राजनीति का उदारवादी दृष्टिकोण

Liberal views on Politics

Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका एक बार फिर स्वागत है । आज हम बात करते हैं, राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण के बारे में । यानी Views of Liberal Politics.

उदारवादी राजनीति को हितों में सामंजस्य लाने वाली प्रक्रिया माना जाता है । विवादों के समाधान की प्रक्रिया माना जाता है । इस विचारधारा का उदय यूरोप में पुनर्जागरण के दौरान हुआ और यह विचार पैदा हुआ था कि व्यक्ति एक बुद्धिमान प्राणी है । जो अपना हित अहित खुद जानता है । इसलिए हर व्यक्ति को खुला छोड़ देना चाहिए । व्यक्ति अपना विकास खुले वातावरण में खुद कर सकता है । यानी स्वतंत्रता वाले माहौल में कर सकता है ।

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राजनीति का केंद्रीय बिंदु

उदारवादियों के अनुसार राजनीति का केंद्रीय विषय ना तो राज्य है, नाही समाज है और ना ही सरकार है । बल्कि राजनीति का केंद्रीय बिंदु, व्यक्ति है । व्यक्तिओं ने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समाज बनाया है । उदारवादी सबसे पहले हमें बताते हैं, समाज की प्रवृत्ति के बारे में और व्यक्ति की प्रवृत्ति के बारे में ।

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उदारवादियों के अनुसार समाज के अंदर बहुत सारे छोटे-छोटे समूह होते हैं । जो अपने हितों को पूरा करने में लगे रहते हैं । इसलिए समाज लोगों का एक समूह है । जो अपने हितों को पूरा करने में लगा रहता है । व्यक्तिओं ने किस तरीके से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चीजों को बनाया है । उसी तरीके से समाज बनाया है । उदारवादियों का मानना है कि समाज व्यक्तियों का समूह है ।

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समाज के अंदर बहुत सारे व्यक्ति रहते हैं । इसलिए समाज में हर कोई अपने विकास के लिए, अपने हितों को पूरा करने के लिए प्रतियोगिता करता रहता है । लेकिन यह प्रतियोगिता हिंसक भी हो सकती है । प्रतियोगिता से नए-नए आविष्कार होते हैं । उनमें सुधार होते हैं । इस प्रतियोगिता की वजह से जो हिंसा होती है । उस हिंसा को रोकने के लिए ही हमें राजनीति की जरूरत होती है ।

समाज एक कृतिम संस्था

उदारवादियों का यह मानना है कि समाज एक कृतिम संस्था है । समाज प्राकृतिक संस्था नहीं है बल्कि समाज तो लोगों ने आपस में समझौता करके बनाया है । बेंथम के अनुसार सामाजिक जैसी कोई चीज नहीं होती बल्कि व्यक्ति ही सबसे ऊपर होता है । इसी तरीके से जैन के अनुसार समाज एक तरीके का बाजार है । जहां पर अलग-अलग तरीके के लोग अपने हितों को पूरा करने के लिए आपस में मिलते रहते हैं ।

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राजनीति हितों में टकराव को रोकने की प्रक्रिया

समाज के अंदर व्यक्तियों के हित होते हैं । सब के अलग-अलग हितों में टकराव भी पैदा होता है । उन हितों में टकराव को रोकने के लिए हमें राजनीति की आवश्यकता होती है । समाज के अंदर बहुत सारे लोग अपने-अपने हितों को पूरा करने में लगे रहते हैं । लेकिन समाज में इतनी सारी वस्तुएं नहीं होती । जिससे उनकी सभी मांगों को पूरा किया जा सके । ऐसे में टकराव होना तय है । टकराव होना स्वाभाविक ही है । यह किसी भी रूप में आ सकता है । अमीर का गरीब से विवाद हो सकता है । एक वर्ग का दूसरे वर्ग से विवाद हो सकता है । इस टकराव को रोकने के लिए ही हमें राजनीति की आवश्यकता होती है । टकराव किसी भी तरीके से पैदा हो सकता है । हो सकता है कि एक इंसान का हित दूसरे का अहित हो और उन में टकराव पैदा हो सकता है । इसको सिर्फ राजनीति के जरिए ही रोका जा सकता है ।

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उदार वादियों का मानना है कि राजनीति विवादों के समाधान की प्रक्रिया है । समाज में एकता, संयोग और समझौते की भावना होती नहीं है बल्कि समाज में एकता संयोग की भावना सिर्फ राजनीति के जरिए ही पैदा की जा सकती है । तो समझौता करवाने के लिए हमें राजनीति की आवश्यकता होती है । राजनीति के जरिए हम लोगों के विवादों का समाधान करवा सकते हैं । उनमें आपस में समझौता करवा सकते हैं । अब विवादों का समाधान करवाने के लिए समझौता करवाने के लिए कई तरीके अपनाए जा सकते हैं । जैसे कानून बनाए जा सकते हैं या फिर राजनीतिक परंपराओं को ध्यान में रखा जा सकता है । या समाज का कल्याण किया जा सकता है । या फिर राजनीति संस्थाएं बनाई जा सकती हैं ।

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तो इस तरीके से उदारवादियों का यह मानना है कि राजनीति हितों में सामंजस्य लाती है । और टकराव को रोकती है । समाज के अंदर लोगों के हित आपस में टकराते हैं । समाज में विवाद पैदा होता है । तो राजनीति विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से विवादों का समाधान करती है । इसलिए हम सभी को राजनीति की आवश्यकता है ।

उदारवादी दृष्टिकोण की आलोचना

लेकिन बहुत सारे लोग राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण की आलोचना भी करते हैं । उनका कहना है कि  समाज कोई कृतिम संस्था नहीं है । बल्कि जिस तरीके से परिवार एक स्वाभाविक संस्था है । परिवार अपने आप बन जाता है । उसी तरीके से समाज भी एक स्वाभाविक संस्था है । समाज लोगों ने मिलकर नहीं बनाया बल्कि समाज तो लोगों को बना बनाया मिला है । उदारवादी कहते हैं कि राजनीति हितों में टकराव को रोकती है । लेकिन राजनीति सिर्फ हितों में टकराव को नहीं रोकती बल्कि और भी बहुत सारे काम करती है । तो राजनीति की आलोचना जानते हैं । बहुत सारे लोगों का यह मानना है कि समाज एक कृतिम संस्था नहीं है ।

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जबकि उदारवादी कहते हैं कि समाज एक कृतिम संस्था है । समाज तो एक स्वाभाविक संस्था है । जैसे परिवार सभी के अपने आप बन जाता है । उसी तरीके से समाज भी अपने आप बन जाता है । उदारवादी यह कहते हैं कि समाज में जो  टकराव होते हैं । वह हितों की वजह से होते हैं । लेकिन हर टकराव हितों  की वजह से नहीं होते और उदारवादी राजनीति के जरिए हितों में टकराव को रोकना चाहते हैं । पर इससे तो राजनीति की भूमिका बहुत सीमित हो जाएगी  और उदारवादियों के अनुसार  राजनीति हितों में टकराव को रोकती है  ।

तो इस तरीके से बहुत सारे लोग उदारवादी राजनीति के उदारवादी सिद्धांत की आलोचना भी करते हैं । तो दोस्तों  यह था आपका राजनीति का उदारवादी दृष्टिकोण, अगर आपको Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों कर साथ Share करें ।

तब तक के लिए धन्यवाद !!

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