संसाधन पशुओं, नदियों, तालाबों आदि की गुणवत्ता पर बहुत अधिक महत्व दिया है ।
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4. दुर्ग यानी किला
इस अंग में कौटिल्य ने दुर्ग की तुलना “बाँहों” या “भुजाओं” से की है, जिस तरह हमारे हाथ शरीर की रक्षा करते है । इसी तरह से कौटिल्य ने दुर्ग की रक्षा और सम्पन सम्पदाओं के बारे बताया है । उनके अनुसार राजा को अपने जनपद की सुरक्षा के लिए ऐसे किले बनाने चाहिए जो चारों दिशाओं से रक्षा कर सके । कोटिल्य ने चार तरह के दुर्ग बताये है ।
i) औदिक दुर्ग-जिसके आसपास पानी हो, नदिया, तालाब हो यानी जो चारो तरफ से पानी से घिरा हो ।
ii) पार्वत दुर्ग-जिसके चारों ओर चट्टानें हों, पहाड़ हों ।
iii) धान्वन दुर्ग-जिसके चारों ओर रेगिस्तान में हो, ऊसर भूमि यानी चारो ओर रेत ही रेत हो ।
iv) वन दुर्ग-जिसके चारों ओर वन तथा जंगल हो, यानी कांटेदार झाड़ियो से घिरा हो ।
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5) कोष यानी धन
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कोटिल्य के अनुसार कोष को राज्य का मुख्य अंग माना जाता है क्योंकि इसके बिना राज्य का संचालन संभव नही । कोटिल्य ने कोष और इसमें वृद्वि के लिए बल दिया है क्योंकि उनके अनुसार कोष से ही कोई राज्य तरक्की करता है तथा शक्तिशाली बना रहता है । समृद्ध अर्थव्यवस्था के लिए धन का होना बहुत आवश्यक है । कोष के द्वारा ही राजा अपनी जनता और सेना का भरण-पोषण करता है । कोटिल्य के अनुसार कोष सोने, चांदी, हीरा, एवं नकदि से भरा हो जो कि किसी आपदा में या युद्ध के समय काम आ सके ।
6) दंड या सेना
कौटिल्य के अनुसार स्थाई रूप से सेना में रहने के लिए वंशानुगत आधार पर भर्ती हो, इस तरह सैनिक युद्ध कला से परिचित, निपुर्ण और दक्ष होंगे । उनके अनुसार सेना ऐसी होनी चाहिए जो साहसी हो, बलशाली हो, इसके साथ साथ सैनिक में राष्ट्रभक्ति की भावना हो और राज्य के प्रति रक्षा का साहस हो । राजा का कर्तव्य है कि वो अपने सैनिकों और उनके परिवार की सुख सुविधाओं का ध्यान रखे ।
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7) मित्र या दोस्त
कौटिल्य के अनुसार राज्य की समृद्धि के लिए तथा किसी युद्धकाल, आपदा के समय सहायता के लिए राज्य को अच्छे मित्रों की आवश्यकता होती है ।
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“जिस राजा के मित्र लालची, निकम्मे और कायर होते हैं उनका विनाश निश्चित होता है ।”
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कौटिल्य के अनुसार राजा को शक्तिशाली मित्रो से मित्रता बढ़ा कर उनकी सहायता से विदेशी शत्रुओं पर आक्रमण करके विजय होने में मदद लेना चाहिए ।
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तो दोस्तो ये था कोटिल्य का सप्तांग सिद्धान्त अगर आपको इस टॉपिक से रिलेटेड notes चाहिए तो आप हमारे Whatsapp वाले number 9999338354 पर Contact कर सकते है । धन्यवाद
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Thankyou sir ,I’m very glad .it’s so many helpful for my BA examination ?
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It is really useful thanks a lot 🙂🙂
It’s helpful thanx for this
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