Directive Principles in Hindi
Hello दोस्तो ज्ञान उदय में आपका स्वागत है । आज हम जानेंगे भारतीय संविधान में नीति निदेशक तत्वों के बारे में । (Directive Principles in hindi) । इसमें हम जानेंगे भारतीय संविधान में नीति निदेशक तत्वों का महत्व क्या हैं ? इसका अर्थ, परिभाषा और उद्देश्य के बारे में । तो चलिए आसान भाषा में समझते हैं ।
नीति निदेशक तत्व का अर्थ
भारतीय संविधान में सरकार के मार्गदर्शन के लिए नीति निदेशक तत्व बनाये गए हैं । नीति निदेशक तत्व सरकार का धर्म हैं, सरकार का आदर्श हैं । जो सरकार को सही रास्ता दिखाते हैं । जैसे कोई व्यक्ति अपने धर्म का पालन करता है, ठीक उसी तरह से सरकार इन तत्वों का पालन करती है और उसे करना चाहिए । भारतीय संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से लेकर अनुच्छेद 51 तक इन तत्वों के बारे में बताया गया है, जो सरकार का मार्गदर्शन करते हैं । जो कि निम्नलिखित हैं ।
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अनुच्छेद 36 परिभाषा
इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, ‘राज्य’ का वही अर्थ है, जो भाग 3 में है ।
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अनुच्छेद 37 अंतर्विष्ट तत्त्वों का लागू होना
इस अनुच्छेद के अंतर्गत अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे । किंतु फिर भी इनमें अधिकथित तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा ।
अनुच्छेद 38 राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था
इस अनुच्छेद द्वारा राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, न्याय और राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे । जो भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके, लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करे ।
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राज्य मुख्य रूप से आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा ।
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अनुच्छेद 39 राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्त्व
इस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य अपनी नीति को निम्न लिखित को ध्यान में रखते हुए संचालित करें ।
i) स्त्री और पुरुष सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका प्राप्त करने और पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो ।
ii) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बांटा गया हो, जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रुप से साधन हो ।
iii) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संक्रेंद्रण न हो ।
iv) स्त्री और पुरुष दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो ।
v) स्त्री और पुरुष कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुंपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोज़गारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों ।
vi) बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएं और बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए ।
अनुच्छेद 39A समान न्याय और नि:शुल्क कानूनी सहायता
इस अनुच्छेद द्वारा राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि कानूनी व्यवस्था इस तरह काम करे कि सभी को समान आधार पर न्याय प्राप्त हो और वह विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए । उपयुक्त विधान या नियम द्वारा या किसी अन्य रीति से मुफ्त कानूनी सहायता की व्यवस्था करेगा ।
अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों का संगठन
इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए क़दम उठाएगा । उनको ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करेगा, जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों ।
अनुच्छेद 41 कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और नि:शक्तता तथा अन्य अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा ।
अनुच्छेद 42 काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता की व्यवस्था
इस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के लिए व्यवस्था करेगा ।
अनुच्छेद 43 मज़दूरों के लिए उचित निर्वाह मज़दूरी
इस अनुच्छेद में राज्य, उपयुक्त कानून या आर्थिक संगठन द्वारा या कृषि के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी मज़दूरों को काम, निर्वाह मज़दूरी, शिष्ट जीवनस्तर और अवकाश का संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और मुख्य रूप से ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा ।
43A उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना
राज्य किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों, स्थापनों या अन्य संगठनों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कानून द्वारा या किसी अन्य नियम से क़दम उठाएगा ।
अनुच्छेद 44 नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता
राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा ।
अनुच्छेद 45 बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था
इस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बच्चों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक, नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए प्रबंध करने की व्यवस्था करेगा ।
अनुच्छेद 46 अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि
इस अनुच्छेद के द्वारा राज्य मुख्य रूप से नागरिकों के दुर्बल वर्गों के अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उसकी संरक्षा करेगा।
अनुच्छेद 47 पोषक आहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार
इस अनुच्छेद में राज्य, अपने नागरिकों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य विशेष रूप से मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक औषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा ।
अनुच्छेद 48 कृषि और पशुपालन का संगठन
इस अनुच्छेद के द्वारा राज्य, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीक से संगठित करने का प्रयास करेगा । विशेष रूप से गायों, बछड़ों, अन्य दुधारूं और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए क़दम उठाएगा ।
अनुच्छेद 48A पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
इस अनुच्छेद में राज्य, देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का व्यवस्था करेगा ।
अनुच्छेद 49 राष्ट्र के प्रतीक संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं के संरक्षण की व्यवस्था
इस अनुच्छेद के अंतर्गत संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन राष्ट्रीय महत्व वाले [घोषित किए गए] कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुंचि वाले प्रत्येक संस्मारक या स्थान या वस्तु का, यथास्थिति, लुंठन, विरूंपण, विनाश, अपसारण, व्ययन या निर्यात से संरक्षण करना राज्य की बाध्यता होगी
अनुच्छेद 50 कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक होना
इस अनुच्छेद के द्वारा राज्य की लोक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिए राज्य क़दम उठाएगा ।
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अनुच्छेद 51 अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि
इस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य अंतरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की व्यवस्था करेगा । इसमें निम्न को शामिल किया जायेगा ।
i) अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि की व्यवस्था ।
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ii) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने की व्यवस्था ।
iii) संगठित लोगों के एक दूसरे से व्यवहारों में अंतरराष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने की व्यवस्था और
iv) अंतरराष्ट्रीय विवादों को मध्यस्था द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने की व्यवस्था आदि ।
तो दोस्तों ये था, भारतीय संविधान में नीति निदेशक तत्वों के बारे में व्यवस्था । उनके अनुच्छेद के बारे में । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!
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