संत थॉमस एक्विनास मध्ययुग का अरस्तु

Saint Thomas Aquinas Aristotle of Middle age

अरस्तु और एक्विनास के विचारों में तुलना

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, पश्चिमी राजनीतिक विचार के अंतर्गत संत थॉमस एक्विनास के मध्ययुग के बारे में । (Saint Thomas Aquinas: Aristotle of Middle Age) इन्हें मध्ययुग के अरस्तु के नाम से भी जाना जाता है । साथ ही साथ इस Post में हम जानेंगे अरस्तु और एक्विनास के विचारों में तुलना । लोग इन्हें एक महानतम समाजवादी विचारक भी कहते हैं ।

इटली के इस महान दार्शनिक को मध्ययुग का महान विचारक माना जाता है । एक्विनास को राजनीतिक और धर्म शास्त्र में अपने युग का संस्कृतिक विचारक माना जाता है ।

एक्विनास ने अरस्तु के दर्शन रूपी नीवं पर चर्च, धर्म, शास्त्रीय विचार तथा पोप के श्रेष्ठ रुपी भवन का निर्माण किया ।  एक्विनास ने अरस्तु के विचारों का बाइबिल की शिक्षाओं के साथ समन्वय स्थापित करके एक पूर्णता नई विचारधारा को जन्म दिया है ।

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संत थॉमस एक्विनास मध्ययुग के महानतम सामान्यवादी विचारक है और  समन्वयवाद की भावना के अनुरूप इन्होंने ईसाई चर्च की शिक्षाओं तथा अरस्तु के दर्शन के मध्य समन्वय स्थापित किया ।

अरस्तु के विचारों से तुलना

एक्विनास पर अरस्तु का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है, वह अरस्तु की विचारधारा से अत्यंत प्रभावित है, लेकिन वह उसे पूर्ण सत्य नहीं मानते । एक्विनास का उद्देश्य तो इसाई धर्म द्वारा प्रतिपादित सत्य के परिक्षपय में उसे पूर्णता प्रदान करना है ।

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प्रसिद्ध विचारक फोस्टर ने कहा है कि

“एक्विनास ने प्रारंभ से अंत तक यह सिद्धांत स्वीकार किया है कि अरस्तुवाद सत्य है, परंतु पूर्ण सत्य नहीं है ।”

मानवीय विवेक के आगे भी आगे एक संसार है, जिसे विवेक नहीं बल्कि आस्था व विश्वास से प्राप्त जाना जा सकता है ।

अरस्तु ने तर्क और विवेक को सत्य प्राप्ति का साधन माना है । एक्विनास इस बात को मानता है, लेकिन इससे आगे वह कहता है कि

“कुछ सत्य ऐसे भी हैं, जिनका ज्ञान मानवीय विवेक के द्वारा नहीं हो सकता । इसके लिए आस्था या ईश्वरकृपा प्रमुख साधन है ।”

अरस्तु का मानना है कि मानव समाज की रचना सभी व्यक्तियों के हित के लिए हुई है । अर्थात अरस्तु जहां मानव जीवन का लक्ष्य अलौकिक सुख को मानता है, वही एक्विनास जीवन के दो लक्ष्य मानता है ।

1) लौकिक

2) पारलौकिक

अरस्तु राज्य को एक प्राकृतिक संस्था मानता है और उसके अनुसार व्यक्ति का सर्वागीण विकास राज्य में ही संभव है । एक्विनास भी मानता है कि राज्य सुखी जीवन के लिए आवश्यक है, परंतु वह अरस्तु से आगे जाकर कहता है कि

“राज्य नहीं बल्कि चर्च सर्वोच्च मानव संस्था है ।”

एक्विनास ईसाई धर्म के इस परंपरागत विचार को ठुकरा देता है कि मानव के पतन के कारण उसके पापों को दूर करने के लिए राज्य की उत्पत्ति हुई है । राज्य एक स्वाभाविक संस्था है और इसका उद्देश्य नागरिकों को सुखी जीवन की प्राप्ति में सहायता प्रदान करना है । परंतु एक्विनास सुखी जीवन का लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति को मानता है । जिसके लिए कुछ शर्तें आवश्यक है ।

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एक्विनास ने बहुत सारी महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी जिसमें सुम्मा थेओलोजिका सबसे प्रमुख मानी जाती है । उन्होंने कानून संबंधी विचार भी दिए हैं और कानून को अलग अलग श्रेणियों में बांटा है ।

शासन के विभिन्न रूपों के वर्गीकरण में एक्विनास अरस्तु का ही अनुसरण करता है । परंतु अरस्तु की भांति वह सर्व हितकारी शासन व्यवस्था तथा न्यायपूर्ण प्रणाली को सर्वोत्तम तथा शासकों का हित साधने वाली प्रणाली को निकृष्ट मानता है तथा अरस्तु की भांति एक्विनास भी मिश्रित शासन व्यवस्था का ही अनुसरण करता है ।

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एक्विनास के कानून संबंधी विचारों पर भी अरस्तु का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है । वह कानून को मानव बुद्धि तथा विवेक का परिणाम मानता है तथा साथ ही उसने ईश्वर प्रदत्त शाश्वत तथा देवीय कानूनों को भी जोड़ दिया है ।

अरस्तु के नैतिकता संबंधी विचारों का भी एक एक्विनास ने अनुसरण किया है, लेकिन एक्विनास के अनुसार अरस्तु का सबसे बड़ा दोष यह है कि उसने इस बात की उपेक्षा की है कि मनुष्य का प्रकृति से परे भी एक लक्ष्य है, वह मोक्ष और भावी आनंद की प्राप्ति करना ।

स्पष्ट है कि एक्विनास पर अरस्तु का गहरा प्रभाव पड़ता है । वह अरस्तु के विचारों का खंडन नहीं करता।  परंतु उसे पूर्ण सत्य नहीं मानता है । एक्विनास ने अरस्तु की बातों को अंतिम सत्य नहीं बल्कि ईसायत को अंतिम सत्य माना है । कुछ बातों में वह अरस्तु की धारणा को स्वीकार करता है ।

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एक्विनास ईसाई धर्म के सिद्धांतों और आदर्शों को ऊंचा स्थान देता है । इस कारण वह यह कहना सर्वथा उपयुक्त है कि अरस्तु के दर्शन रूपी नीवं पर एक्विनास ने ईसाई भवन का निर्माण किया है । इसी कारण एक्विनास को मध्य युग का अरस्तु या इसाई कृत अरस्तु भी कहा जाता है ।

निष्कर्ष के रूप में अगर बात की जाए तो एक्विनास मध्ययुग का ऐसा विचारक है, जिसने दर्शन और धर्म शास्त्र में निहित विचारों का समन्वय किया है और धर्म शास्त्र और चर्च को सर्वोच्च माना है । अरस्तु के दर्शन से अत्यधिक प्रभावित होने के कारण एक्विनास के विचारों तथा दर्शन को इसाई अरस्तुवाद कहा जाता है ।

तो दोस्तों इस Post में हमने जाना एक्विनास के मध्य युग (Saint Thomas Aquinas Aristotle of Middle age) के बारे में । जिसने अरस्तु से प्रभावित होकर अपने विचार दिए और मध्ययुग के अरस्तु भी कहलाए । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो, अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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