राजनीतिक सिद्धान्त का पतन और पुनरोत्थान

Political Theory: Decline & Resurgence

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में राजनीति सिद्धांत के पतन और उसके पुनरुत्थान के बारे में । हम राजनीति के सिद्धान्तों के बारे में पहले ही चर्चा कर चुके हैं । अगर आप राजनीति सिद्धांत के बारे में जानना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए Link पर Click करके जान सकते हैं ।

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राजनीति के सिद्धांत समाज की रोज़मर्रा की समस्याओं के समाधान में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं ।

“राजनीति का असली मतलब है, निर्णय लेने की प्रक्रिया ।”

राजनीति में निर्णय लेने की प्रकिया सार्वभौमिक है, यानी सभी जगह एक समान होती है । उल्लेखनीय है कि उथल पुथल तथा संकट के काल में राजनीतिक सिद्धांत का उदय हुआ था । यूनान, इंग्लैंड तथा फ्रांस में राजनीतिक दर्शन का उदय विभिन्न युगों के सामाजिक, राजनीतिक उथल-पुथल तथा संकट के कारण हुआ ।

राजनीतिक सिद्धांत का पतन

प्राचीन काल से लेकर 19वीं शताब्दी के मध्य तक राजनीतिक सिद्धांत का संबंध राजनीतिक दर्शन से रहा है । इस अवधि में इसका लगातार विकास भी हुआ । परंतु बीसवीं सदी के मध्य में लगभग 1950 के दशक में राजनीतिक सिद्धान्त का पतन की शुरुआत हो चुकी थी जो राजनीति विज्ञान का मुख्य विषय रहा है ।

अनेक राजनीति विचारकों के अनुसार जैसे: रॉबर्ट डहल तथा लैसलेट आदि ने कह डाला है कि राजनीतिक सिद्धांत मर चुका है । इसके अलावा दूसरे विद्धमान ईस्टर और कोबेन ने राजनीतिक दर्शन के रूप राजनीतिक सिद्धान्त को इसके पतन की ओर अग्रसर बताया है ।

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राजनीति सिद्धान्त का अध्ययन परंपरागत अध्ययन है जो मूल्यों  पर आधारित था । इसमें मूल्यों के अध्ययन पर जोर दिया जाता था । इस प्रकार का अध्ययन प्लेटो, अरस्तु, हॉब्स तथा जॉन लॉक आदि ने किया है । प्लूटो ने अपने विचारों के द्वारा इस बात की खोज की है कि आदर्श राज्य का स्वरूप कैसा होना चाहिए । इसके लिए उसने अपना न्याय सिद्धांत प्रस्तुत किया ।

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अरस्तु के न्याय सिद्धांत को जानने के लिए यहां Click करें ।

अरस्तु ने अतिवादी विचारधारा से बचते हुए मध्यम मार्ग का अनुसरण किया है । इसी तरह हॉब्स ने व्यक्ति की आत्मरक्षा पर विचार करते हुए निरंकुश संप्रभुता के सिद्धांत का विकास किया तथा बताया कि व्यक्ति की सुरक्षा तब होती है, जब वह संप्रभु की स्थापना करता है । इसी तरह जॉन लॉक ने व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा हेतु संवैधानिक तथा सीमित सरकार के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था ।

1950-60 के दशक में विज्ञान की खोजों तथा आविष्कारों के कारण विज्ञान को प्राथमिकता दी गई तथा अनुभव ना आत्मक अध्ययन पर बल दिया जाने लगा । और धीरे धीरे करके आध्यात्मिक और भाषाई फिनाफिलॉजी का प्रभुत्व कम होने लगा । इस तरह से 1950-60 के दशक में राजनीतिक सिद्धातों का पतन शुरू हो गया ।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राजनीति विज्ञान के अध्ययन का मुख्य विषय राजनीतिक सिद्धांत के पतन से संबंधित था । अनेक विद्वानों ने यह महसूस किया कि 1950-60 के दशक में राजनीतिक सिद्धांत का पतन हुआ है । कुछ विद्वानों ने इसे अर्द्धचेतन तथा बेहोशी की हालत में कहा । तो कुछ ने राजनीतिक सिद्धान्त के आस्तित्व के खत्म हो जाना कह दिया ।

