भारत की न्यायपालिका : सर्वोच्च न्यायालय

Indian Judiciary : Supreme Court

Hello दोस्तो ज्ञानउदय में आपका स्वागत है, आज हम बात करेंगे भारतीय संविधान में भारत की शीर्ष न्यायपालिका (Indian Judiciary) यानी सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के बारे में । साथ ही साथ इस Post में हम जानेंगे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों के बारे में, उनकी योग्यता, कार्यकाल, वेतन और और अधिकार क्षेत्रों के बारे में । तो जानते है आसान शब्दों में ।

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भारत की शीर्ष न्यायपालिका

भारतीय संविधान के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को भारत की शीर्ष न्यायपालिका माना जाता है । संविधान के अनुसार इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा अधिक-से-अधिक सात न्यायाधीश होते हैं । संसद कानून द्वारा न्यायाधीशों की संख्या में परिवर्तन कर सकती है । न्यायाधीशों की संख्या में समय-समय पर बदलाव होता रहा है । वर्ष 1956 में 11, 1960 में 14, 1978 में 18 तथा 1986 में 26 तक की वृद्धि कर दी गयी । वर्तमान समय में उच्चत्तम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 30 अन्य न्यायाधीश (कुल 31 न्यायाधीश) हैं । भारत के राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है । इसी तरह अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश की सलाह से की जाती है ।

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सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएँ

आइये अब बात करते हैं, सर्वोच्च न्यायालय का न्यायधीश होने के लिए किन किन योग्यताओं का होना आवश्यक है ।

1) वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो ।

2) कम-से-कम 5 वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो ।

3) कम-से-कम 10 वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय में वकालत कर चुका हो । या

4) राष्ट्रपति के विचार में सुविख्यात विधिवेत्ता (कानून का जानकार) हो ।

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भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है । इस अनुच्छेद के अनुसार-

“राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से, जिनसे परामर्श करना वह आवश्यक समझे, परामर्श करने के पश्चात् उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा ।”

इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी न्यायाधीश की नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश से जरुर परामर्श किया जाएगा । संविधान में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के सम्बन्ध में अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है ।

कार्यकाल तथा वेतन

अब बात करते हैं, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य तथा अन्य न्यायधीशों के कार्यकाल तथा उनके वेतन के बारे में ।

1. सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बने रह सकते हैं ।

2. न्यायधीश 65 वर्ष की आयु के पूर्व भी वे राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर पद मुक्त हो सकते हैं ।

3. राष्ट्रपति उनको अवकाश-प्राप्ति से पूर्व भी संसद द्वारा पारित महाभियोग प्रस्ताव के बाद पद से हटा सकते हैं । अभी तक इस प्रक्रिया द्वारा सर्वोच्च या उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को हटाया नहीं गया है ।

4. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 1 लाख रुपये प्रति माह तथा अन्य न्यायाधीशों का वेतन 90 हज़ार रुपये प्रति माह निर्धारित किया गया है ।

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5. सर्वोच्च न्यायालय के वेतन तथा भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित हैं । सामान्य परिस्थितियों में न्यायाधीशों के कार्यकाल में उनके वेतन एवं भत्ते कम नहीं किये जा सकते हैं ।

उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र

आइये अब जानते हैं, सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्रों के बारे में । सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को 5 वर्गों में बाँटा जा सकता है, जो कि निम्नलिखित हैं ।

I. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार

उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता संविधान के अनुच्छेद 131 में वर्णित की गयी है । प्रारंभिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है, वैसे मुकदमे जो किसी दूसरे न्यायालय में न जाकर सीधे सर्वोच्च न्यायालय में आते हैं । जो कि निम्न प्रकार हैं ।

1) भारत सरकार तथा एक या एक से अधिक राज्यों के बीच उत्पन्न विवाद से सम्बंधित मुकदमे ।

2) केंद्र तथा एक या उससे अधिक राज्यों व एक अथवा उससे अधिक राज्यों के बीच होने वाले विवाद ।

