मैक्यावली के धर्म और नैतिकता पर विचार

Hello दोस्तो ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति विज्ञान में मैक्यावली के धर्म और नैतिकता संबंधी विचारों के बारे में । साथ ही साथ जानेंगे इसकी प्रमुख विशेषताओं के बारे में और इसकी आलोचनाओं के बारे में । मैक्यावली को इटली के चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है । इसे अपने युग का शिशु कहा जाता है । मैक्यावली के बारे में हम पहले ही बता चुके हैं । अगर आप मैक्यावली के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए Link पर Click करें ।

मैक्यावली अपने युग का शिशु या इटली का चाणक्य के बारे में जानने के लिए यहां Click करें ।

मैक्यावली के अनुसार किसी भी साधना की प्राप्ति के लिए उचित और अनुचित सभी तरह के साधनों का इस्तेमाल किया जा सकता है । मैक्यावली की यह धर्म संबंधी धारणा, उसके तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर उनकी अपनी उपज थी । मैक्यावली ने धर्म और नैतिकता का दिखावटी प्रयोग करके जो कि उसके समय से बहुत पहले से ही चला आ रहा था और उसका पर्दाफाश किया था कि शासन चलाने के लिए, धर्म और नैतिकता मात्र एक दिखावा मात्र है ।

मैक्यावली की धर्म और नैतिकता की विशेषताएं

मैक्यावली पहला विचारक है, जिसने राजनीति को नैतिकता से पूरी तरह से तथा औपचारिक रूप से अलग कर दिया है ।

“राजनीति को धर्म और नैतिकता के प्रभाव से मुक्त तथा स्वतंत्र करना ।”

उपरोक्त विचार प्रमुख के साथ मैक्यावली का नाम जुड़ा है और जिससे उसे सर्वाधिक पहचान मिली है ।

सोफिस्ट वर्ग के विचारकों के अलावा सभी यूनानी विचारक नैतिक जीवन को बहुत अधिक महत्व देते थे । मध्यकालीन विचारको का समस्त चिंतन धर्म और चर्च से ही प्रेरित था । मैक्यावली की यह विशेषता उसे प्राचीन और मध्यकालीन विचारों को से अलग कर देती है ।

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मैक्यावली का धर्म और नैतिकता संबंधित विचार हर प्रकार के धार्मिक आस्थाओं से बिल्कुल मुफ्त है और यही विचार उसे मध्यकाल से पूर्ण रूप से अलग करते हैं । हालांकि मैक्यावली से पहले के विचारकों जैसे मर्सिलियो ने भी राजनीति को धर्म व नैतिकता से मुक्त रखने का सूत्रपात किया था । लेकिन वह ईसाई धर्म के मानव स्वभाव संबंधी वैधता के सिद्धांत और ईश्वरीय नियम के विश्वास को नहीं छोड़ सका ।

इस तरह से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि मैक्यावली नैतिकता और धर्म की राजनीति पर पड़ने वाले प्रभावों से परिचित था । मैक्यावली का मानना था कि राज्य को अपनी सुरक्षा तथा खुद को शक्तिशाली बनाने के लिए आवश्यकता के अनुसार हर तरह के साधनों को अपनाया जा सकता है । चाहे वह साधन नैतिक हो या अनैतिक । इस तरह मैक्यावली ने दो तरह की नैतिकता को बताया है जोकि निम्नलिखित हैं-

1 व्यक्तिगत नैतिकता यानी शासन का दृष्टिकोण

2 जन नैतिकता यानी जनता का दृष्टिकोण या जनता का हित

शासक स्वतंत्र है और वह किसी भी नैतिकता के बंधन में नहीं बना हुआ है ।

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मैक्यावली के अनुसार-

“राजा को राज्य के सुरक्षा की चिंता करनी चाहिए । साधन तो हमेशा उसके अधीन समझे जाते हैं और सामान्यता उसकी प्रशंसा भी करनी चाहिए ।”

एक बुद्धिमान शासक अपने वचन का पालन नहीं कर सकता और ना ही उसे ऐसा करना चाहिए यदि ऐसा करना उसके हित में ना हो तो ।

मैक्यावली के अनुसार-

“प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि राजा के लिए अपने वचन का पालन करना और नीति पूर्वक आचरण करना प्रशंसनीय है । फिर भी हमारी आंखों के सामने जो घटना घटित होती है । उसमें हम जानते हैं कि केवल उन्हीं राजाओं ने महान कार्य किए हैं, जिन्होंने चालाकी से दूसरों को पीछे छोड़ दिया था ।”

मैक्यावली के अनुसार एक कुशल राजा का गुण यह है कि

“ना कोई चीज अच्छी है ना बुरी । ना कोई प्राकृतिक कानून है, ना कोई सार्वभौमिक नियम । साध्य ही साधनों का औचित्य है ।”