राजनीतिक सिद्धान्त के पतन के कारण

बहुत से विचारकों ने राजनीतिक सिद्धांत के पतन की बात की उनमें मुख्य रूप से डेविड ईस्टन, जर्मिनो तथा कोबन आदि प्रमुख है ।

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डेविड ईस्टन ने राजनीतिक सिद्धांत के पतन के निम्नलिखित 4 कारण बताए हैं ।

1 इतिहासवाद

2 मूल्य सापेक्षतावाद

3 सिद्धांत व विज्ञान में ब्रह्म

4 अतितथ्यवाद

आइये इन्हें Detail में जान लेते हैं ।

1 इतिहासवाद

ईस्टन ने 20वी सदी के विचारों को इतिहासवादी की संज्ञा दी है । उसने माना है कि बीसवीं शताब्दी में स्टुअर्ट मिल, कार्ल मार्क्स तथा लास्की के बाद कोई महान दार्शनिक पैदा नहीं हुआ । उसने बताया कि आधुनिक काल के अनेक विद्वान जैसे डर्निंग, सोबाझ तथा मैक्यावली आदि । जो कि सिद्धांत निर्माण कर सकते थे । उन्होंने राजनीतिक विचारों तथा संस्थाओं के अध्ययन पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया तथा कोई नया सिद्धांत देने का प्रयत्न ही नहीं किया । डेविड ईस्टन के अनुसार इतिहास वादियों की निम्नलिखित श्रेणियां बताई गई हैं ।

अ) संस्थावादी इतिहासवादी

ब) अन्तरसम्बधि इतिहासवादी

स) भौतिकवादी इतिहासवादी

अ) संस्थावादी इतिहासवादियों में मुख्य रूप से अतीत की संस्थाओं जैसे प्राचीन यूनान तथा मध्यकालीन युग की संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है तथा इन्होंने कोई नया सिद्धांत नहीं दिया है । इसमें मुख्य हैं कार्लाइल तथा मैकियावेली ।

ब) अंतरसंबंधी इतिहासवादियो ने मुख्य रूप से प्राचीन संस्थाओं तथा उनके अंतर संबंधों का अध्ययन किया है । जैसे मध्यकाल में चर्च, राज्य विवाद तथा उनके अंतर संबंध । इसमें मुख्य रूप से एलेन तथा कार्लाइल प्रमुख है ।

स) ऐतिहासिक भौतिकवादयों ने मुख्य रूप से भौतिक तथा बाह्य परिस्थितियों का अध्ययन किया तथा अपने अध्ययन द्वारा बताया कि भौतिक परिस्थितियां ही मूल निर्धारक रही हैं । उन्होंने केवल ऐतिहासिक अध्ययन ही किया तथा सिद्धांत निर्माण की ओर कोई ध्यान नहीं दिया । इसमें प्रमुख विचारक सेबाइन तथा डानिंग आदि हैं ।

2 मूल्य सापेक्षतावाद

राजनीतिक सिद्धांत के पतन का दूसरा प्रमुख कारण हैं, मूल्य सापेक्षतावाद को माना जाता है । मूल्य प्रत्येक समूह या युग की विशेषताएं हैं । इनका कोई सार्वभौमिक महत्व नहीं है । हमें विश्लेषण करने की आवश्यकता नहीं है । मूल्य सापेक्षता का समर्थन डेविड ह्यूम, काम्टे तथा मैक्स बेवर आदि ने किया है । मूल्य सापेक्षता के कारण ही वर्तमान में राजनीतिक विद्वान राजनीतिक मूल्यों का विश्लेषण समकालीन परिस्थितियों के अनुरूप नहीं कर रहे हैं । आज संसार के समक्ष अनेक समस्याएं तथा चुनौतियां हैं । जैसे प्रदूषण, बेरोजगारी, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, ग्लोबल वार्मिंग, अस्त्र शस्त्रों की होड़ आदि । इन समस्याओं के निवारण के लिए विद्वानों को सिद्धांत निर्माण का कार्य करते रहना चाहिए ।

