Decision Making Theory in Foreign Policy
Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति विज्ञान के संबंध में विदेश नीति के साधन के रूप में निर्णय सिद्धांत (Decision making theory in Foreign Policy in Hindi) इस Topic में हम जानेंगे की विदेश नीति के संबंध में किस प्रकार निर्णय लिए जाते हैं । इसके प्रमुख विचारकों के विचारों के बारे में । साथ ही साथ ले ली जानेंगे कि निर्णय के सिद्धांत पर किन किन कारकों का प्रभाव पड़ता है । तो चलिए जानते हैं, आसान भाषा में ।
विदेश नीति का निर्णयन सिद्धांत
विदेश नीति का निर्णय सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दिशा में एक प्रमुख सिद्धांत है, जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति स्तर पर निर्णय लेने में सहायता करता है । इसे निर्णय प्रक्रिया सिद्धांत भी कहा जाता है । यह इस बात पर बल देता है की विदेश नीति के निर्णय किस प्रकार लिए जाते हैं ।
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यह सिद्धांत उन अंतरराष्ट्रीय कार्यकर्ताओं के अधिमान्य व्यवहार के अध्ययन पर बल देता है । जो अंतरराष्ट्रीय घटना चक्र को निर्धारित व प्रभावित करते हैं । निर्णय सिद्धांत विदेश नीति निर्माण की लंबी प्रक्रिया में लिए जाने वाले निर्णयों के अध्ययन पर जोर देता है ।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन से पूर्व निर्णयपरक सिद्धांत का प्रयोग गणितज्ञ, समाज वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री आदि । अपने-अपने विषयों में करते आ रहे हैं । लोक प्रशासन में इसका प्रयोग हर्बर्ट साइमन ने किया है ।
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विदेश नीति निर्णय के विश्लेषण पर विचार
आइए अब जानते हैं, विदेश नीति के विश्लेषण के साधन के रूप में निर्णय सिद्धांत पर प्रमुख विचारकों ने क्या-क्या विचार दिए हैं । द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात विचारक रिचर्ड स्नाइडर, जानबर्तन, एच. डब्ल्यु. ब्रॉक और सापिन ने विदेश नीति के अध्ययन में निर्णयपरक विश्लेषण अपनाने का प्रयत्न किया है ।
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जेम्स रॉबिंसन्स के अनुसार
“निर्णय एक सामाजिक प्रक्रम है, जो निर्णय लेने के लिए कोई समस्या को कि चुनता है तथा उसके कुछ थोड़े से विकल्प निकालता है । जिसमें से कोई एक विकल्प कार्य रूप में परिणत करने के लिए अलग कर लिया जाता है ।”
स्नाइडर एवं सापिन के अनुसार निर्णय प्रक्रिया के सिद्धांत को दो निम्न तत्व के रूप में बताया गया है ।
1. व्यक्तिगत कारको का प्रभाव
2. पर्यावरण के प्रभाव
1) अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मूल इकाइयां अगर राज्य है, तो राज्यों का समस्त कार्य संचालन राज्य के नाम पर राष्ट्र नेताओं के द्वारा किया जाता है । किसी नेता के व्यक्तित्व से काफी हद तक विदेश नीति भी प्रभावित होती है । जैसे आजादी के बाद भारत की विदेश नीति पर नेहरू जी का, नाजी जर्मनी पर हिटलर का, सोवियत संघ पर स्टालिन का व चीन की विदेश नीति पर माओ का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है ।
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इस प्रकार निर्णयपरक दृष्टिकोण उन कार्यकर्ताओं पर भी ध्यान केंद्रित करता है, जो कार्यकर्ता कहलाते हैं और, उन पर राज्यों पर भी जो निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं
2) इसी प्रकार पर्यावरण भी विदेश नीति के निर्णय में प्रभावी भूमिका निभाता है । किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति के संबंध में निर्णय एक विशिष्ट पर्यावरण में लिए जाते हैं । इसमें पर्यावरण की आंतरिक और बाह्य दोनों परिस्थितियां महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।
क) आंतरिक पर्यावरण के घटक तत्व
ख) बाह्य पर्यावरण के घटक तत्व
आंतरिक पर्यावरण के घटकों में मुख्य रूप से – व्यक्तित्व, संगठन का स्वरूप, भौतिक व प्रौद्योगिक दशाएं, बुनियादी मूल्य, समाज में कार्यशील प्रभावक तत्व, धार्मिक स्थल तथा दबाव समूह आदि हैं । जैसे भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति आंतरिक पर्यावरण से प्रभावित थी, क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत किसी गुट में शामिल न होकर शीत युद्ध से दूर रहना चाहता था । श्रीलंका की तमिल समस्या के प्रति भारत की विदेश नीति भारतीय तमिलों से प्रभावित रही है ।
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इसके अलावा बाह्य पर्यावरण के घटक भी विदेश नीति को प्रभावित करते रहे हैं । वैश्विक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, पड़ोसी राष्ट्रों की स्थिति तथा व्यवहार, महाशक्तियों से संबंध का प्रभाव आदि । समस्त कारकों का सम्मिलित प्रभाव विदेश नीति पर पड़ता है । हेराल्ड और मार्गेट स्प्राउट विदेश नीति के अध्ययन में पर्यावरण पर विशेष बल देते हैं । इस प्रकार बदली हुई परिस्थितियों में भारत सभी क्षेत्रीय व आर्थिक संगठनों में भागीदारी द्वारा सभी राष्ट्रों के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है ।
इस प्रकार कोहन का विचार है कि
1) विदेश नीति के निर्माण में भाग लेने वाले सरकारी और गैर सरकारी अधिकारियों के दृष्टिकोण और विश्वासों के अनुरूप किसी राष्ट्र की विदेश नीति व्यवस्थित होती है । अतः निर्णय करने वाले व्यक्तियों के व्यक्तित्व पर अधिक बल देना चाहिए ।
2) विदेश नीति के निर्माण में विधायिका और कार्यपालिका की भी विशिष्ट भूमिका होती है ।
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इस तरह से इस उपागम से अंतरराष्ट्रीय आचरण व व्यवहार को समझने में अधिक सहायता मिल सकती है । निर्णय प्रक्रिया सिद्धांत विदेश नीति संबंधी निर्णय लेने की प्रक्रिया और इसे प्रभावित करने वाले तत्वों का विस्तृत विश्लेषण करती है । परंतु इस सिद्धांत की सबसे बड़ी सीमा यह है कि राज्यों के विदेश नीति का विश्लेषण तो करता है, परंतु अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नहीं ।
यह सिद्धांत विज्ञान का हिस्सा है । अतः इसका विश्लेषण अत्यंत जटिल तथा उलझन में डालने वाला है । इसकी तीसरी सीमा यह है कि इसके आधार पर तत्वों को लेकर सभी विद्वान एकमत नहीं हैं ।
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अनेक सीमाओं के बावजूद विदेश नीति के अध्ययन में निर्णय प्रक्रिया सिद्धांत का विशेष महत्व होता है । यह निर्णय लेने की प्रक्रिया में पर्यावरण के महत्व को स्वीकार करता है तथा इस बात की स्पष्ट व्याख्या करता है कि राष्ट्र के नीति संबंध में व्यक्ति ही निर्णय लेते हैं । अतः निर्णयकर्ता व्यक्तियों की भावनाओं, दृष्टिकोण आदि को समझना बहुत आवश्यक है ।
तो दोस्तों ये था विदेश नीति के साधन के रूप में निर्णयन सिद्धांत । (Decision Making Theory in Foreign Policy) अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तो के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!
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