इस कथन पर के आधार पर मैक्यावली की धारणा यह है कि

“राजा को ऊपर से दयालु, विश्वासी, धार्मिक और सच्चा होने का ढोंग करते हुए, जरूरत पड़ने पर निर्दयी, विश्वासघाती और अधार्मिक बनने को तैयार रहना चाहिए ।”

मैक्यावली के अनुसार यदि मनुष्य श्रेष्ठ होते तो ऐसी स्थिति नहीं आती । वह दुष्ट तथा बुरे हैं । अतः ऐसे लोगों के नियंत्रण तथा उन पर शासन करने के लिए दोहरी नीति अपनानी पड़ेगी । इस तरह राजसत्ता को बनाए रखने के लिए मैक्यावली कहता है कि-

“एक राजा को सभी तरह के उपाय साम, दाम, दंड, भेद आदि अपनाने चाहिए ।” तथा

“सच्चा राजा वही है, जो शेर की तरह शक्तिशाली और लोमड़ी की तरह चालाक हो ।”

इस तरह से मैक्यावली ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए नैतिकता को बाधक नहीं बनने दिया ।

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अनैतिक और अधार्मिक कार्यों का समर्थन होने के बावजूद वह राजनीतिक क्षेत्र में धर्म की उपयोगिता को स्वीकार करता है । राज्य में धर्म महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह सभ्य जीवन का आधार है । व्यक्ति कई बार राज्य के कानूनों की अवहेलना कर देते हैं । परंतु धर्म को ईश्वरीय नियम मानकर उनको नहीं तोड़ते हैं ।

इस तरह राजा को ऐसे गुणों को धारण करना चाहिए, जिससे यह लगे कि राजा दया, धर्म, विश्वास, सच्चरित्र और धार्मिकता का पक्षधर है ।

इस प्रकार मैक्यावली ने अपनी पुस्तक डिसकोर्सेज में लिखा है कि-

“जो राजा और गणराज्य अपने को भ्रष्टाचार मुक्त रखना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले समस्त धार्मिक संस्कारों की विविधता को बनाए रखना चाहिए और उनके प्रति उचित श्रद्धा भाव रखना चाहिए । क्योंकि धर्म की हानी होते हुए देखने से बढ़कर किसी देश के विनाश का और कोई लक्षण नहीं है ।”

इसी तरह मैक्यावली ने धर्म को राज्य के सुरक्षा में ही प्रयोग किया है । धर्म का विचार उपयोगितावादी है । धार्मिक और नैतिक मान्यताओं का पालन वही तक सीमित हो जहाँ तक राज्य की सुरक्षा तथा शक्ति के साधन के रूप में काम करें ।

धर्म और नैतिकता की आलोचना

अब आइए जानते हैं, मैक्यावली के इन विचारों की आलोचना के बारे में । मैक्यावली द्वारा धर्म और नैतिकता की अवहेलना और घोर उपेक्षा भी की गई है । इस कारण उसकी कई विचारों को द्वारा आलोचना की गई है कि वह धर्म तथा नैतिकता का विरोधी है । लेकिन मैक्यावली पर यह आरोप लगाना सही नहीं कि उसने राजनीति को धर्म और नैतिकता से अलग करके उसे भ्रष्ट कर दिया है । राजनीति तो उससे पहले ही भ्रष्ट हो चुकी थी । उसने तो केवल व्यावहारिकता का परिचय देते हुए उस सत्य को उद्घाटित किया है ।

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जहां तक राज्य का संबंध है, मैक्यावली का सिद्धांत ना तो नैतिकतावादी है और ना ही अनैतिकतावादी ।

डर्निंग के अनुसार-

“मैकियावेली राजनीति में अनैतिक नहीं बल्कि धर्म और नैतिकता से उदासीन हैं ।”

मैक्यावली के संबंध में इसी कारण सोबाइन ने लिखा है कि-

“वह अनैतिक नहीं बल्कि नैतिकता का विरोधी था और अधार्मिक नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्ष था ।”

मैक्यावली ने मध्य काल के धर्म नैतिकता आदि सिद्धांतों की पुनर्व्याख्या की तथा राज्य के हित तथा सुरक्षा के लिए व्यावहारिक व यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया । जो कि राजनीति के क्षेत्र में उसकी अमूल्य देन है ।

तो दोस्तों यह था, अंतरराष्ट्रीय राजनीति विज्ञान में मैक्यावली के धर्म और नैतिकता संबंधी विचारों के बारे में, उसकी विशेषताएं, उसकी आवश्यकता और उसकी आलोचनाओं के बारे में | अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें तब तक के लिए धन्यवाद ।

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