3 विज्ञान और सिद्धांत में भ्रम

ईस्टन ने राजनीति सिद्धांत का एक और कारण विज्ञान और सिद्धांत में अंतर को राजनीतिक विचारों द्वारा ना समझ पाना बताया है । वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग शोध में करना अलग बात है और राजनीतिक सिद्धांत का निर्माण दूसरी बात । इसी कारण राजनीति में सिद्धांत निर्माण के बहुत कम प्रयत्न हुए हैं ।

4 अतितथ्यवाद Hyper Factual ism

अतितथ्यवाद भी राजनीतिक सिद्धांत के पतन का प्रमुख कारण रहा है । राजनीति को विज्ञान बनाने के क्रम में तथ्यों का एकीकरण और संग्रह प्रमुख हो जाता है । जिसके कारण सिद्धांत निर्माण का कार्य द्वितीयक हो जाता है । राजनीति विज्ञानी इसे विज्ञान बनाने के क्रम में दोहराते हैं कि विज्ञान के अध्ययन के लिए सिद्धांत की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि राजनीति शास्त्र एक विज्ञान है । अतः इसमें सिद्धांत निर्माण की कोई आवश्यकता नहीं है । इसके कारण भी राजनीतिक सिद्धांत का पतन हुआ है । व्यवहारिक वादित विचारों को इंग्लैंड तथा अमेरिकन ने एशिया तथा अफ्रीका के विकासशील देशों के अध्ययन हेतु इतने तथ्य एकत्र कर लिए हैं कि इनका सामान्ययीकरण नहीं किया जा सकता ।

राजनीतिक सिद्धांत का पुनरुत्थान

सिद्धान्त के पतन के बाद जानते हैं, राजनीतिक सिद्धान्त के पुनरोत्थान के बारे में ।

राजनीति सिद्धांत के पुनरुत्थान से आशय ऊपर बताए गए तथ्यों से स्पष्ट है कि इतिहासवाद अतीत के बाद अति वैज्ञानिकता परिवेश जनित, उद्देश्य का अभाव, मूल्य तथा आदर्शों की अवहेलना, प्रत्यक्षवाद, वैचारिक पतनवाद अनुभव और इस तरह के अनेकों कारण पिछले 150 वर्षों तक राजनीतिक सिद्धांत के विकास के बीच मे बाधा बनते रहे हैं । जिसे राजनीतिक पतन की संज्ञा दी गई है ।

1960-70 के दशक के बाद अनेक  विचारकों ने राजनीतिक सिद्धान्तों के पुनरोत्थान पर बल दिया है । जिससे स्पष्ट है कि इसमें पुनरुत्थान हुआ है तथा अनेक प्रकार के समकालीन सिद्धांतों का पुनर सृजन की हुआ है । डेविड ईस्टन का आगत निर्गत मॉडल, अमण्ड पावेल का संरचनात्मक कार्यात्मक विश्लेषण, कार्ल डायच का संचार मॉडल, साइमन का निर्णय निर्माण सिद्धांत अधिक महत्वपूर्ण रहे हैं । इस क्रम में अन्य विचारक माइकल ओकशाट, लियो स्ट्रॉस, एरिक वियोगलिन, आइजिया बर्लिन, हन्ना अरेंट, जॉन रॉल्स, नॉजिक तथा वाल्ज़र प्रमुख हैं, जिन्होंने राजनीतिक पुनरोत्थान के लिए अनेकों मॉडल और विचार दिए ।

इसके अलावा रॉल्स, मार्कुजे, मैकरसन तथा युरगेन हैबरमास ने भी सिद्धांतों का निर्माण करके इस को राजनीतिक सिद्धान्त को पुनर्जीवित किया है ।

आइजिया बर्लिन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि

“राजनीतिक दर्शन कभी मत नहीं हो सकते यद्यपि इनका स्वरूप अवश्य ही परिवर्तित हो गया है ।”

तो दोस्तों ये था आपका राजनीतिक सिद्धान्त का पतन, उसके कारण और पुनरोत्थान । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें ।

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