बोडिन के सम्प्रभुता पर विचार

Jean Bodin views on Sovereignty

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, पश्चिमी राजनीति विचार के अंतर्गत जीन बोडिन के संप्रभुता पर कुछ महत्वपूर्ण विचारों (Jean Bodin views Sovereignty) के बारे में । जीन बोडिन को बोन्दा के नाम से भी जाना जाता है । बोडिन पहले विचारक थे, जिसने संप्रभुता की स्पष्ट विवेचना की तथा इसे राजनीति का एक प्रमुख सिद्धांत बनाया ।

संप्रभुता राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में बोन्दा की सबसे महत्वपूर्ण तथा विशिष्ट देन है । बोन्दा द्वारा संप्रभुता या प्रभुसत्ता संबंधी विचारों को सबसे महत्वपूर्ण तथा विशेष महत्व दिया जाता है । हालांकि इस सिद्धांत का उदगम यूनान और रोम के प्राचीन विचारकों द्वारा हुआ हैं, फिर भी बोन्दा वह प्रथम व्यक्ति है, जिसने बड़ी स्पष्टता और वैज्ञानिकता से इसे राजनीति विज्ञान का एक प्रमुख भाग बनाया है ।

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अगर व्यवहारिक रूप में देखें तो निरंकुश राजतंत्रों में संप्रभुता का उसी रूप में प्रयोग किया जाता था, जिस रूप में बोंदा ने उसका वर्णन किया है । परंतु बोडिन से पहले के विचारकों ने संप्रभुता के इस सिद्धांत को स्पष्ट नहीं किया ।

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इस तरह से संप्रभुता का अत्यंत स्पष्ट और विस्तृत प्रतिपादन सबसे पहले बोंदा ने ही किया था । अर्थात बोन्दा को संप्रभुता का प्रथम व्याख्याता माना जाता है ।

बोडिन द्वारा संप्रभुता का अर्थ

यह वह एक विभाजक रेखा है, जो उसे राज्य को परिवार तथा अन्य सामाजिक संगठनों से अलग करती है । इसी प्रकार बोडिन के अनुसार-

“संप्रभुता नागरिकों तथा प्रजा जनों के ऊपर एक ऐसी सर्वोच्च शक्ति है, जो विधि या कानून द्वारा मर्यादित नहीं की जा सकती । अर्थात वह कानून के बंधन से मुक्त है ।”

संप्रभुता की विशेषताएं

आइए अब जानते हैं, बोन्दा के अनुसार संप्रभुता की विशेषताओं के बारे में । बोन्दा ने संप्रभुता को सर्वोच्च स्थान दिया है । इसकी कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं ।

1) बोन्दा के अनुसार संप्रभुता सर्वोच्च और निरपेक्ष है । यह सभी के लिए कानून का निर्माण करती है । परंतु यह स्वयं किसी से आदेश प्राप्त नहीं करती । यह युद्ध की घोषणा करती है । शांति की स्थापना करती है । राज्य के ऊंचे से ऊंचे प्रकाशक की अपील सुनने, जब चाहे उससे अधिकार छीनने, आदि । सभी का सर्वोच्च अधिकार अपने पास ही रखती है ।

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2) संप्रभुता कानून से नियंत्रित नहीं होती क्योंकि संप्रभु को स्वयं कानूनों का स्रोत माना जाता है । यह राज्य की सर्वोच्च शक्ति का धारक होता है । अतः यह उन कानूनों से बाधित नहीं होता, जिसे उसने जनता के लिए बनाया है । संप्रभु के आदेश पर नियंत्रण गैरकानूनी होगा ।

3) संप्रभुता को एक सतत और स्थाई शक्ति मानी जाती है । यह शक्ति राज्य की शक्ति के ऊपर समय की बाध्यता नहीं है । इसका आदान-प्रदान भी नहीं किया जा सकता है । संप्रभुता उस शक्ति से अलग मानी जाती है, जो किसी को सीमित समय के लिए दी जाती है । प्रभु सत्ताधारी जो जीवन पर्यंत निरंकुश शक्तियों का उपयोग करें ।

