साम्प्रदायिकता के कारण और परिणाम

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में राष्ट्रीय एकीकरण की चुनौती सांप्रदायिकता के बारे में । इस Post में हम जानेंगे सांप्रदायिकता का अर्थ,  उसके कारण, परिणाम और इसके निवारण के उपाय के बारे में । तो जानते हैं, आसान भाषा में ।

सांप्रदायिकता वर्तमान समय में राजनीति विज्ञान का एक महत्वपूर्ण विषय है । यह राष्ट्रीय एकीकरण के रास्ते में आने वाली एक प्रमुख बाधा भी है । साथ ही साथ यह क्षेत्रीय एवं भाषाई राजनीति देश की अखंडता और एकता में भी बाधक है । आज हम इसके बारे में और इसके निवारण के बारे में बात करेंगे । (Communalism Reason- Impact)

हमारा देश में विविधता में एकता सामाजिक और राजनीतिक जीवन की प्रमुख विशेषता मानी जाती है । भारत विविधताओं वाला देश है । जो धर्म, जाति, भाषा, संस्कृति और आर्थिक दृष्टि से विविध समूहों में विभाजित है और हर समूह के अपने अलग-अलग हित और अपनी अलग-अलग समस्याएं हैं । अनेक प्रकार के हितों के बीच सामंजस्य स्थापित करना भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के समक्ष एक प्रमुख चुनौती मानी जाती रही है ।

साम्प्रदायिकता क्या है ?

“राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने वाली तथा राजनीति को दूषित करने वाली ऐसी विचारधारा, जिसमें कुछ लोग अपने धर्म और संप्रदाय को तथा उससे संबंधित लोगों को अधिक महत्व देते हैं तथा मानते हैं कि अन्य धर्म और संप्रदाय उनके विरोधी हैं, तो यही धारणा सांप्रदायिकता कहलाती है ।”

यह राष्ट्रवाद को कमजोर करने वाली एक घातक धारणा है । जो देश को बाह्य और आंतरिक रूप से खोखला बना देती है ।

सांप्रदायिकता एक ऐसी भावना है जिसमें व्यक्ति केवल अपने धर्म और संप्रदाय के हित और विकास के बारे में ही सोचता है तथा संपूर्ण राष्ट्र के राष्ट्रीय हितों की अवहेलना करता है यह धारणा मानव मानव के बीच विद्रेस तथा दुर्भावना को जन्म देती है व्यक्ति व्यक्ति धर्म के नाम पर एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं जो देश में एक भयावह स्थिति पैदा कर देता है जो देश का माहौल खराब करती ।

भारत का लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा तथा विविधता से भरा लोकतांत्रिक देश है । अतः इसका एकीकरण करना, देश के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । एकीकरण से यह तात्पर्य नहीं है कि देवी देवताओं व धार्मिक स्थालों का अंत करके पूरे देश में एक धर्म, एक भाषा या एक संस्कृति लागू कर दी जाए, बल्कि इसका तात्पर्य यह है कि विविधताओं को बरकरार रखते हुए ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे देश की एकता और उसकी अखंडता में कोई खतरा पैदा न हो तथा यह सदैव ज्यूँ के त्युं बनी रहे ।

देश की एकीकरण की अवधारणा इस बात पर आधारित है कि राष्ट्र का हित व्यक्ति या समूह के हितों से भी ऊपर है । राष्ट्रीय एकीकरण का अर्थ है, व्यक्तिगत हितों और राष्ट्रीय हितों में सामंजस्य स्थापित करना तथा ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिसमें कोई व्यक्ति अपने हितों की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा ना करें । किसी अन्य व्यक्ति, समूह या वर्ग का शोषण ना कर पाए ।

हमारे देश में स्वाधीनता संग्राम के साथ पूरे देश में एकता का जो वातावरण उत्पन्न हुआ, इससे पहले कभी भी देखने को नहीं मिला । इस स्वाधीनता संघर्ष की सबसे प्रमुख विशेषता यह थी कि इसमें उत्तर और दक्षिण पूरब और पश्चिम सभी क्षेत्रों के लोगों ने धर्म, जाति और भाषाई विविधता को भुलाकर, एक होकर बलिदान करने के लिए तैयार हुए । यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने भाषा और जातिगत आधार पर भारतीयों को अलग-थलग करने का बहुत प्रयास किया था, लेकिन वह अपने इस प्रयत्न में सफल नहीं हो पाए थे । इसी एकता और अखंडता के कारण उनको यहां से भगा दिया गया ।

वर्तमान समय में स्वतंत्रता प्राप्ति के अनेक वर्षों बाद हम लोगों ने खुद ही जाति, धर्म, भाषा तथा स्वार्थ और व्यक्तिगत हितों की पूर्ति हेतु ऐसी ओछी राजनीतिक संस्कृति का विकास किया । जिससे राष्ट्र के एकीकरण को खतरा पैदा हो गया । यह सब खत्म हो जाए तो देश तथा व्यक्तिगत विकास पर ध्यान दिया जा सकता है ।

राष्ट्रीय एकीकरण में प्रमुख बाधाएं ।

आइए अब जानते हैं, राष्ट्रीय एकीकरण में प्रमुख बाधाओं के बारे में । सबसे प्रथम नंबर पर है, सांप्रदायिकता । वर्तमान में साम्प्रदायिकता एक गंभीर मुद्दा है ।

साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय एकीकरण के समक्ष सबसे प्रमुख चुनौती है । यह दो धर्मों तथा उन में पाए जाने वाले धार्मिक उप समूहों के बीच एकता व सामंजस्य की भावना को जागृत करना है । भारत में विभिन्न धार्मिक समूहों में मुसलमान सबसे बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग माना जाता है । हिंदू मुस्लिम के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर परस्पर तनाव बने रहते हैं तथा कई क्षेत्र में लगातार दंगे भी होते रहते हैं । जिससे जानमाल का भारी नुकसान होता है । सांप्रदायिक दंगों के कारण हिंदुओं और मुसलमानों के बीच परस्पर विश्वास के स्थान पर निरंतर दुश्मनी की भावना विकसित हुई है । मुसलमानों का आरोप है कि सरकार उन को समान महत्व नहीं देती है तथा जानबूझ के उनके साथ भेदभाव करती है तथा उनकी भाषा और संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है । मुस्लिम पर्सनल लॉ (कानून) में संशोधन करने का प्रयत्न तथा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मूल चित्रण में परिवर्तन को लेकर मुस्लिमों की आशंका को काफी हद तक बड़ा दिया है । इसमें हिंदू और मुस्लिमों के उग्र संगठन भी काफी योगदान दिया है ।

इसी तरह उत्तर पूर्व भारत विशेषकर नागालैंड में हिंदुओं को बड़ी संख्या में ईसाई बनाने का कार्य को लेकर हिंदुओं तथा ईसाइयों में काफी विवाद रहा है तथा पंजाब में हिंदू और सिखों के बीच टकराव से सीख संप्रदायिकता का स्वरूप भी सामने आया है ।

इसी प्रकार सांप्रदायिकता केवल दो धर्मों के बीच का ही विवाद मात्र नहीं रहा है, बल्कि मुसलमानों में शिया, सुन्नी तथा सिखों में निरंकारी व अकाली सिखों के मध्य संघर्ष रहता है कि यह एक ही धर्म के विभिन्न समुदायों में भी व्याप्त है । अतः धर्मों के अलावा विभिन्न समुदायों में भी सामंजस्य व एकता पूर्ण संबंधों को विकसित करने की आवश्यकता है ।

सांप्रदायिकता के कारणों का विश्लेषण करने से इसके निम्नलिखित कारण स्पष्ट होते हैं ।

राष्ट्रवादी आक्रामकता किसी राष्ट्र के निर्माण में सभी भाषा, जाति, धर्म तथा क्षेत्र के लोगों का योगदान रहता है, जबकि किसी एक वर्ग तथा अपनी प्रसिद्धि सिद्ध करने, अपने अधिकतम योगदान को दर्शाने का उग्र रूप में प्रचार किया जाता है । तो इसे राष्ट्रवादी आक्रमकता कहा जाता है । यह सांप्रदायिकता के विकास का एक प्रमुख तत्व है ।

उग्र राष्ट्रवाद दिखावे तथा अत्यधिक जोश और उन्माद में आकर अपने को राष्ट्रवादी करार देने वाले राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान भी करते हैं । जो समाज में अनाचार व्यवस्था अनावश्यक विवादों को जन्म देते हैं ।

धार्मिक आक्रामकता, धार्मिक उन्माद तथा धार्मिक कट्टरता सांप्रदायिकता का कारण रहा है । इसके प्रमुख उदाहरण 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उसके प्रतिक्रिया स्वरूप 1993 में मुंबई हमले पंजाब में 1984 में हुए दंगे तथा 2002 में गुजरात में भड़की सांप्रदायिक दंगे । इसमें धार्मिक कट्टरता के नाम पर आतंकवाद का रूप सामने आया ।

राजनीतिक महत्वाकांक्षा राजनीतिक सत्ता प्राप्ति के लिए नेताओं द्वारा अपने लाभ के लिए जातिवाद धर्म पर आधारित राजनीति की जाती है, जो लोगों को आपस में बांट देते हैं । इससे समाज पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है तथा सांप्रदायिकता की भावना को और बल मिलता है ।

प्रशासन की अकर्मण्यता भारतीय प्रशासन की सुचारिता पर जाति धर्म सहित स्वार्थपरता तथा भ्रष्टाचार आदि का प्रभाव पड़ता है । इसका वर्तमान स्वरूप काफी विकसित हो गया है तथा इसमें सुधार करने की जरूरत है । इसी कारण ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिक्स ने कहा भारतीय नौकरशाही विकास मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है ।

शिक्षा की संकीर्णता भारतीय शिक्षा का स्वरूप इस प्रकार का है कि शब्दों की गलत व्याख्या फैलाकर तथा लोगों को भ्रमित कर दिया जाता है । अधिकांश अशिक्षित जनता इससे दिग्भ्रमित हो जाती है । यह काम अधिकतर बुद्धिजीवियों द्वारा किया जाता है । इस कारण मुलयात्मक शिक्षा की आवश्यकता है । जो यथार्थपरक है ।

सांप्रदायिकता के निवारण के उपाय

राष्ट्रवादी भावना के विकास, धार्मिक सहिष्णुता ,स्वच्छ और नैतिकता पूर्ण राजनीति व्यापक दृष्टिकोण सरकार व जनता के मध्य परस्पर सहयोग, सक्रिय और न्याय पूर्ण प्रशासन सर्वागीण अध्यापक नैतिक शिक्षा तथा स्वच्छता पर आधारित वास्तविक सिद्धांत तथा पारस्परिक सद्भाव और भाईचारे की भावना विकसित करके सांप्रदायिकता के विषवृक्ष का समूल नाश किया जाना जरूरी है, वरना इसके कड़वे फल और भी अधिक कष्टदायक होंगे ।

तो दोस्तो ये था साम्प्रदायिकता के कारण, परिणाम और इसके निवारण के उपाय (Communalism -Reason, Impact and its removal form) । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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