3) दो या उससे अधिक राज्यों के बीच उत्पन्न होने वाले विवाद संबंधी मुकदमे ।

4) मौलिक अधिकारों को कार्यान्वित करने से सम्बंधित विवाद

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II. अपीलीय क्षेत्राधिकार

वे सभी मुकदमे जो सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख निचली अदालतों के निर्णयों के विरुद्ध अपील के रूप में आते हैं । अपीलीय क्षेत्राधिकार के अन्दर आते हैं । इसके अंतर्गत तीन तरह की अपीलें सुनी जाती हैं – संवैधानिक, फौजदारी और दीवानी ।

1) संवैधानिक मामलों में सर्वोच्च न्यायालय किसी राज्य के उच्च न्यायालय की अपील तब सुन सकता है, जब वह इस बात को प्रमाणित कर दे कि इस मामले में कोई विशेष वैधानिक विषय है । जिसकी व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय में होना आवश्यक है । सर्वोच्च न्यायालय स्वयमेव इसी प्रकार का प्रमाणपत्र देकर अपील के लिए अनुमति दे सकता है ।

2) फौजदारी अभियोग में सर्वोच्च न्यायालय में उच्च न्यायालय के निर्णय, अंतिम आदेश अथवा दंड के विरुद्ध अपील तभी की जा सकती है, यदि उच्च न्यायालय प्रमाणित कर दे कि इस पर निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया जाना आवश्यक है ।

पढ़े :: भारतीय संविधान के भाग Parts of Indian Constitution

3) दीवानी मामलों में उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील इन अवस्थाओं में हो सकती है –

i) यदि उच्चतम न्यायालय यह प्रमाणित करे कि विवाद का मूल्य 20,000 रु. से कम नहीं है, अथवा

ii) मामला अपील के योग्य है;

iii) उच्च न्यायालय स्वयं भी फौजी अदालतों को छोड़कर अन्य किसी न्यायालय के विरुद्ध अपील करने की विशेष अनुमति दे सकता है ।

III. परामर्श सबंधी क्षेत्राधिकार

संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय को परामर्श सम्बन्धी क्षेत्राधिकार भी प्रदान किया है । अनुच्छेद 143 के अनुसार यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उपस्थित हुआ है । जो सार्वजनिक महत्त्व का है तो उक्त प्रश्न पर वह सर्वोच्च न्यायालय परामर्श मांग सकता है । सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए परामर्श को स्वीकार करना या न करना राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है ।

पढ़े :: भारतीय संविधान की प्रस्तावना Preamble of Indian Constitution

IV. अभिलेख न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय के रूप में कार्य करता है । इसका अर्थ है कि इसके द्वारा सभी निर्णयों को प्रकाशित किया जाता है तथा अन्य मुकदमों में उसका हवाला दिया जा सकता है । संविधान का अनुच्छेद 129 घोषित करता है कि सर्वोच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उनको अपनी अवमानना के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ प्राप्त होगी ।

भारतीय नागरिकता की समाप्ति (Termination and Renunciation of Indian Citizenship) के बारे में जानने लिए यहाँ Click करें ।

V. रिट न्यायालय

मूल अधिकार के प्रवर्तन के लिए उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को रिट अधिकारिता प्राप्त है । अनुच्छेद 32 के तहत प्राप्त इस अधिकारिता का प्रयोग सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में राज्य के विरुद्ध उपचार प्रदान करने के लिए करता है । उच्चतम न्यायालय की इस अधिकारिता को कभी-कभी उसकी आरंभिक अधिकारिता माना जाता है । यह इस अर्थ में आरंभिक है कि व्यथित पक्षकार को उच्चतम न्यायालय को याचिका प्रस्तुत करके अभ्यावेदन करने का अधिकार है । उसे इस न्यायालय में अपील के माध्यम से आने की जरुरत नहीं है ।

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तो दोस्तों ये था सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों के बारे में, उनकी योग्यता, कार्यकाल, वेतन और और अधिकार क्षेत्रों के बारे में । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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