4) प्रभुसत्ता सर्वोच्च शक्ति है । यह शाश्वत एवं स्थाई है । संप्रभु या सत्ताधारी मर सकता है, परंतु संप्रभुता नहीं मर सकती । यह कानूनों का स्रोत है, इसलिए कानूनों से इसे परे माना जाता है । राज्य का यह अनिवार्य तत्व भी है । इसके अभाव में राज्य का अस्तित्व नहीं माना जाता । यह एक अविभाज्य है, केवल एक शक्ति में निहित है । राज्य में दो संप्रभु संपन्न व्यक्तियों का निवास असंभव होता है । अतः संप्रभुता शक्ति किसी दूसरी शक्ति द्वारा हस्तांतरित नहीं की जा सकती है ।

संप्रभुता की सीमाएं

आइए अब बात करते हैं, बोन्दा के संप्रभुता सिद्धांत की कुछ मर्यादाओं और उनकी सीमाओं के बारे में । बोन्दा के अनुसार संप्रभुता सर्वोच्च शक्ति है तथा सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त है, फिर भी इसकी कुछ सीमाएं हैं, जो निम्न प्रकार हैं ।

जब बोन्दा संप्रभु को कानूनों से ऊपर बताता है तो, उसका अर्थ है कि संप्रभु केवल अपने बनाए गए कानूनों से ही ऊपर है । अन्य प्रकार के कानूनों से नहीं । सभी शासक दैवीय और प्राकृतिक कानूनों कानूनों से बाधित हैं । वह ईश्वर और प्रकृति के नियमों की अवहेलना नहीं कर सकता । दैवीय और प्राकृतिक कानूनों का पालन करने में राज्य का कल्याण संभव माना जाता है ।

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संप्रभु राज्य के संवैधानिक कानूनों के विरुद्ध भी नहीं जा सकता । यह राज्य के किसी भाग को हस्तांतरित नहीं कर सकता । वह उत्तराधिकार कानूनों को नहीं बदल सकता । क्योंकि उसने इसे नहीं बनाया है ।

बोन्दा के संप्रभु की बाधा है कि वह बिना व्यक्ति की सहमति के किसी की निजी संपत्ति को न छीने, क्योंकि बोन्दा निजी संपत्ति को पवित्र और अलंघनीय मानता है ।

देश के मौलिक कानूनों का उल्लंघन संप्रभु नहीं कर सकता । देश या राष्ट्र के मौलिक कानून पर ही संप्रभु भी आधारित होता है ।

निष्कर्ष के रूप में देखा जाए तो बोन्दा का संप्रभुता का सिद्धांत एक विषयक धारणा है । इसमें अनेक अस्पष्टता है । यह असंगतता तथा यह अंतर विरोधी से युक्त है ।

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एक तरफ वह संप्रभुता को सर्वोच्च तथा असीम मानता है । जबकि दूसरी तरफ उसे अनेक बंधनों से बांध देता है । एक ओर जहां वह संप्रभु को कानूनों का स्रोत्रम् मानता है, परंतु दूसरी तरफ इसे दैवीय, प्राकृतिक, संवैधानिक और राष्ट्र के कानूनों के अधीन मानता है ।

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इस प्रकार से बोन्दा के संप्रभुता संबंधी विचारों में व्यवहारिक विरोधाभास तथा असंगति दिखती है । इसका प्रमुख कारण तत्कालीन परिस्थितियों में वह शांति व्यवस्था के लिए वह राजतंत्र को आवश्यक मानते हुए राजतंत्र के समर्थन में संप्रभुता की धारणा विकसित करता है । लेकिन मानवीय नैतिकता के कारण उसने उस पर कुछ सीमाएं भी लगा दी हैं ।

बोन्दा के संप्रभुता संबंधित विचारों में अनेक अस्पष्टाओं व असंगतियों के बावजूद यह बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है । बोंदा ही प्रथम विचारक हैं, जिसने राज्य का प्रमुख अंग संप्रभुता को माना तथा उसकी सर्वोच्चता, सार्वभौमिकता, अविभाज्यता आदि पर विस्तार से बताया । बोन्दा ने दुर्बल देश को शक्तिशाली बनाने के लिए इन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया ।

तो दोस्तो ये था बोडिन/बोन्दा का संप्रभुता पर विचार, इसकी विशेषताएं, सीमाएं और महत्व । अगर Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तो के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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